Farhan Akhtar On Sholay Film Climax: हिंदी सिनेमा की आइकोनिक कल्ट फिल्मों में से एक ‘शोले’ 15 अगस्त 2025 को अपनी 50वीं एनिवर्सरी मनाने जा रही है. ऐसे में इस खास मौके पर फिल्म से जुड़ा एक बड़ा खुलासा सामने आया है. जी हां, फरहान अख्तर ने एक पॉडकास्ट में बताया कि उनके पिता जावेद अख्तर और सलीम खान द्वारा लिखी गई इस फिल्म का क्लाइमैक्स कुछ और ही था, जिसे सेंसर बोर्ड के दबाव में बदलना पड़ा था. चलिए हम आपको इसके बारे में सब कुछ डिटेल में बताते हैं.
ये होने वाला था फिल्म का क्लाइमैक्स
हाल ही में फरहान एक पॉडकास्ट में शामिल हुए थे. इस दौरान उन्होंने बताया कि फिल्म में मूल रूप से ठाकुर (संजीव कुमार) गब्बर सिंह (अमजद खान) को अपने पैरों से कुचलकर मार देता है. ये दृश्य बदले की भावना और फिल्म की भावनात्मक गहराई को दिखाता था, लेकिन सेंसर बोर्ड ने इसे अत्यधिक हिंसक मानते हुए थिएटर वर्जन से हटवा दिया.
फरहान ने कहा, 'उस समय इमरजेंसी का दौर था, इसलिए फिल्म मेकर्स विरोध नहीं कर सके. अब उस ओरिजिनल एंडिंग का वीडियो अवेलेबल है, जिसमें ठाकुर गब्बर को पैरों से मारने के बाद फूट-फूट कर रोता है.'
सलीम-जावेद थे नाराज
फरहान ने ये भी बताया कि उनके पिता जावेद अख्तर और सलीम खान इस जबरन बदलाव से बेहद नाखुश थे. उन्होंने कहा, 'डैड और सलीम साहब को ये बात हजम नहीं हो रही थी कि क्लाइमैक्स में गांववाले, पुलिस, हीरो सभी अचानक मौजूद हैं. वो मजाक में कहते थे कि सिर्फ पोस्टमैन ही नहीं आया.' उन्होंने जो क्लाइमैक्स लिखा था, उसमें ठाकुर ही गब्बर को खत्म करता है, जो कहानी की आत्मा के ज्यादा करीब था.
हर किरदार बना आइकॉनिक
वहीं फरहान ने फिल्म के किरदारों की तारीफ करते हुए कहा कि ‘शोले’ में सिर्फ जय-वीरू ही नहीं, बल्कि जेलर, सूरमा भोपाली, गब्बर और बसंती जैसे साइड कैरेक्टर भी दर्शकों के दिलों में बस गए. उन्होंने कहा, 'फिल्म का इमोशनल कोर बहुत सशक्त था. एक ईमानदार पुलिस अफसर, जिसने अपना सब कुछ खोया, वो बदला लेने के लिए दो अनोखे किरदारों को हायर करता है और अंत में खुद ही इंसाफ करता है.'
'शोले' - एक सदाबहार विरासत
शोले आज भी हिंदी सिनेमा के इतिहास का अहम हिस्सा मानी जाती है. इसके डायलॉग्स, किरदार और क्लाइमैक्स ने इसे सिनेमा प्रेमियों के दिलों में अमर बना दिया है. 50 साल बाद भी फिल्म के पीछे छिपी कहानियां दर्शकों को उतनी ही उत्सुकता से जुड़ी रहने पर मजबूर करती हैं.
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