Manoj Muntashir (Photo Credit: फोटो- @manojmuntashir Instagram)
नई दिल्ली:
जिनकी फितरत है मस्ताना और कलम की स्याही में है इश्क भरा. जिनके प्रेम गीत लबों पर चढ़ते ही सीधे दिल में बस जाते हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं मनोज मुंतशिर की. मनोज मुंतशिर, एक ऐसा नाम जिसकी कलम ने बॉलीवुड में एक नया इतिहास रच दिया. हिंदुस्तानी सिनेमा की नई क्रांति ‘बाहुबली’ (Bahubali) के तमाम हिंदी डायलॉग मनोज ने ही लिखे हैं. ‘रुस्तम’ फिल्म का मशहूर गाना ‘तेरे संग यारां’ इन्हीं की कलम से निकला है. बहुत कम लोग जानते होंगे कि मनोज मुंतशिर (Manoj Muntashir) का असली नाम मनोज शुक्ला है. 27 फरवरी 1976 को यूपी की अमेठी में जन्में मनोज आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. अपनी कलम की बदौलत आज वे आज पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ चुके हैं.
'देवसेना को किसी ने हाथ लगाया तो समझो बाहुबली की तलवार को हाथ लगाया' और 'औरत पर हाथ डालने वाले का हाथ नहीं काटते, काटते हैं उसका गला' ये वो डॉयलॉग्स हैं, जिनकी वजह से बाहुबली बच्चे-बच्चे की पसंदीदा फिल्म बन गई. अमेठी जैसे छोटे शहर में जन्म लेने के बाद भी मनोज ने बड़े-बड़े सपने देखना नहीं छोड़ा. उन्होंने अपनी कलम से ही अपने सपनों तक पहुंचने लिए रास्ता तैयार किया. उन्होंने मीडिया को एक बार बताया था कि वे जब यूपी से मुंबई पहुंचे थे, तो उनके पास ज्यादा पैसा नहीं था. वे कहते हैं कि जूते फटे पहन कर आकाश पर चढ़े थे सपने हर दम हमारी औकात से बड़े थे.
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ऐसे बीता बचपन
मनोज के पिता पेशे से किसान थे, और मां प्राइमरी स्कूल में टीचर. पिता की कोई खास आमदनी थी नहीं, और मां की सैलरी महज 500 रुपए थी. इसके बाद भी उनके माता-पिता ने उन्हेंकॉन्वेंट में पढ़वाया. बचपन से ही उन्हें लिखने का शौक था. उन्होंने खुद कहा था कि जब वे 7 या 8 क्लास में थे तब दीवान-ए-ग़ालिब किताब पढ़ी थी. उस वक्त उन्हें उर्दू नहीं आती थी, इसलिए उस किताब को समझना मुश्किल था. उस किताब को समझने के लिए उर्दू सीखना जरूरी था. फिर एक दिन मस्जिद के नीचे से 2 रुपए की उर्दू की किताब खरीदी, उसमें हिंदी के साथ उर्दू लिखी हुई थी. उसी किताब से उर्दू सीखा. जिसके बाद गाने और शायरी लिखनी शुरू कर दी.
135 रुपये में मिली थी पहली नौकरी
साल 1997 में मनोज की इलाहाबाद आकाशवाणी में नौकरी लगी. पहली सैलरी के रूप में 135 रुपए मिले थे. जब वे अपने सपनों को साकार करने के लिए मुंबई पहुंचे, तो उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे. उनके जूते तक फटे थे. करीब डेढ़ साल मुंबई के अंधेरी में रातें फुटपाथ पर कटीं. कई दिनों तक भूखे भी रहना पड़ा. इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी. साल 1999 में अनूप जलोटा ने पहला काम दिया. उन्होंने एक भजन लिखने को दिया. इससे पहले उन्होंने कभी भजन नहीं लिखा था. इसलिए इस काम में उन्हें काफी दिक्कत हुई. इस काम के लिए अनूप जलोटा ने मनोज को 3000 रुपये का चेक दिया. वो कहते हैं कि इतनी बड़ी रकम देखकर मैं खुद को अमीर समझने लगा था.
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कौन बनेगा करोड़पति के लिरिक्स लिखे
16 साल पहले स्टार टीवी के एक अधिकारी ने मनोज के काम से प्रभावित होकर उन्हें मिलने के लिए बुलाया. उसने जब मनोज मुंतशिर से अमिताभ बच्चन से मुलाकात करवाने की बात कही तो उन्हें लगा कि मजाक कर रहा है. फिर वो व्यक्ति उन्हें एक होटल ले गया, जहां अमिताभ बच्चन से उनकी मुलाकात हुई. 20 मिनट की मीटिंग के बाद उनका सलेक्शन हुआ और साल 2005 में कौन बनेगा करोड़पति में उनके लिरिक्स सुनने को मिले.