पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का है पुराना इतिहास, 1977 से 2007 तक 28 हजार लोग मारे गए
हिंसा और भ्रष्टाचार के खिलाफ ममता बनर्जी ने संघर्ष किया था और सत्ता में आईं. अब ममता के राज में हिंसा का आरोप लग रहा है. इस बार यह आरोप बीजेपी लगा रही है. बीजेपी का आरोप है कि तृणमूल के 10 साल के राज में उसके सैकड़ों कार्यकर्ताओं को मार दिया गया.
highlights
- पश्चिम बंगाल के चुनाव में हिंसा का पुराना इतिहास रहा है
- साल 1977 से 2007 के बीच 28 हजार राजनीतिक हत्याएं हुईं
- ममता बनर्जी ने लेफ्ट पर हिंसा करने का आरोप लगाया था
नई दिल्ली:
पश्चिम बंगाल चुनावों में हमेशा से हिंसा को लेकर सवाल उठते रहे हैं. सत्ता में आने से पहले ममता बनर्जी लेफ्ट पर हिंसा का आरोप लगाती रहती थीं. उसी हिंसा और भ्रष्टाचार के खिलाफ उन्होंने संघर्ष किया और सत्ता में आईं. अब ममता के राज में हिंसा का आरोप लग रहा है. इस बार यह आरोप बीजेपी लगा रही है. बीजेपी का आरोप है कि तृणमूल के 10 साल के राज में उसके सैकड़ों कार्यकर्ताओं को मार दिया गया. इसी प्रकार की हिंसा का आरोप टीएमसी बीजेपी पर लगाती है.
बंगाल चुनाव में हिंसा वाले बयान
- 31 दिसंबर 2020 को पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि हिंदू युवाों को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए अब हथियार उठाना होगा. अगर कोई कायर ऐसा नहीं करने को कहता है तो उसकी गर्दन दबोच लो.
- 31 दिसंबर 2020 को दिलीप घोष ने कहा कि भगवान रामचंद्र बचपन से धनुष उठाते थे और इसी से शैतानों का संहार किया. भगवान कृष्ण ने भी पुतना का संहार किया था, जब वो महज 6 दिन के थे. अगर कोई अहिंसा की बात करता है तो उसके कान के नीचे मारो.
- 31 दिसंबर 2020 को दिलीप घोष ने कहा कि अगर जरूरत पड़े तो हमें हथियार भी उठाना होगा. कानून की नजर में भी यह अपराध नहीं है. हमारी आंखों के सामने मां-बहनों को परेशान किया जा रहा है और हमलोग पुलिस स्टेशन में गुहार लगा रहे हैं. ऐसे मामलों में हमें पहले बदला लेना चाहिए फिर पुलिस स्टेशन जाना चाहिए.
- 8 नवंबर 2020 को बीजेपी अध्यक्ष ने कहा कि 6 महीने में सुधर जाएं ममता दीदी के लोग, नहीं तो हड्डी-पसली तोड़ देंगे'
- 16 जनवरी 2021 को टीएमसी सांसद नुसरत जहां ने कहा कि आप लोग अपनी आंख खोलकर रखें, बीजेपी जैसा खतरनाक वायरस घूम रहा है. यह पार्टी धर्म के बीच भेदभाव और लोगों के बीच दंगे कराती है. अगर बीजेपी सत्ता में आई तो मुसलमानों की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी."
- 16 जनवरी 2021 को टीएमसी नेता मदन मित्रा ने कहा कि बीजेपी के लोग सुन लें, दूध मांगोगे तो खीर देंगे, अगर बंगाल मांगोगे तो चीर देंगे.
- बंगाल चुनाव विवादित बयान
- 19 जनवरी 2021 को कोलकाता की एक रैली के दौरान टीएमसी समर्थकों ने नारे लगाए....टीएमके समर्थकों ने नारे लगाते हुए इस रैली के दौरान कहा- बंगाल के गद्दारों को, गोली मारो... को.
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राजनीति हत्याओं का घटनाक्रम
- 26 नवंबर 2020 को बंगाल प्रदेश बीजेपी के उपाध्यक्ष रीतेश तिवारी ने आरोप लगाया कि पिछले दो साल में 120 से अधिक बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई है. इनमें बीजेपी के पूर्व विधायक भी शामिल हैं.
