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Sanjeev Kumar death anniversary : कूड़ेदान में था भविष्य, तीन बार बदला नाम, ऐसी रही शोले के ठाकुर की जिंदगी

फिल्म 'शोले' के ठाकुर तो आपको याद ही होंगे. इस फिल्म को रिलीज हुए 47 साल हो चुके हैं,

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Pallavi Tripathi
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Sanjeev Kumar death anniversary( Photo Credit : Social Media)

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फिल्म 'शोले' के ठाकुर तो आपको याद ही होंगे. इस फिल्म को रिलीज हुए 47 साल हो चुके हैं, लेकिन इसका एक-एक किरदार आज भी जिंदा है. इन्हीं आइकॉनिक किरदारों में से एक 'ठाकुर' का किरदार निभाने वाले संजीव कुमार की आज पुण्यतिथि है. ऐसे में आज के दिन फैंस उन्हें याद कर रहे हैं. लेकिन आज हम उन्हें याद करने के साथ-साथ आपको उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ किस्से बताने वाले हैं. जिनके बारे में शायद ही आप जानते होंगे.

महज 11 साल में सिर से उठा पिता का साया
शुरुआत संजीव के जन्म से करते हैं. एक्टर 06 नवम्बर, 1985 को गुजराती परिवार में जन्मे थे. उनके पिता जेठालाल कृष्ण के बड़े भक्त थे. ऐसे में उन्होंने बड़े प्यार से अपने बेटे का नाम हरिहर जरीवाला रखा. एक्टर का जीवन काफी मुश्किलों भरा रहा. जब वे महज 11 साल के थे, उनके पिता का निधन हो गया. जिसके बाद दुखों का पहाड़ उनके और उनके परिवार पर टूट पड़ा. रिश्तेदारों ने उनकी संपत्ति धोखे से अपने नाम करा ली. ऐसे में घर चलाने और बच्चों को पालने के लिए उनकी मां शांता ने अपने घर को दो कमरों में से एक को किराए पर दे दिया. साथ ही जरी का काम खुद मेहनत कर आगे बढ़ाया.

जरी के काम में बंटाया मां का हाथ
इस हादसे की वजह से संजीव की पढ़ाई भी प्रभावित हुई. उन्हें अच्छे स्कूल से निकालकर एक सरकारी हिंदी मीडियम स्कूल में दाखिला लेना पड़ा. संजीव कुमार बचपन से ही काफी मेहनती थी. वे स्कूल जाते और घर आकर काम में अपनी मां की मदद करते. लेकिन घर छोटा होने की वजह से उनकी पढ़ाई पर फर्क पड़ने लगा. ऐसे में स्कूल प्रबंधन की इजाजत से वो स्कूल के ही एक कमरे में पढ़ाई करने लगे. 

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यहां से मिली संजीव को राह
स्कूल के ही एक टीचर से उन्होंने नाट्य शास्त्र सीखा. आपको बता दें कि उन दिनों में भी संजीव की सिनेमा में खासा रुचि थी. ऐसे में वो उस बीच रिलीज हुई फिल्म 'बैजू बावरा' देखने गए. जिसे देखने के बाद लगा, जैसे एक्टर को राह मिल गई हो. फिर उन्होंने अपने आपको एक्टिंग की दुनिया में समर्पित करने की ठानी. लेकिन सिनेमा की तरफ संजीव कुमार की बढ़ती रुचि देख मां को चिंता हुई कि बेटा खुद की जिंदगी बर्बाद न कर लें. ऐसे में उन्होंने 16 साल की उम्र में ही एक गुजराती लड़की से उनकी सगाई करवा दी. उनका मानना था कि हो सकता है, जिम्मेदारी आने पर वो एक्टिंग का साथ छोड़कर अच्छी नौकरी कर लें. लेकिन ऐसा तो तब होता न, जब वो संजीव कुमार नहीं, बल्कि कोई आम इंसान होता. ऐसे में उनकी ये सगाई तो हुई, लेकिन ये रिश्ता कभी शादी तक नहीं पहुंच सका.

