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Gagan Gill Peom: हिंदी साहित्य की जानी-मानी कवि गगन गिल को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. उन्होंने इससे पहले कई पुरस्कार अपने नाम किए हैं. कविताएं उनकी दिल को छु लेती है. उन्होंने कई ऐसी कविताएं लिखी है जिन्हें आप पढ़ेंगे तो दिल को छू जाएगी. लड़कियों पर लिखी उनकी रचना इतनी गहरी है कि आंखे नम हो जाए. आपको जरूर पढ़नी चाहिए गगन गिल की ये कविताएं.
प्रेम में लड़की शोक करती है, शोक में लड़की प्रेम करती है
प्रेम में लड़की नाम रखती है, नाम जिसका रखती है माया है वह
माया, जिसकी इच्छा उसकी नींद में चलती है कभी वह इस माया को, पुकारती है बाबा कहकर
कभी कहती है, मनु, ओ मनु
कभी सोचने लगती है कोई बिल्कुल नया नाम! जानती है वह,
चाहे किसी भी नाम से पुकार ले उसे बचेगा हर नाम हवा का आकार भर,
इसी शोक से बचने के लिए प्रेम करती है लड़की,
प्रेम करते हुए लड़की सोचती है वह सुरक्षित है विस्मृति में,
लालसा में, स्वार्थ में, याद नहीं रहता उसे
कि लालसा है जिसके लिए ढेर है वह, मुट्ठी-भर हड्डियों का
हड्डियाँ, जो निकल आती हैं, बिजली की भट्ठी से बाहर सिर्फ पाँच मिनट बाद,
प्रेम करते हुए लड़की कुछ भी नहीं सोचती बस अपनी भारी सांस,
ले जाती है उसके सीने के पास सूंघती है उसकी मांस, मज्जा और आत्मा?
यहीं कहीं तो थी उसकी आत्मा? कब छू पाएगी उसे वह इस मुट्ठी भर कंकाल के भीतर?
इसी शोक में लड़की, प्रेम करती है
वहशत की हद तक, हर बार उसे लगता है अब के दीखने बंद हो जाएंगे,
उसे जिंदा आदमियों के जलते कंकाल अबके वह जिसे छुएगी, वह सुख होगा ख़ालिस सुख
हर बार वह डरकर, आदमी को जकड़ती है हर बार वह उससे, किसी जलती भट्ठी में छूट जाता है
शोक में लड़की प्रेम करती है, ऐसा प्रेम, ख़ुदा जिससे दुश्मनों को भी बचाए!
कुछ लड़कियों के पास घर नहीं होते
ख़यालों में भी नहीं
भला ख़यालों में भी क्यों नहीं?
ख़यालों में उनके बसते हैं
आँगन में खेलते हुए बच्चे
अख़बार पढ़ता आदमी
लॉन की कुर्सी पर,
हर पल दिमाग़ में चढ़ती
रसोई की गंध—
फूल ही फूल भरे रहते हैं उनकी आँखों में
ख़यालों में
ख़यालों में लड़कियाँ
जानती हैं,
कोई तूफ़ान छू नहीं सकता
उनके बच्चों को,
उनके आदमी को
ख़यालों में उन्हें इत्मीनान रहता है
कि कोई बुरी छाया नहीं गुज़रती
उनके ख़यालों के घर से
ख़यालों के उनके घर में
न कोई सपना अकेले देखता है,
न झूठ बोलता है,
न आधा सच—
जानती हैं सब भेद
ख़यालों में लड़कियाँ
ख़यालों के बाहर उन्हें होश रहता है
कि वह ख़यालों से बाहर हैं
कि उनके साथ-साथ जो चलता है
वह घर नहीं,
दुस्स्वप्न है घर का
ख़यालों से बाहर लड़कियाँ
टकराती हैं आदमी से
किसी सड़क पर, रेस्तराँ में,
किसी तीसरे के घर
खाने के बुलावे पर!
एक गंध उन्हें ले जाती है
एक दूसरे के रू-ब-रू
किसकी गंध है यह?
घर की?
लड़कियाँ जानती हैं,
अब वे इतनी सिरफिरी नहीं
कि इस गंध के पीछे खिंची चली जाएँ,
जानती हैं वे
कि उनके चाहते, न चाहते
आदमी उनसे स्वतंत्र भी
एक सपना देखेगा,
कि एक रहस्य उसका ऐसा होगा
जिसे वह कभी नहीं खोल पाएँगी—
न प्रेम से, ईर्ष्या से, न ज़िद से!
विलाप करती हैं तब लड़कियाँ
अपने खोए भोलेपन के लिए
और निकल आती हैं सड़कों पर
विलाप करती हैं लड़कियाँ
हैरान होते हैं लोग
अपना भेद छुपातीं
हँसने लगती हैं लड़कियाँ
देखते हैं लोग
न हैरानी में
न रोने में
न हँसी में
ख़यालों तक में नहीं बचते उनके घर।
न मैं हँसी न मैं रोई
बीच चौराहे जा खड़ी होई
न मैं रूठी न मैं मानी
अपनी चुप से बाँधी फाँसी
ये धागा कैसा मैंने काता
न इसने सिली न उधेड़ी
ये करवट कैसी मैंने ली
साँस रुकी अब रुकी
ये मैंने कैसी सीवन छेड़ी
आँते खुल-खुल बाहर आईं
जब न लिखा गया न बूझा
टंगड़ी दे ख़ुद को क्यों दबोचा
ये दुख कैसा मैंने पाला
इसमें अँधेरा न उजाला
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