- 22 दिसंबर को बीजेपी कार्यकर्ता अशोक सरदार की हत्या कर दी गई है. बीजेपी ने आरोप लगाया है कि टीएमसी के गुंडों ने गोली माकर अशोक सरकार की हत्या कर दी है.
- 12 दिसंबर को उत्तरी 24 परगना जिले में बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या हुई थी.
- 12 नवंबर 2020 को पश्चिम बंगाल के पूर्वी-मेदिनीपुर के इटाबेड़िया इलाके में एक बीजेपी कार्यकर्ता गोकुल जेना की हत्या का कर दी गयी. गोकुल के शरीर पर लाठी डंडों के निशान पाए गए थे.
- 12 नवंबर को एक और बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई है. वहीं अलीपुरद्वार जिले के जयगांव क्षेत्र में प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष के काफिले पर पत्थर फेंके गए और काले झंडे दिखाए गए.
- 18 नवंबर 2020 को बीजेपी के बूथ कमेटी के सचिव कालाचांद कर्मकार की कूचबिहार जिले के तूफानगंज के नकटीगाछ ग्राम पंचायत के चमटा के करमापाड़ा में हत्या कर दी गई.
- 1 नवंबर 2020 को नादिया जिले के गयेश्पुर में बीजेपी के एक कार्यकर्ता बिजॉय शील का शव पेड़ से लटका मिला.
- 27 अक्टूबर 2020 को पश्चिम मेदिनीपुर जिले में एक गांव के बाहर बीजेपी के एक कार्यकर्ता बच्चू बेरा का शव पेड़ से लटकता पाया गया जो पिछले 24 घंटे से लापता था.
- 5 अक्टूबर 2020 को उत्तर 24 परगना जिले में बीजेपी नेता मनीष शुक्ला की कुछ लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी.
- 14 सितंबर 2020 को बीजेपी कार्यकर्ता संबरू बर्मन को कूच बिहार में उनके घर के पास सड़क पर घायल अवस्था में पाया गया. इस दौरान उन्हें काफी चोट लगी थी. स्थानीय अस्पताल में ले जाने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. पुलिस ने कहा कि यह एक ‘अप्राकृतिक मौत का मामला’ था.
- 28 जुलाई 2020 को पूर्व मेदिनीपुर जिले के हल्दिया में बीजेपी के एक बूथ अध्यक्ष का का शव बरामद हुआ.
- 30 जुलाई 2020 को दक्षिण 24 परगना के मथुरापुर में बीजेपी बूथ सचिव गौतम पात्र का शव भी पेड़ से लटका मिला.
- 13 जुलाई 2020 को उत्तर बंगाल के हेमताबाद विधानसभा क्षेत्र के बीजेपी विधायक देवेंद्र नाथ राय का शव उनके घर से कुछ दूरी पर रस्सी से लटकता बरामद किया गया. विधायक के स्वजनों तथा पार्टी ने हत्या की आशंका जताई थी.
- 10 अक्टूबर 2019 को मुर्शिदाबाद में एक RSS कार्यकर्त्ता के परिवार के पूरे परिवार की हत्या कर दी गई. अज्ञात अपराधियों ने 8 साल के बेटे और गर्भवती पत्नी सहित आरएसएस कार्यकर्ता की बड़ी बेरहमी से धारदार हथियार से काट कर हत्या की गई थी.
- 1 जुलाई 2019 को मिदनापुर जिले में एक बीजेपी नेता गणपति मोहता की झारग्राम में अज्ञात बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी, मोहता एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद अपनी मोटर साइकिल से अपने घर वापस लौट रहे थे कि तभी रास्ते में अज्ञात बदमाशों ने उन्हें घेरकर उनपर हमला बोल दिया और उनके ऊपर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं.
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पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का रक्तरंजित इतिहास
बंगाल में राजनीतिक हिंसा का इतिहास कोई नई बात नहीं है. पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का रक्तरंजित इतिहास रहा है. राज्य में राजनीतिक हिंसा की शुरुआत 1960 के दशक में हुई. इस राजनीतिक हिंसा के पीछे राजनीतिक झड़पों में बढ़ोत्तरी के पीछे मुख्य तौर पर तीन अहम कारण हैं.
