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Bihar Assembly Election : यूपीए में मची है रार तो एनडीए की राह भी नहीं है आसान

बिहार विधानसभा चुनाव करीब आते ही अब राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं. अमित शाह ने वर्चुअल रैली कर राज्‍य के राजनीतिक तापमान को और बढ़ा दिया है. अब बाकी दल भी इसी तरह की रैली की तैयारी कर रहे हैं.

Updated on: 10 Jun 2020, 01:49 PM

नई दिल्ली:

बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) करीब आते ही अब राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं. अमित शाह (Amit Shah) ने वर्चुअल रैली कर राज्‍य के राजनीतिक तापमान को और बढ़ा दिया है. अब बाकी दल भी इसी तरह की रैली की तैयारी कर रहे हैं. चुनाव करीब आने के साथ ही राज्‍य के दोनों धड़ों एनडीए और यूपीए में आपसी नूराकुश्‍ती तेज हो गई है. एनडीए की बात करें तो अमित शाह ने नीतीश कुमार के नेतृत्‍व में चुनाव मैदान में जाने की बात कही है तो लोजपा नेता चिराग पासवान लगातान नीतीश कुमार को निशाना बना रहे हैं. दूसरी ओर, यूपीए की बात करें तो जीतनराम मांझी को तेजस्‍वी यादव को नेता मानने को तैयार नहीं हैं. उनकी मांग है कि विधानसभा चुनाव शरद यादव को चेहरा बनाकर लड़ा जाए, जो राजद को कतई मंजूर नहीं होगा.

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एनडीए : लोकसभा चुनाव की तर्ज पर हो सकता है सीटों का बंटवारा

एनडीए में सीटों को लेकर तो अभी कोई बात नहीं बनी है लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि लोकसभा चुनाव की तरह ही 2020 के विधानसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय हो सकता है. बिहार में लोकसभा के 40 सीटों में से 17-17 सीटों पर जेडीयू-बीजेपी ने चुनाव लड़ा था. उपेंद्र कुशवाहा के यूपीए में जाने से उनकी पार्टी को दी गईं सीटें लोजपा के खाते में चली गई थीं. इस फॉर्मूले से एनडीए ने राज्‍य की 40 में 39 सीटों पर फतह हासिल की थी.

लोकसभा के फॉर्मूला पर सीट शेयरिंग होने पर जेडीयू-बीजेपी को 52 विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवारों को लेकर फेरबदल करने होंगे. क्योंकि 24 ऐसी सीटें हैं, जहां बीजेपी पहले और जेडीयू दूसरे नंबर पर थी, वहीं 28 सीटें ऐसी हैं, जहां जेडीयू पहले तो बीजेपी दूसरे नंबर पर थी. ऐसे में बीजेपी-जदयू 105-105 सीटों पर चुनाव लड़ सकती हैं और बाकी सीटें एलजेपी के खाते में जा सकती हैं. यह भी बताया जा रहा है कि आने वाले दिनों में अगर कोई पार्टी एनडीए का हिस्‍सा बनती है तो एलजेपी के खाते से ही उसे सीटें दी जाएंगी.

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यूपीए : अमित शाह की वर्चुअल रैली के बाद कांग्रेस पर बढ़ा दबाव

उधर, यूपीए के तमाम दलों ने अमित शाह की वर्चुअल रैली के बाद से चुनावी अभियान शुरू करने के लिए कांग्रेस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है. यूपीए की तीन पार्टियों ने कांग्रेस से कहा है कि वह गठबंधन से जुड़े मसलों को 15 दिन में सुलझा ले. दूसरी ओर, कांग्रेस ने 20 जून के बाद गठबंधन से जुड़े मसलों पर सहमति बनाकर चुनावी अभियान शुरू करने की बात कही है. इन तीनों पार्टियों ने यह भी कहा है कि विपक्ष का नेता कांग्रेस की तरफ से घोषित होना चाहिए, जबकि आरजेडी पहले ही तेजस्पी यादव को विधानसभा चुनाव में विपक्ष का चेहरा बता चुकी है.

जीतनराम मांझी की पार्टी की ओर से कहा गया है कि कोई खुद को कैसे मुख्‍यमंत्री पद का कैंडीडेट घोषित कर सकता है. महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार अगर कोई पार्टी खुद से घोषित कर देगी तो गठबंधन का मतलब ही क्या? हम महागठबंधन को महामजबूत रखने के लिए समन्वय समिति गठित करने की मांग करते हैं और जो भी फैसला होगा सर्वसम्‍मति से होना चाहिए. बता दें कि हाल के दिनों में जीतन मांझी की नीतीश कुमार से नजदीकियां बढ़ी हैं.

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वहीं वीआईपी पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी ने उम्मीद जताई है कि कांग्रेस के नेतृत्व में सभी मसले का जल्द हल निकाल लिया जाएगा. उन्होंने कहा कि 19 जून को होने वाले राज्यसभा चुनाव के बाद सभी दल मिलकर सीट शेयरिंग तक का मामला सुलझा लेंगे. उन्होंने कहा कि एनडीए की तैयारी को देखते हुए यूपीए को भी गंभीरता से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए.