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Bihar Election 2020: जानें छातापुर विधानसभा क्षेत्र के बारें में

देखना होगा कि इस बार बिहार की जनता किसे सत्ता पर बैठाएगी और किसे बाहर का रास्ता दिखाएगी. लेकिन इससे पहले हम छातापुर विधानसभा सीट (Chatapur Vidhan Sabha constituency) के बारे में जानेंगे.

Updated on: 05 Nov 2020, 04:45 PM

पटना:

साल 2020 बिहार की जनता और यहां के नेताओं के लिए अहम साल हैं. इस साल बिहार में विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) होने है. ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टीयों ने पूरी तरह कमर कस ली हैं. विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता अपनी पार्टी के प्रचार और संगठन को मजबूत करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं. ऐसे में देखना होगा कि इस बार बिहार की जनता किसे सत्ता पर बैठाएगी और किसे बाहर का रास्ता दिखाएगी. लेकिन इससे पहले हम छातापुर विधानसभा सीट (Chhatapur Vidhan Sabha constituency) के बारे में जानेंगे.

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2015 के विधानसभा चुनाव में अररिया सीट के नतीजे-

वोटों की संख्या- 173198
पुरुष मतदाता- 53.03%
महिला मतदाता- 46.96%
वोटर टर्नआउट (Voter turnout)- 65%
विजेता का नाम- नीरज कुमार सिंह (बीजेपी), कुल वोट 75697 (43.71%)
उप-विजेता- जहुर आलम (आरजेडी), कुल वोट 66405 (38.35%)

छातापुर से अबतक चुने गए विधायक

  • 2015 नीरज कुमार सिंह बबलू (बीजेपी)
  • 2010 नीरज कुमार सिंह बबलू (जदयू)
  • 2005 (अक्टूबर) विश्व मोहन भारती (जदयू )
  • 2005 (फरवरी) महेंद्र नारायण सरदार (आरजेडी)
  • 2000 गीता देवी (राजद)
  • 1995 विश्व मोहन भारती (जनता दल )
  • 1990 योगेंद्र नारायण सरदार (जनता दल)

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छातापुर विधानसभा क्षेत्र के बारे में-

छातापुर, बसंतपुर प्रखंड सहित वीरपुर नगर पंचायत को मिलाकर यह विधानसभा क्षेत्र बना है. कोसी त्रासदी के बाद इलाके की सूरत बदल गयी थी जिसे पटरी पर लाने के लिए पिछले पांच सालों में कई विकास कार्य हुए हैं. सड़क हो या पुल-पुलिया या फिर बिजली सभी क्षेत्रों में समग्र विकास के प्रयास किए गए हैं. खासकर ध्वस्त हुई संरचना को पुनस्थापित करने के लिए सार्थक पहल की गयी है.

इतना ही नहीं सुरसर नदी के प्रकोप से बचाने के लिए स्थानीय विधायक द्वारा विधानसभा में कई बार सवाल उठाए गए लेकिन अब तक इस समस्या का निदान नहीं हो सका है जो इलाके के लिए चुनावी मुद्दा बन सकता है. 

वहीं कृषि प्रधान इलाका होने के कारण यहां की सबसे बड़ी समस्या मजदूरों के पलायन की है. पलायन में तेजी आने की वजह यह भी है कि कुसहा त्रासदी के बाद कई सीमांत किसानों के खेत में अब भी बालू भरा हुआ है जिसमें खेती करना किसी चुनौती से कम नहीं है. थक-हारकर ऐसे किसान भी अन्य प्रदेशों में मजदूरी करने को मजबूर हैं.