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Uttarakhand Assembly Election 2022 : उत्तराखंड के चुनावी मुद्दे और सियासी समीकरण

कोरोना महामारी के बीच देवभूमि उत्तराखंड में चुनाव प्रक्रियाओं के बीच वहां के हालात, प्रमुख राजनीतिक मुद्दे, मुख्यमंत्री पद के संभावित चेहरे, दलीय समीकरण, चुनाव आयोग की तैयारी और प्रचार अभियान के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं. 

Updated on: 09 Feb 2022, 02:22 PM

highlights

  • उत्तराखंड 2 मंडल कुमाऊं, गढ़वाल और 13 जिलों में फैला है
  • चुनाव आयोग के मुताबिक उत्तराखंड में 81.43 लाख मतदाता हैं
  • अलग राज्य बनने के बाद से उत्तराखंड में एक भी नया जिला नहीं

नई दिल्ली:

इस साल पहली छमाही में देश के पांच राज्यों में चुनाव की प्रक्रिया जारी है. पर्वतीय राज्य उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों पर 14 फरवरी को मतदान किया जाएगा. उत्तराखंड, पंजाब और गोवा इन तीन राज्यों में एक ही चरण में मतदान होंगे. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए आयोग की ओर से घोषित कार्यक्रम के मुताबिक अधिसूचना 21 जनवरी को जारी होगी और इसकी अंतिम तिथि 28 जनवरी होगी. नामांकन की स्क्रूटनी 29 जनवरी को होगी. उम्मीदवारी यानी नाम वापस लेने की अंतिम तिथि 31 जनवरी तक होगी. इसके बाद मतदान 14 फरवरी को और पांच राज्यों के साथ ही यहां की मतगणना भी 10 मार्च को होगी. उत्तराखंड में पिछली बार यानी साल 2017 में 15 फरवरी को वोट डाले गए थे और नतीजे की घोषणा 11 मार्च को हुई थी.

उत्तराखंड 2 मंडल कुमाऊं और गढ़वाल और 13 जिलों में फैला है, इस पर्वतीय राज्य में राज करने के लिए क्षेत्रीय संतुलन बैठाना सियासत की पहली शर्त माना जाता है. कोरोना महामारी के बीच देवभूमि उत्तराखंड में चुनाव प्रक्रियाओं के बीच वहां के हालात, प्रमुख राजनीतिक मुद्दे, मुख्यमंत्री पद के संभावित चेहरे, दलीय समीकरण, चुनाव आयोग की तैयारी और प्रचार अभियान के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं. 

कोविड-19 पर ECI की राय

देश के मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चन्द्रा के मुताबिक जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे है वहां पर कोरोना महामारी और चुनाव से जुड़ी तैयारियों पूरा जायजा लिया गया है. आयोग ने राज्यों के पॉजिटिविटी रेट और वैक्सीनेशन की पूरी जानकारी भी ली थी. चुनाव आयोग का कहना है कि उत्तराखंड में वीकली पॉजिटिविटी रेट 1.01 प्रतिशत था. साथ ही उत्तराखंड में 99.6 प्रतिशत लोगों को कोरोना वैक्सीन की पहली खुराक लग चुकी है. वहीं 83 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन की दूसरी खुराक भी दी जा चुकी है.

मतदान की तैयारी

चुनाव आयोग के मुताबिक उत्तराखंड राज्य में 81.43 लाख मतदाता हैं. इस साल इसमें 1.98 लाख नए महिला और 1.06 लाख पुरुष मतदाता जुड़े हैं. चुनाव आयोग ने बताया है कि उत्तराखंड में वोट डालने के लिए मतदाताओं को एक घंटे का अतिरिक्त समय मिलेगा. मतदान अब सुबह आठ से शाम छह बजे तक चलेगा. पहले इसकी अवधि सुबह आठ से शाम पांच बजे तक तय थी. बाकी चुनावी राज्यों की तरह यहां भी बीमार, बुजुर्ग और कोरोना मरीजों से घर जाकर वोट लिए जा सकते हैं.

बड़े चुनावी मुद्दे

साल 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर राज्य बनने के बाद से उत्तराखंड में एक भी नया जिला नहीं बना है. कांग्रेस ने सरकार में आने पर 9 नए जिले बनाने का वादा किया है. आम आदमी पार्टी ने वादा किया है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो 6 नए जिले बनाएंगे. वहीं सत्तारुढ़ बीजेपी का कहना है कि नए जिलों के गठन के लिए बनाए गए आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही कोई फैसला लिया जाएगा.

