आर्यन के ड्रग सप्लायर से निकल रहे करीबी संबंध, इस तकनीक का कर रहे थे इस्तेमाल
वेद भूषण पूर्व स्पेशल सेल अधिकारी ने कहा कि सिर्फ आर्यन खान (Aryan Khan) ही नहीं बल्कि नशे की लत वाले दूसरे लोग भी इसी प्याज के छिलके उतारने वाली तकनीक यानी ओनियन राउटिंग का इस्तेमाल करते हैं
highlights
- ड्रग्स मामले में हुआ नया खुलासा
- कोड वर्ड में होती है लेनदेन की बात
- एनसीबी इस मामले की जांच कर रही है
नई दिल्ली:
ड्रग्स मामले में गिरफ्तार आर्यन खान (Aryan Khan) और दूसरे आरोपियों की कड़ियां अब धीरे-धीरे जुड़ रही हैं इन लोगों के पास ड्रग्स कहां से आती है? कैसे आती हैं ? सुरक्षा एवं जांच एजेंसियों की कौन सी कमी का ये लोग फायदा उठाते हैं? ऐसी कई बातों का खुलासा हुआ है खासतौर पर, युवाओं को उस दुकान का पता मालूम हो गया है जहां पर नशा, हथियार और साइबर क्राइम बिकता है और वो उस दुकान के ग्राहक बनते जा रहे हैं क्योंकि ये दुकान अपने ग्राहकों को पूरी सुरक्षा देती है कौन ले रहा है और कौन दे रहा है, ये कोई नहीं जानता और बिना किसी झंझट के माल पहुंचने की गारंटी होती है.
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वेद भूषण पूर्व स्पेशल सेल अधिकारी ने कहा कि सिर्फ आर्यन खान (Aryan Khan) ही नहीं बल्कि नशे की लत वाले दूसरे लोग भी इसी प्याज के छिलके उतारने वाली तकनीक यानी ओनियन राउटिंग का इस्तेमाल करते हैं जांच एजेंसियों के लिए अभी यह 'दुकान' एक बडी चुनौती है.
डार्क वेब या डार्क नेट, ड्रग्स की बुकिंग और सप्लाई का एक बड़ा जरिया बन गया है ड्रग्स की दुनिया में इसको दुकान बोला जाता है और पैडलर्स को गप्पी अमेरिका ने डार्क वेब का यह फुल प्रूफ सिस्टम अपनी सुरक्षा एवं जांच एजेंसियों के लिए तैयार किया था और जब यह सिस्टम लोगों के पास गया तो उन्होंने अपने तरीके से इसे तोड़कर इस्तेमाल करना शुरु कर दिया डार्क नेट का इस्तेमाल अपराध नहीं है.
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पूर्व स्पेशल सेल अधिकारी वेद भूषण ने कहा, 'इस तरीके को टोर और द ओनियन राउटर भी कहा जाता है ये वो नेटवर्क है, जहां पर यूजर को छिपा दिया जाता है. इसके इस्तेमाल से इंटरनेट पर असली यूजर सामने नहीं आता यूजर कहां पर है, उसकी ट्रैकिंग और सर्विलांस बहुत मुश्किल होता है जब कोई व्यक्ति डार्क नेट की दुनिया में घुसता है तो किसी दूसरे देश की लोकेशन आती है अगले पल दोबारा से लोकेशन बदल जाती है कई देशों में एंट्री होने के बाद जब बाहर निकलने की बारी आती है तो वेब पर कोई दूसरा देश दिखाई पड़ता है ऐसे में जांच एजेंसियों के लिए यह पता लगाना बहुत कठिन होता है कि सर्वर कहां बना हुआ है.
उन्होंने आगे कहा कि पहले टेलीग्राम, इंस्टाग्राम पर कोड वर्ड में नशा बुक करने वाले अब डार्क नेट का सहारा लेते हैं उन्हें मालूम है कि पुलिस या एनसीबी जैसी एजेंसियों का यहां तक पहुंचना आसान नहीं होता डार्क नेट पर गप्पी और ग्राहक का आपस में कोई लिंक नहीं रहता वो पेमेंट भी बिटकॉइन से करते हैं ऐसे में उनका लेनदेन भी छिप जाता है.
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