Oxford जाकर कानून की पढ़ाई करने वाली देश की पहली महिला, आज के दिन ही मिला था दाखिला

आज के दिन लंडन में वकालत के लिए पहली महिला को प्रवेश दिया गया था. ये उन महिलाओं के लिए एक प्रेरित करने वाली कहानी है जिसको सुन कर आज भी कुछ महिलाएं अपने सपनों की ओर जा सकती हैं.

आज के दिन लंडन में वकालत के लिए पहली महिला को प्रवेश दिया गया था. ये उन महिलाओं के लिए एक प्रेरित करने वाली कहानी है जिसको सुन कर आज भी कुछ महिलाएं अपने सपनों की ओर जा सकती हैं.

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Nandini Shukla
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cornelia sorabji( Photo Credit : Newsnation)

देश-दुनिया के इतिहास की बात करें तो इतिहास अपने में ही बहुत बड़ा शिक्षक है. इतिहास अपने में सिर्फ घटनाओं की ही नहीं बल्कि बहुत से प्रसिद्ध लोगों के बारें में बहुत कुछ समेटे होता है. इससे आप भी बहुत कुछ सीख सकते हैं, बहुत कुछ जान सकते हैं. लगभग हर दिन कोई न कोई महत्वपूर्ण काम देश या दुनिया में हुए हैं जिनको देख सुनकर इंसान प्रेरित होता है. इसी कड़ी में आज का दिन 30 दिसंबर भी बहुत ख़ास है. आज के दिन लंडन में वकालत के लिए पहली महिला को प्रवेश दिया गया था. ये उन महिलाओं के लिए एक प्रेरित करने वाली कहानी है जिसको सुन कर आज भी कुछ महिलाएं अपने सपनों की ओर जा सकती हैं. आइये जानते हैं कॉर्नेलिया सोराबजी(Cornelia Sorabji) के बारें में. 

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कॉर्नेलिया सोराबजी (Cornelia Sorabji)-

कॉर्नेलिया सोराबजी (Cornelia Sorabji) का जन्म नासिक में 15 नवंबर 1866 को हुआ था. जो मुम्बई विश्वविद्यालय से पहली महिला स्नातक, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में कानून की पढाई करने वाली पहली महिला थी. यही नहीं उन्होंने अपने साथ कई सारी महिलाओं को भी आगे बढ़ाया. नासिक में जन्मीं कार्नेलिया 1892 में नागरिक कानून की पढ़ाई के लिए विदेश गयीं और 1894 में भारत लौटीं थी. उस समय समाज में महिलाएं इतनी आगे नहीं थीं और न ही महिलाओं को वकालत का अधिकार था. अपनी प्रतिभा की बदौलत उन्होंने महिलाओं को कानून की शिक्षा देना शुरू किया. और महिलाओं के लिए कानून की पढ़ाई का पेशा खोलने की मांग उठाई. जिसके बाद 1907 में कार्नेलिया को बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम की अदालतों में सहायक महिला वकील का पद दिया गया था.  

सदियों की प्रथा 

यूं तो सदियों पहले अगर महिलाओं की स्तिथि की बात करें तो कई सारी प्रथाएं स्त्रियों के लिए लागू होती थी. उस समय कॉर्नेलिया एक ऐसी महिला थी जिन्होंने उन महिलाओं के लिए आवाज़ उठाई जो अपने सपनों को प्रथाओं के बीच खो रही थी. सदियों पहले सती, जोहर, पर्दा, और देवदासी जैसी प्रथाओं ने कई सारे सपने महिला शक्ति के मारे हैं. जिस समय कोर्नेलिया ने वकालत का पद लिया उस समय महिलाएं इतनी मुखर नहीं थी उन्हें घर पर रहकर घर के अनुशासन का पालन करना होता था. देश-दुनिया की घटनाओं से इतनी पहचान नहीं थी. 

वकालत के पेशे की पहली कड़ी 

इसी कड़ी में एक लम्बी कोशिश के बाद 1924 में महिलाओं को वकालत से रोकने वाले कानून को खत्म कर उनके लिए भी यह पेशा खोल दिया गया. 1929 में कार्नेलिया हाईकोर्ट की वरिष्ठ वकील के तौर पर सेवानिवृत्त हुयीं पर उसके बाद महिलाओं में इतनी जागृति आ चुकी थी कि वे वकालत को एक पेशे के तौर पर अपनाकर अपनी आवाज ऊंची कर सकती थी. 

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कॉर्नेलिया सोराबजी की जद्दोजहद 

- सोराबजी ने पर्दानाशीन महिलाओं की ओर से सामाजिक और सलाहकार कार्य में शामिल हो गई.

- यही नहीं सोराबजी ने 1897 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी की एलएलबी परीक्षा के लिए खुद को प्रस्तुत किया और 1899 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वकील की परीक्षा में भाग लिया.

- महिलाओं और नाबालिगों का प्रतिनिधित्व करने एक महिला कानूनी सलाहकार प्रदान करने के लिए सोराबजी ने 1902 के शुरू में भारत कार्यालय में याचिका दायर करने की शुरुआत की थी. 

- 1904 में बंगाल की कोर्ट ऑफ वार्ड में लेडी असिस्टेंट नियुक्त किया गया था और 1907 में सोराबजी बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम के प्रांतों में काम कर रही थीं. 

- 1924 में, भारत में महिलाओं के लिए कानूनी पेशा खोला गया था, और सोरबजी ने कोलकाता में अभ्यास करना शुरू कर दिया था. 

- सोरबजी 1929 में उच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त हुईं, और लंदन में बस गई.

- 6 जुलाई 1954 को लंदन के मैनोर हाउस में ग्रीन लेन्स पर नॉर्थम्बरलैंड हाउस में अपने लंदन के घर में इनका निधन हो गया.

सरोबाजी द्वारा लिखी गयी किताबें 

1902: Love and Life behind the Purdah 
1908: Between the Twilights
1916: Indian Tales of the Great Ones Among Men, Women and Bird-People (legends and folk tales)
1917: The Purdahnashin 
1924: Therefore (memoirs of her parents)
1930: Gold Mohur: Time to Remember (a play)

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ऐसे ही कई देश की स्त्रियों को प्रेरित करने के लिए देश दुनिया में कई महिला शक्तियों ने जन्म लिया और बाकी महिलाओं को कुछ बनने कुछ करने, अपने हक़ के लिए लड़ने में मदद की ताकि महिलाएं अपने लिए कुछ कर सकें और उससे बाकी महिला शक्ति को प्रेरित कर सके. कॉर्नेलिया सोराबजी का निधन 6 जुलाई 1954, 87 की उम्र में हुआ था पर आज भी उनका नाम वकालत जैसे जटिल और प्रतिष्ठित पेशे में महिलाओं की बुनियाद है. 

HIGHLIGHTS-

  • आज का दिन 30 दिसंबर भी बहुत ख़ास है.
  • आज के दिन लंडन में वकालत के लिए पहली महिला को प्रवेश दिया गया था.
  •  बात कर रहे हैं कॉर्नेलिया सोराबजी की.

Source : News Nation Bureau

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