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UP चुनाव से पहले फिर से सुर्खियों में छोटे दल, क्या है जातीय समीकरण में रोल ?

वर्ष 2017 में भाजपा ने ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) और बाद में निषाद पार्टी के साथ गठबंधन करके गैर-यादव अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) के बीच अपनी पहुंच का विस्तार किया था.

Updated on: 21 Jan 2022, 12:24 PM

highlights

  • राज्य में चुनाव से पहले हर तरफ बड़ी पार्टियां कुछ जाति-केंद्रित पार्टियों को जोड़ने में जुटी है
  • कुछ हज़ार वोट भी उम्मीदवारों की संभावना बना या बिगाड़ सकते हैं
  • 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के लिए सेमीफाइनल के तौर पर देखते हैं

लखनऊ:

UP Election 2022 : यूपी विधानसभा (UP Election) चुनावों से पहले संख्यात्मक रूप से महत्वपूर्ण जातियों पर अपनी पकड़ बनाने की वजह से कई छोटे दल इस बार सुर्खियों में हैं. जैसा कि यूपी में पिछले रुझानों से संकेत मिलता है कि एक पार्टी को चुनाव जीतने के लिए दो से अधिक प्रमुख जाति समुदायों के समर्थन की जरूरत होती है. सपा (SP) और बसपा (BSP) के जातिगत फॉर्मूले को तोड़ने के लिए बीजेपी (BJP) हिंदू एकीकरण पर काम कर रही है. राज्य में चुनाव से पहले हर तरफ बड़ी पार्टियां कुछ जाति-केंद्रित पार्टियों को जोड़ रही हैं, क्योंकि कुछ हज़ार वोट भी उम्मीदवारों की संभावना बना या बिगाड़ सकते हैं. यहां विभिन्न फॉर्मूलेशन पर एक नजर है जो यूपी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. 

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चुनाव में इन जातियों के वोट महत्वपूर्ण

साहू, कश्यप, सैनी, कुशवाहा, मौर्य, शाक्य, पाल, धनगर, गदेरिया, कुम्हार, निषाद और मल्ल जैसी जातियों के वोट मायने रखती है. वर्ष 2017 में भाजपा ने ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) और बाद में निषाद पार्टी के साथ गठबंधन करके गैर-यादव अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) के बीच अपनी पहुंच का विस्तार किया था. एसबीएसपी ने 2019 के बाद योगी आदित्यनाथ कैबिनेट और गठबंधन को छोड़ दिया और अब समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया है.

ब्राह्मण वोट

उत्तर प्रदेश में 10 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर वाले ब्राह्मण चुनाव से ठीक पहले सभी दलों के ध्यान का केंद्र बन गए हैं. भाजपा, सपा और बसपा ने ब्राह्ण समुदाय की बैठकें कीं. भाजपा के मुख्यमंत्री ने पूर्व मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत की जयंती मनाई, जो कांग्रेस से थे.

जाति जनगणना और लखनऊ की लड़ाई

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने जाति जनगणना की मांग उठाई थी. इसे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की कट्टर प्रतिद्वंद्वी मायावती के साथ-साथ भाजपा के अपने गठबंधन सहयोगी अपना दल और निषाद पार्टी का भी समर्थन मिला.

कुर्मी समुदाय और निषाद पार्टी

निषाद पार्टी के निषाद (मछुआरे) समुदाय के सदस्यों की संख्या काफी अधिक है, जो राज्य के लगभग छह लोकसभा क्षेत्रों में बड़ी संख्या में हैं. अनुप्रिया पटेल के अपना दल (एस) का ओबीसी कुर्मी समुदाय के बीच प्रभाव है. वर्ष 2018 में सपा ने गोरखपुर लोकसभा सीट से संजय निषाद के बेटे प्रवीण को अपना उम्मीदवार बनाया था और उपचुनावों में भाजपा को हरा दिया था. इस सीट से पांच बार के सांसद योगी आदित्यनाथ ने संवैधानिक स्थिति का ध्यान में रखते हुए एमएलसी बनने पर इसे खाली कर दिया था. योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों में निषाद पार्टी को अपने पक्ष में कर लिया और संत कबीर नगर से अपने चिह्न पर प्रवीण निषाद को मैदान में उतारा. वह चुनाव जीत गए और वर्तमान में भाजपा सांसद हैं. भाजपा ने घोषणा की है कि निषाद पार्टी और अपना दल (एस) दोनों इस बार उसके गठबंधन का हिस्सा हैं. 

राजभर

राजभर पूर्वांचल आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और पूर्वी यूपी में यादवों के बाद दूसरा सबसे अधिक राजनीतिक रूप से प्रभावशाली समुदाय माना जाता है. राजभर ने शुरुआत में असदुद्दीन ओवैसी के एआईएमआईएम के साथ भगदारी संकल्प मोर्चा बनाया, लेकिन बाद में उन्होंने सपा से हाथ मिला लिया. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में 200 से अधिक पंजीकृत दलों ने अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, जबकि 2017 में देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य में 290 दलों ने चुनावी लड़ाई में छलांग लगाई थी. 
समाजवादी पार्टी में राष्ट्रीय लोक दल (रालोद), महान दल और जनवादी सोशलिस्ट पार्टी और कुछ अन्य छोटे दल भी हैं. 
महान दल से कुछ सबसे पिछड़ी जातियों के वोट लाने की उम्मीद है. महान दल का शाक्य, सैनी, मौर्य और कुशवाहा समुदायों के बीच एक काफी आधार है, जो पूरे ओबीसी वर्ग का लगभग 14 प्रतिशत है.

छोटे दलों का प्रभुत्व

संजय सिंह चौहान की जनवादी सोशलिस्ट पार्टी को भी बिंद और कश्यप समुदायों के सदस्यों से ताकत मिलती है जो एक दर्जन से अधिक जिलों में बड़ी संख्या में हैं. महान दल, जनवादी सोशलिस्ट पार्टी और शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) ने अखिलेश यादव के साथ हाथ मिलाया है. चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) शुरू में सपा के साथ गठबंधन करती दिख रही थी, लेकिन फिर बात नहीं बनी. जाति-आधारित संगठनों को उम्मीद है कि हिंदुत्व के बड़े ढांचे के तहत पिछड़ी जातियों को एकजुट करने के लिए आरएसएस-बीजेपी गठबंधन द्वारा शुरू किए गए अभियान को झटका लगेगा और सत्ता में उनका बड़ा दबदबा है. कई लोग यूपी विधानसभा चुनाव को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी सरकार के लिए सेमीफाइनल के तौर पर देखते हैं. फिलहाल यह चर्चा जरूर है कि क्या बीजेपी लगातार दूसरी बार सत्ता में वापस आ सकती है.