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पाठ्यक्रम में कटौती को लेकर गलत नैरेटिव सेट न करें : रमेश पोखरियाल निशंक

केंद्रीय मंत्री ने कहा, सिलेबस में कटौती को लेकर बिना जानकारी के कई तरह की बातें कही जा रही हैं. ये मनगढ़ंत बातें केवल सनसनी फैलाने के लिए की जा रही हैं. शिक्षा में राजनीति नहीं होनी चाहिए, शिक्षा से इसे दूर ही रखना चाहिए.

Updated on: 09 Jul 2020, 04:22 PM

नई दिल्ली:

कोरोना महामारी (Corona Virus Pandemic) को देखते हुए कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों के सिलेबस में कटौती की गई है. सीबीएसई (CBSE) ने पाठ्यक्रम को 30 प्रतिशत तक कम कर दिया है. यह कटौती केवल मौजूदा शैक्षणिक वर्ष तक सीमित रहेगी. हालांकि अब इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है. दिल्ली सरकार और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सीबीएसई के इस कदम पर प्रश्न उठाए हैं. विभिन्न लोगों और राज्य सरकारों द्वारा प्रश्न खड़े किए जाने के बाद अब केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने अपना पक्ष रखा है. केंद्रीय मंत्री ने कहा, सिलेबस में कटौती को लेकर बिना जानकारी के कई तरह की बातें कही जा रही हैं. ये मनगढ़ंत बातें केवल सनसनी फैलाने के लिए की जा रही हैं. शिक्षा में राजनीति नहीं होनी चाहिए, शिक्षा से इसे दूर ही रखना चाहिए.

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उन्होंने कहा, कोरोना के कारण उत्पन्न हुए मौजूदा हालात को देखते हुए सीबीएसई के सिलेबस में कक्षा 9 से 12 तक 30 प्रतिशत कटौती करने का निर्णय लिया गया है. निशंक ने कहा, सीबीएसई सिलेबस से कुछ टॉपिक्स को हटाए जाने को लेकर सनसनीखेज तरीके से टिप्पणियों को पेश किया जा रहा है. एक गलत नैरेटिव सेट किया जा रहा है. शिक्षा हमारे बच्चों के प्रति हमारा कर्तव्य है. विनम्र निवेदन है कि हमें शिक्षा से राजनीति को अलग रखना चाहिए. अपनी राजनीति को और अधिक शिक्षित बनाने की जरूरत है.

उन्होंने आगे कहा, कोरोनावायरस के कारण यह फैसला लिया गया है. तीन से चार टॉपिक्स जैसे राष्ट्रवाद, स्थानीय सरकार, संघवाद को सिलेबस से बाहर करने पर एक नैरेटिव बना लेना आसान है, लेकिन सभी विषयों के सिलेबस में कटौती की गई है.

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पाठ्यक्रम में सीबीएसई द्वारा की गई इस कटौती का असर 11वीं कक्षा में पढ़ाए जाने जाने वाले संघीय ढांचा, राज्य सरकार, नागरिकता, राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे अध्यायों पर दिखेगा. सीबीएसई ने इन सभी अध्यायों को मौजूदा एक वर्ष के लिए सिलेबस से हटा दिया है. वहीं 12वीं कक्षा के छात्रों को अब मौजूदा वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था का बदलता स्वरूप, नीति आयोग, जीएसटी जैसे विषय नहीं पढ़ाए जाएंगे.