रोजगार के अवसर नहीं होने के कारण पहाड़ी इलाकों से लोगों का पलायन भी उत्तराखंड में शुरुआत से चुनाव का बड़ा मुद्दा है. पलायन यहां इतना बड़ा मुद्दा है कि सरकार ने इसके लिए पलायन आयोग तक गठित कर रखा है. आयोग की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड से करीब 60 प्रतिशत आबादी घर छोड़ चुकी है. बेरोजगारी पर विपक्ष का दावा है कि राज्य में बेरोजगारी का दर औसत राष्ट्रीय दर से दुगनी हो चुकी है.

इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने उत्तराखंड में भ्रष्टाचार को लेकर पहले की और मौजूदा सरकार पर निशाना साधा है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों पर आक्रामक तरीके से हमलावर आम आदमी पार्टी उत्तराखंड में बिजली, पानी वगैरह जनसुविधाओं को भी चुनावी मुद्दा बना रही है.

देवस्थानम बोर्ड, चारधाम यात्रा, प्राकृतिक आपदा से निपटने की तैयारी, नए उद्योग लगाने और मैदानी इलाकों में खेती वगैरह के स्थानीय मुद्दे भी चुनाव में सामने आ सकते हैं. 

मुख्यमंत्री पद के दावेदार

उत्तराखंड में मौजूदा और एक पूर्व मुख्यमंत्री के बीच कड़ी टक्कर बताई जा रही है. वहीं एक चेहरा नई पार्टी की ओर से भी सामने आया है. मुख्यमंत्री पद के पहले दावेदार मौजूदा सीएम पुष्कर सिंह धामी तो विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही इस पद पर लाए गए हैं. पिछली बार 70 में 57 सीटों पर जीत हासिल कर सरकार बनाने वाली  बीजेपी ने इस चुनाव में उनको मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया है. कांग्रेस ने इस चुनाव में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. इसके बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़ा दावेदार बताया जा रहा है. वहीं आम आदमी पार्टी की ओर से 26 साल तक सेना में अपनी सेवाएं दे चुके कर्नल अजय कोठियाल मुख्यमंत्री पद का चेहरा हैं. बीते 17 अगस्त को ही पार्टी के मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर उनके नाम का ऐलान कर दिया था. 

प्रचार अभियान के बड़े चेहरे

पिछले एक साल में राज्य में तीन मुख्यमंत्री बदल चुकी सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के लिए चुनाव प्रचार का सबसे बड़ा चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही होंगे. उत्तराखंड में रैली करके पीएम मोदी ने एक तरह से चुनाव प्रचार की शुरुआत भी कर दी है. कांग्रेस पार्टी की ओर से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी प्रचार के बड़े चेहरे होंगे. उत्तराखंड में प्रियंका गांधी 9 जनवरी को दो रैलियां करके चुनाव प्रचार की शुरुआत करने वाली थीं, जो कोरोना के बढ़ते मामलों के कारण रद्द कर दी गईं. केस बढ़ते हैं तो भी वर्चुअल प्रचार अभियान में राहुल और प्रियंका कांग्रेस के चुनाव प्रचार का चेहरा होंगे. वहीं आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगातार उत्तराखंड के दौरे कर वोटर्स के लिए नए-नए ऐलान कर रहे हैं. इसके साथ ही अपनी पार्टी के सबसे बड़े चुनावी चेहरे के तौर पर वो स्थापित हो चुके हैं.

धार्मिक और जातीय समीकरण

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में की आबादी इस समय लगभग एक करोड़ है. वहीं अगर धर्म आधारित जनसंख्या की बात करें तो इस समय 83 फीसदी जनसंख्या हिदुओं की है. दूसरे नंबर पर मुस्लिम आते हैं जिनकी संख्या 13.9 फीसदी है. 2001 में मुस्लिम आबादी राज्य में 11.9 फीसद थी. तीसरे नंबर पर सिख की आबादी 2 फीसदी है. राज्य में जैन, बौद्ध, ईसाई और दूसरे धर्मों के लोगों की आबादी 1 फीसदी से भी कम है.

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वहीं साल 2011 में हुई जनगणना के अंतिम आंकड़ों के अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या में संयुक्त रूप से अनुसूचित जाति व जनजाति लोगों की जनसंख्या 21, 84,419 है. यह राज्य की कुल जनसंख्या के 21.65 फीसदी हैं. वहीं उत्तराखंड में ठाकुर (राजपूत) वोट सबसे ज्यादा है. करीब 35 फीसदी वोटर इस समुदाय से आते हैं. उसके बाद ब्राह्मण वोट है, जो करीब 25 फीसदी तक है. बाकी 21 विधानसभा सीटों पर ओबीसी वोटर्स का प्रभाव भी बताया जाता है.