राज्य में बढ़ती बेरोजगारी, विधि शासन पर सत्ताधारी दल का वर्चस्व इसका प्रमुख कारण है. इसके अलावा एक अन्य प्रमुख कारण यह भी है कि जिस तरह से दीदी के गढ़ में बीजेपी का उभार हुआ है, उससे यहां तनाव में इजाफा हुआ है.
1977 से 2007 तक 28 हजार राजनीतिक हत्याएं
पश्चिम बंगाल विधानसभा में एक जनप्रतिनिधि की ओर से पूछे सवाल के जवाब बताया गया कि 1977 से 2007 तक लेफ्ट फ्रंट की सरकार सत्ता में रही. इस दौरान पश्चिम बंगाल में 28 हजार राजनीतिक हत्याएं हुईं. सिंगूर और नंदीग्राम का आंदोलन भी वाम हिंसा का एक नमूना माना जाता है.
ढेरों घटनाएं ऐसी हैं जो कभी दर्ज ही नहीं हुईं. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव 2014 के विभिन्न चरणों में दौरान 15 राजनीतिक हत्याएं हुईं. प्रदेश भर में राजनीतिक हिंसा की 1100 घटनाएं पुलिस ने दर्ज की. गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2013 से लेकर मई 2014 के काल में पश्चिम बंगाल में 23 से अधिक राजनीतिक हत्याएं वहां पर हुईं.
आंकड़ों मुताबिक साल 2016 में बंगाल में राजनीतिक कारणों से 91 घटनाएं हुईं, जिसमें 205 लोगों की मौत हुई थी. साल 2015 में कुल 131 वारदात हुई थी, जिसमें 184 लोगों की मौत हुई थी. ममता के सत्ता संभालने के दो साल बाद 2013 में भी बंगाल में राजनीतिक वजहों से 26 लोगों की हत्या हुई थी और ये हिंसा देश के किसी भी राज्य से कहीं ज्यादा थी. जब 2018 में सिर्फ और सिर्फ पंचायत के चुनाव हुए तो एक दिन में 18 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.
2018 पंचायत चुनाव में हिंसा की घटनाएं
पश्चिम बंगाल में 2018 पंचायत चुनावों के दौरान हुई व्यापक हिंसा को लेकर बीजेपी ने दावा किया था कि चुनाव के दौरान पार्टी के 52 कार्यकर्ताओं की हत्या टीएमसी ने कराई जबकि टीएमसी ने दावा किया था कि उसके 14 कार्यकर्ता मारे गए थे.
लोकसभा चुनाव 2019 में बंगाल में हिंसा
बंगाल में लोकसभा चुनाव के दौरान हिंसा में 12 से ज्यादा लोगों की मौत हुई. पश्चिम बंगाल में हर चरणों के मतदान में लगातार हिंसा देखने को मिली थी. इस दौरान अलीपुरदुआर और कूच बिहार में टीएमसी और बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच हिंसा की खबर आई थी. रायगंज के इस्लामपुर में सीपीआई-एम सांसद मोहम्मद सलीम की कार पर कथित तौर पर टीएमसी समर्थकों के पत्थरों और डंडों से हमले की बात सामने आई. हिंसा की कई शिकायतें मिली और बमबाजी तक की खबरें आईं. आसनसोल में टीएमसी कार्यकर्ताओं और सुरक्षाबलों में जमकर झड़प हुई. इस सियासी हिंसा में कई ऐसे मौके भी आए हैं, जब सरेआम कानून की खिल्ली उड़ी और पुलिस तमाशबीन बनी रही.
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इस राज्य में सरकार अपनी पार्टी के कैडरों को संरक्षण देने के लिए सीधे प्रशासन में हस्तक्षेप करती है, जिससे कानून का शासन संभव नहीं हो पाता. सत्तारुढ़ पार्टी के कार्यकर्ता पंचायत से लेकर राज्य स्तर के ठेकों पर प्रभुत्व जमाने के लिए बल और हिंसा का प्रयोग करते हैं. वे दूसरे दल के लोगों को दबा कर रखते हैं.
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