एक्टिंग के लिए मां गहने बेचने को हो गई तैयार
दिलीप ने फेमस डायरेक्टर शशधर के एक्टिंग स्कूल फिल्मालय को ज्वॉइन करने का फैसला किया. लेकिन फीस सुनकर वो थम गए. लेकिन मां शांता भी बेटे की पसंद देखकर पिघल गई और फीस के लिए बेटे को अपने गहने बेचने के लिए कहा. हालांकि, उनके कई बार इंकार करने के बावजूद जब मां नहीं मानी, तो एक्टर ने वैसा ही किया. दाखिला मिलने के बाद उन्होंने अपनी एक्टिंग का जादू तो लोगों पर चला दिया. लेकिन अभी आगे की राह आसान नहीं थी. फिल्मालय जाने के बाद एक्टर ईप्टा पहुंच गए. जहां उनकी मुलाकात एके हंगल से हुई. लेकिन उन्होंने भी एक्टर को कुर्ता-पजामा पहने सादे लुक में देखकर सोचा कि ये तो एक्टर बन ही नहीं सकते. ऐसे में उन्होंने काम देने की बात कहकर टाल दिया. लेकिन संजीव ने हिम्मत नहीं हारी और रोज उनके पास पहुंचकर उन्हें ये बात याद दिलाई. 

इस बीच एक्टर की मुलाकात एक अन्य डायरेक्टर से हुई. उन्होंने संजीव को नाटक में काम करने के लिए कहा. फिल्में न मिलने के चलते वो भी तैयार हो गए. फिर नाटक में संजीव कुमार की एक्टिंग देख एके हंगल भी चौंक गए कि जिन्हें वो एक्टर बनने के लायक न सोचकर टालते रहे. असल में वो बेहतरीन कलाकार हैं. 

फिल्म से पहले ही रख लिया था सेक्रेटरी
आपको बता दें संजीव कुमार द्वारा फिल्मों में आने से पहले सेक्रेटरी रखने का किस्सा भी बहुत मशहूर है. दरअसल, संजीव की एक्टिंग देखकर जमनादास नाम के व्यक्ति उनके कायल हो गए. फिर क्या था, उन्होंने एक्टर के लिए काम करने की बात कही. हालांकि, एक्टर के पास कोई काम न होने की वजह से उन्होंने मुफ्त में खुद को काम पर रखने के लिए कहा. ऐसे में संजीव भी तैयार हो गए. 

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तीन बार नाम बदलने को हुए मजबूर
अब बात उनके नाम की, जिसे उन्हें पूरे तीन बार बदलना पड़ा. दरअसल, फिल्म लाइन में हरिहर नाम न जचने की वजह से उन्होंने अपनी मां शांता के 'स' अक्षर से जुड़ा नाम संजय कुमार रखा. लेकिन एक बार नाम बदलना उनके लिए काफी नहीं था. ऐसा इसलिए क्योंकि एक फिल्म में वो और संजय खान एक साथ नजर आने वाले थे. एक फिल्म में दो कलाकारों का एक ही नाम लोगों को नहीं जचा. ऐसे में उन्हें अपना नाम फिर बदलकर संजीव कुमार करना पड़ा. खैर, इस नाम ने इतिहास रच दिया.

यहां तक कि एक्टर को एक जगह ऐसी बेइज्जती का सामना करना पड़ा, जो उन्हें जिंदगी भर याद रही होगी. स्ट्रगल के दिनों में एक्टर काम के लिए डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स के यहां जाया करते थे. इसी तरह प्रोड्यूसर नंद लाल शाह के यहां पहुंचने पर नंबर और पता लिखवाकर उनसे उनकी तस्वीर ले ली गई. ऐसे में उम्मीद तो जगी. लेकिन फिर कोई जवाब न आने पर वो खुद प्रोड्यूसर के ऑफिस पहुंच गए. वहां जो देखा, वो दिल तोड़ देने वाला था. उनकी वो तस्वीर कूड़ेदान में पड़ी थी.  

बी-ग्रेड फिल्मों के बाद ऐसे मिली सफलता
एक्टर को शुरुआत में बी-ग्रेड फिल्मों में भी काम करना पड़ा. जिसके चलते उनकी छवि भी ऐसी ही बन गई. जिसके बाद उन्होंने फिल्म 'संघर्ष' में स्टार दिलीप कुमार के साथ काम किया. उनकी ये फिल्म हिट गई और लोगों को संजीव कुमार की एक्टिंग काफी पसंद आयी. फिर उनके माथे से बी-ग्रेड फिल्में करने वाले एक्टर का ठप्प भी हमेशा-हमेशा के लिए साफी हो गया और एक्टर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. एक्टर के स्टारडम का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 47 साल की उम्र में उनके निधन के बावजूद उनकी 10 फिल्में रिलीज की गई थी. यही नहीं, कुछ फिल्मों की तो शूटिंग भी रह गई थी.

HIGHLIGHTS

  • एक फिल्म ने संजीव को बनाया स्टार
  • फिल्मों लाइन में एंट्री से पहले ही रख लिया था सेक्रेटरी
  • किया बी-ग्रेड फिल्मों में काम, फिर इस फिल्म से मिली सफलता

Source : Pallavi Tripathi

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