Sahitya Akademi Award : हिंदी साहित्य एक ऐसा शब्द जिसे विषय कहना छोटा होगा, समंदर से बड़ा और गहरा, जो एक बार इसकी जद में आ जाए उसे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है. इस साल भी साहित्य अकादमी पुरस्कार की घोषणा कर दी गई है. 18 दिसंबर को नामों की घोषणा की गई. इस बार साहित्य अकादमी पुरस्कार हिंदी कविता की जानी-मानी कवि गगन गिल को दिया गया है. उन्हें इससे पहले भी हिंदी कविता के लिए दो और पुरस्कार मिल चुके हैं.
भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार और संस्कृति पुरस्कार शामिल है. गिल को उनकी कविता 'मैं जब तक आई बाहर' के लिए ये साहित्य अकादमी दिया गया है. उनकी ये कविता काफी चर्चा में रही. ऐसे में इस कविता को न पढ़े ऐसा तो हो नहीं सकता.
'मैं जब तक आई बाहर'
मैं जब तक आई बाहर
एकांत से अपने
बदल चुका था
रंग दुनिया का
अर्थ भाषा का
मंत्र और जप का
ध्यान और प्रार्थना का
कोई बंद कर गया था
बाहर से
देवताओं की कोठरियाँ
अब वे खुलने में न आती थीं
ताले पड़े थे तमाम शहर के
दिलों पर
होंठों पर
आँखें ढँक चुकी थीं
नामालूम झिल्लियों से
सुनाई कुछ पड़ता न था
मैं जब तक आई बाहर
एकांत से अपने
रंग हो चुका था लाल
आसमान का
यह कोई युद्ध का मैदान था
चले जा रही थी
जिसमें मैं
लाल रोशनी में
शाम में
मैं इतनी देर में आई बाहर
कि योद्धा हो चुके थे
अदृश्य
शहीद
युद्ध भी हो चुका था
अदृश्य
हालाँकि
लड़ा जा रहा था
अब भी
सब ओर
कहाँ पड़ रहा था
मेरा पैर
चीख़ आती थी
किधर से
पता कुछ चलता न था
मैं जब तक आई बाहर
ख़ाली हो चुके थे मेरे हाथ
न कहीं पट्टी
न मरहम
सिर्फ़ एक मंत्र मेरे पास था
वही अब तक याद था
किसी ने मुझे
वह दिया न था
मैंने ख़ुद ही
खोज निकाला था उसे
एक दिन
अपने कंठ की गूँ-गूँ में से
चाहिए थी बस मुझे
तिनका भर कुशा
जुड़े हुए मेरे हाथ
ध्यान
प्रार्थना
सर्वम शांति के लिए
मंत्र का अर्थ मगर अब
वही न था
मंत्र किसी काम का न था
मैं जब तक आई बाहर
एकांत से अपने
बदल चुका था मर्म
भाषा का
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