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Sitaare Zameen Par Review
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Sitaare Zameen Par Review: अगर आप भी आमिर खान की फिल्म 'सितारे जमीन पर' को देखने का प्लान बना रहे हैं, तो इससे पहले आप इस फिल्म का यहां रिव्यू पढ़ लीजिए.
Sitaare Zameen Par Review
Sitaare Zameen Par Review: तीन साल के ब्रेक के बाद बॉलीवुड के मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान ने फिल्म ‘सितारे जमीन पर’ से कमबैक किया है. उनकी ये मचअवेटेड फिल्म 20 जून को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. फिल्म के ट्रेलर को दर्शकों की तरफ से मिलेजुले रिस्पॉन्स मिले थे. किसी को फिल्म का ट्रेलर पसंद आया तो कई लोगों ने ये भी कहा था कि ये फिल्म भी 'लाल सिंह चड्डा की जैसी फ्लॉप साबित होगी. तो चलिए आपको ऑनेस्ट रिव्यू के जरिए बताते हैं कि आमिर खान की ये फिल्म कैसी है...
साल 2007 में आमिर खान ‘तारे जमीन पर’ लेकर आए थे, जिसने हिंदी सिनेमा में एक अलग ही छाप छोड़ी थी. इस फिल्म में डिस्लेक्सिया जैसे विषय को उजागर किया था. वहीं अब पूरे 18 साल बाद ‘सितारे जमीन पर’ के जरिए आमिर खान एक कदम और आगे बढ़ गए हैं. इस बार स्पॉटलाइट है Down Syndrome और न्यूरो डाइवर्जेंस (Neurodivergence) पर क्योंकि आमिर खान का मानना है कि सबका अपना-अपना नॉर्मल होता है..
कहानी गुलशन अरोड़ा नाम के एक अहंकारी बास्केटबॉल कोच की है, जिसे सस्पेंड कर दिया जाता है, क्योंकि वे अपने सीनियर को मार देता है. इसके बाद नशे में गाड़ी चलाता है जिसके अपराध में कोर्ट उसे समाज सेवा की सजा सुनाती है. सजा ये होती है कि उसे न्यूरो डाइवर्जेंट लोगों की एक टीम को कोचिंग देनी होती है. शुरुआत में तो गुलशन इन्हें 'पागल' समझता है और सभी से बड़ी बदतमीजी से पेश आता है. लेकिन धीरे-धीरे जब वे उनके साथ समय बिताने लगता है तो, गुलशन की सोच बदलते लगती हैं और वो ये समझने लगता है कि पागल वो नहीं, बल्कि पागल वो लोग हैं जो उन्हें पागल समझते हैं.
आमिर खान को यूं नहीं मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहा जाता है. फिल्म में उनका कैरेक्टर मल्टी-लेयर्ड है. आमिर आपको हंसाएंगे भी रुलाएंगे भी और लाइफ की बहुत सारी चीजों पर सोचने के लिए मजबूर भी करेंगे. वहीं मूवी में आमिर तो बेस्ट हैं ही लेकिन फिल्म के असली सितारे वो 10 नए चेहरे हैं जिन्होंने न्यूरो डाइवर्जेंट रोल्स प्ले किए हैं. सभी दस खास कलाकारों ने अपनी एक्टिंग से नहीं अपनी मासूमियत से इस फिल्म में जान डाल दी है. एक बार को आपको ये लगने लगेगा कि वे आपके अपने हैं. जेनेलिया डिसूजा का भी काम अच्छा है.
फिल्म के कर्ता-धर्ता डायरेक्टर आर एस प्रसन्ना की जितनी तारीफ करें कम हैं. फिल्म के कई सीन्स ऐसे हैं जो आपको मजाक- मजाक में जिंदगी के असली मायने सीखा जाएंगे. ये फिल्म आपको एक भी जगह बोरियत नहीं लगेगी और यही डायरेक्शन का बेस्ट पार्ट है. फिल्म के one liner, बेहतरीन dialogues, सब शानदार है. फिल्म में आमिर खान का एक डायलॉग है जहां वे कहते हैं कि 'मैं इन बच्चों को नहीं, ये बच्चे मुझे काफी कुछ सिखा रहे हैं...' इस सीन पर थिएटर्स में खूब तालियां बजती हैं. इसके अलावा कई ऐसे सीन्स है जहां हंसते-हंसते आप थोड़े इमोशनल भी हो जाएंगे.
जब फिल्म खत्म होगी तो आप फौरन सीट से उठने की जल्दी नहीं करेंगे क्योंकि आप इस सोच में रहेंगे कि 'आपका अपना नॉर्मल क्या है???' ये फिल्म आपके सोचने के नजरिए को बदल सकती है. कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि आमिर खान प्रोडक्शन एक बेहतरीन कहानी लेकर आए हैं जिसे हर उम्र के लोग देख सकते हैं.
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