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पंजाब में डेरों की चौखट पर नेताओं की आमद तेज, 56 सीटों पर है असर

सभी का मकसद एक ही था औऱ वह यह कि डेरा प्रमुख से आशीर्वाद लेकर उन्हें अपनी पार्टी के पक्ष में अपने भक्तगणों को मतदान करने के लिए प्रेरित करना.

Updated on: 31 Jan 2022, 02:28 PM

highlights

  • पंजाब के डेरों का है मतदाताओं पर खासा प्रभाव
  • अपने पक्ष में समर्थन जुटाने नेताओं की कतार
  • 117 में 56 विधानसभा सीट पर डेरों का असर

नई दिल्ली:

पंजाब विधानसभा चुनावों के लिए मतदान की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है, लगभग सभी दलों के नेताओं की सूबे के डेरों की चौखट पर आमद भी तेज होती जा रही है. पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने जालंधर के डेरा सचखंड बल्लां का हाल ही में दौरा किया, तो दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल और भारतीय जनता पार्टी के पंजाब प्रभारी गजेंद्र सिंह शेखावत भी मत्था टेकने पहुंचे. इन सभी का मकसद एक ही था औऱ वह यह कि डेरा प्रमुख से आशीर्वाद लेकर उन्हें अपनी पार्टी के पक्ष में अपने भक्तगणों को मतदान करने के लिए प्रेरित करना. गौरतलब है कि पंजाब की राजनीति में इन डेरों का अपना अलग महत्व है. इनके एक इशारे पर रातों रात चुनावी समीकरण बदल जाते हैं. 

आधा दर्जन हैं प्रमुख डेरे
पंजाब में लगभग आधा दर्जन प्रमुख डेरे हैं. ये हैं राधा सामी, नामधारी, डेरा सच्चा सौदा, नुरमहल, निरंकारी और डेरा सचखंड बल्लां. इन सभी डेरों के अनुयायी अच्छी-खासी तादाद में हैं. यही नहीं, इनकी रीति-नीति और विश्वास सभी धर्मों और उनकी परंपराओं का मिश्रण है. मसलन इस्लाम, सूफीवाद, कबीर पंथ, ईसाई और सिख पंथ. अगर राजनीतिक प्रभाव की बात करें तो इन सभी डेरों का पंजाब की 117 सदस्यीय विधानसभा की कम से कम 56 सीटों पर प्रभाव है. राधा सामी का 19, डेरा सच्चा सौदा का 27, डेरा नुरमहल का 8, डेरा निरंकारी का 4, डेरा बल्लां का 8 और डेरा नामधारी का दो पर सीधा प्रभाव पड़ता है. हालांकि यह भी सही है कि सभी डेरे राजनीति में सीधे तौर पर सक्रिय नहीं है. साथ ही किसी को सार्वजनिक तौर पर समर्थन भी नहीं देते हैं. 

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इन चुनावों में रातों रात बदले समीकरण
हालांकि डेरा सच्चा सौदा 2007 के विधानसभा चुनाव में चर्चा में आया था, जब उसने खुलेआम कांग्रेस को समर्थन देने की बात कह दी थी. इसका परिणाम यह निकला कि अकाली दल को उस चुनाव में काफी नुकसान उठाना पड़ा. लगभग 21 विधानसभा क्षेत्रों में उसके प्रत्याशी हार गए. इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा ने अकाली दल को समर्थन दे दिया. नतीजतन अकाली दल औऱ बीजेपी का गठबंधन सत्ता में आ गया. इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन के निदेशक प्रमोद कुमार कहते हैं कि डेरे अमूमन समाज के दलित शोषित तबके की बात करते हैं. इनके अनुयायियों में बड़ी संख्या भी इसी तबके की है. 

सीएम चन्नी होंगे कांग्रेस का दलित कार्ड
संभवतः यही वजह है कि कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को सूबे का सीएम बना कर दलित वोटबैंक को अपने पक्ष में करना चाहा है. अगर आंकड़ों की भाषा में बात करें तो पंजाब में करीब 32 फीसदी दलित वोट हैं. दोआबा की 23 सीट पर दलित मतदाताओं की अनुपात 42 फीसद है. पिछले यानी 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां से 15 सीट जीती थीं. ऐसे में कांग्रेस पार्टी को भरोसा है कि इस चुनाव में भी वह अपना प्रदर्शन और बेहतर करेगी, क्योंकि दोआबा दलित समाज का गढ़ है. इस जीत को पुख्ता करने के लिए सीएम चन्नी डेरा सचखंड बल्लां जा रहे हैं.

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मालवा खंड है काफी महत्वपूर्ण
गौरतलब है कि सीएम चन्नी मालवा से आते हैं. राजनीतिक पंडितों के मुताबिक विधानसभा चुनाव के बाद किसकी सरकार बनेगी इसका एक तरह से फैसला मालवा खंड करता है. मालवा में 69 विधानसभा सीटें हैं, जहां 31 फीसदी दलित मतदाता हैं. पिछली बार कांग्रेस पार्टी ने 40 सीट जीती थीं. इन मतदाताओं पर भी डेरों का अच्छा-खासा असर है. इस बात को सिर्फ कांग्रेस ही नहीं अन्य राजनीतिक दल भी समझ रहे हैं. संभवतः इसीलिए डेरों की परिक्रमा का दौर तेज हो गया है.