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सीएम के लिए नीतीश पर तो हां, मगर स्पीकर के लिए हो सकती है NDA में 'जंग'

बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रित गठबंधन (एनडीए) को बहुमत मिलने के बाद अब राज्य में सरकार गठन को लेकर मंथन शुरू हो गया है.

Updated on: 13 Nov 2020, 01:48 PM

पटना:

बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रित गठबंधन (एनडीए) को बहुमत मिलने के बाद अब राज्य में सरकार गठन को लेकर मंथन शुरू हो गया है. एनडीए ने नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ा और नतीजों के बाद भी गठबंधन के घटक दल नीतीश कुमार को ही सत्ता की कुर्सी पर बैठाने के लिए एकमत हैं. इस चुनाव में राज्य की दूसरी सबसे बड़ी और एनडीए में पहले नंबर की पार्टी बीजेपी भी नीतीश कुमार को सीएम की कुर्सी देने के स्टैंड पर कायम है. मगर एनडीए के सामने असल चुनौती स्पीकर के नाम को लेकर हो सकती है.

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बिहार में एनडीए को जिस तरह से जनादेश मिला है, उससे विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका काफी अहम होगी. मसलन स्पीकर की कुर्सी पर एनडीए में मतभेद हो सकता है. क्योंकि बीजेपी और जदयू दोनों की ही नजरें स्पीकर की कुर्सी पर रह सकती हैं. एनडीए में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बीजेपी इस पद पर अपनी दावेदारी ठोक सकती है, जबकि जदयू चाहेगी कि इस कुर्सी पर उसके ही नेता को बैठाया जाए. लिहाजा स्पीकर की कुर्सी एनडीए में जंग की वजह बन सकती है.

ऐसा इसलिए भी, क्योंकि 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार ने महागठबंधन में राजद से 10 सीटें कम जीती थीं. फिर भी जदयू ने स्पीकर का पद नहीं छोड़ा था, जबकि लालू अपनी के नेता को इस कुर्सी पर बैठाना चाहते थे. उस वक्त स्पीकर का दांव नीतीश कुमार के काम आया. 2017 में नीतीश ने लालू का साथ छोड़ दिया था और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. हालांकि राजद की स्पीकर की कुर्सी छोड़ने का काफी मलाल था, क्योंकि तेजस्वी यादव ने बहुमत होने का दावा किया, मगर उसका कोई असर नहीं पड़ा.

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इस बार भी स्थिति कुछ ऐसी ही नजर आ सकती है. जो चुनाव नतीजे आए हैं, उनमें किसी भी अकेले दल को बहुमत नहीं है. चुनाव परिणामों में एनडीए ने 125 सीटें जीती थीं. जिनमें से बीजेपी को 74 और जदयू को 43 सीटें मिली हैं. बीजेपी से छोटी पार्टी होने पर भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी दी जा रही है. मगर उनके लिए इस बार स्थिति पहले जैसी नहीं रहेगी. अब तक बिहार में नीतीश सिर्फ बीजेपी के साथ सरकार चलाते रहे हैं, लेकिन इस बार बिहार एनडीए में 4 दल शामिल हैं.

सबसे बड़ी बात यह है कि एनडीए दो अन्य दल हम और वीआईपी पार्टी को अलग भी नहीं कर सकता है, क्योंकि इन दोनों पार्टियों के 4-4 विधायकों को साथ लेकर ही उसे बहुमत मिला है. ऐसे में नीतीश कुमार पर सरकार में सहयोगी दलों का दबाव भी रहने वाला है. ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है. मसलन जिस पार्टी का भी स्पीकर होगा, उस पार्टी का सियासी रूप से पलड़ा भारी रहेगा. हां ये बात अलग है कि अगर एनडीए और महागठबंधन में शामिल छोटे दल इधर-उधर होते हैं तो बिहार में सत्ता की सियासी तस्वीर बदल जाएगी.