Tamil Nadu Election: कौन हैं एमके अलागिरी जिनसे BJP गठबंधन चाहती थी

एमके अलागिरी (MK Alagiri), एम करुणानिधि (M Karunanidhi) के बेटे जरूर हैं, पर DMK में एमके स्टालिन (MK Stalin) से वो वर्चस्व की लड़ाई हार गए थे. डीएमके से अलग होने के बाद से अलागिरी ने अपनी अलग पार्टी बनाई है.

एमके अलागिरी (MK Alagiri), एम करुणानिधि (M Karunanidhi) के बेटे जरूर हैं, पर DMK में एमके स्टालिन (MK Stalin) से वो वर्चस्व की लड़ाई हार गए थे. डीएमके से अलग होने के बाद से अलागिरी ने अपनी अलग पार्टी बनाई है.

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Karm Raj Mishra
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MK Alagiri

MK Alagiri( Photo Credit : News Nation)

तमिलनाडु के चुनावी गठबंधनों में राष्ट्रीय दलों पर क्षेत्रीय पार्टियां हावी हो रही हैं. कांग्रेस (Congress) और बीजेपी (BJP) जैसी राष्ट्रीय पार्टियों को 234 सीटों वाले विधानसभा चुनाव में केवल 20 से 25 सीटों पर ही संतोष करना पड़ सकता है. जहां शशिकला का राजनीति से संन्यास लेने के बाद अन्नाद्रमुक गठबंधन में अधिक भ्रम नहीं है, वहीं DMK गठबंधन में आधा दर्जन से अधिक सहयोगी दलों के बीच सीटों की मारामारी है. इस सबके बीच इन नेताओं पर सभी की निगाहें एम करुणानिधि (M Karunanidhi) के बेटे और एमके स्टालिन के सौतेले भाई एमके अलागिरी (MK Alagiri) टिकी रहेंगी. एमके अलागिरी (MK Alagiri), एम करुणानिधि (M Karunanidhi) के बेटे जरूर हैं, पर DMK में एमके स्टालिन (MK Stalin) से वो वर्चस्व की लड़ाई हार गए थे.

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वर्चस्व की लड़ाई के चलते स्टालिन ने उन्हें डीएमके के निष्कासित कर दिया था. डीएमके से अलग होने के बाद से अलागिरी ने अपनी अलग पार्टी बनाई है. जनवरी में उन्होंने मदुरै में एक रोड शो के दौरन डीएमके पार्टी पर जमकर निशाना साधा था. उन्होंने कहा कि उनकी पूर्व पार्टी ने उनके साथ विश्वासघात किया है और करुणानिधि को भी भूल गए हैं. दोनों भाईयों की लड़ाई की वजह से साल 2016 में एआईडीएमके (AIDMK) एक बार फिर से सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही थी. 1984 के बाद राज्‍य में पहली बार ऐसा हुआ था जब कोई पार्टी सत्‍ता में वापस लौटी हो. 

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राजनीतिक करियर 

70 के दशक में अलागिरी ने प्रेसिडेंसी कॉलेज से पढ़ाई पूरी की और अपने ही गृहजनपद चेन्‍नई में उन्‍होंने बीए किया. 1989 में उन्‍होंने अधिकारिक रूप से कोई पद नहीं लिया, लेकिन लोगों के बीच में वे सक्रिय नेता के रूप में उभरे. 2008 में अलागिरी की पार्टी ने 3 उपचुनाव जीते. उन्‍हें दक्षिणी राज्‍य में ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी बनाया गया. अलागिरी ने मदुरै लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और शानदार जीत दर्ज की. उसी साल वे रसायन एवं उर्वरक मंत्री भी बने. जनवरी 2014 में करुणानिधि ने अलागिरी को पार्टी से बाहर कर दिया था. 2018 में जब करुणानिधि का निधन हुआ तो अलागिरी ने यहां तक कह दिया था कि स्‍टालिन के नेतृत्‍व में पार्टी बर्बाद हो जाएगी.

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अलागिरी जब डीएमके में थे तो दक्षिण जोन की कमान उनके हाथ में थी लेकिन वह पिछले छह साल से राजनीतिक पटल से दूर हैं. हालांकि बीजेपी ने 2021 के विधानसभा चुनावों में डीएमके को हराने का जो टारगेट रखा है, उसमें अलागिरी उसके काम आ सकते हैं. अलागिरी की मदुरै वाले इलाके में पकड़ है. स्‍टालिन के सामने अलागिरी सबसे तगड़ी चुनौती दक्षिणी तमिलनाडु में ही पेश कर सकते हैं.

HIGHLIGHTS

  • एमके स्टालिन के सौतेले भाई हैं एमके अलागिरी
  • DMK में स्टालिन से वो वर्चस्व की लड़ाई हार गए थे
  • करुणानिधि ने अलागिरी को DMK से बाहर कर दिया था

Source : News Nation Bureau

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