पीएम मोदी ने आलोचकों की तुलना महाभारत के शल्य से क्यों की
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाभारत के शल्य का जिक्र कर संभवतः अपनी पार्टी के नेताओं की तरफ इशारा कर रहे थे।
नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक स्थिति पर आलोचकों को निराशावादी करार देते हुए उन्होंने अर्थव्यवस्था पर अपनी सरकार के तीन साल का रिपोर्ट कार्ड पेश किया। उन्होंने महाभारत के शल्य का जिक्र कर संभवतः अपनी पार्टी के नेताओं की तरफ इशारा कर रहे थे जो आर्थिक नीतियों की आलोचना करने में विपक्ष का साथ दे रहे हैं।
उन्होंने अपनी ही पार्टी के 'शल्यों' पर निशाना साधते हुए कहा कि विभिन्न मुद्दों पर सरकार की नीतियों की अपने काल्पनिक अफसला पर आलोचना कर देश में निराशा का माहौल पैदा कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा, 'ये लोग शल्यवृत्ति ( निराशावादिता) से पीड़ित हैं। उन्हें अच्छी नींद तब आती है जब वो अपने आस-पास निराशा फैसला देते हैं। हमें ऐसे लोगों की पहचान करने की ज़रूरत है।'
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कंपनी सेक्रेटरीज़ को को संबोधित करते हुए उन्होंने आईसीएसआई के कार्यक्रम में महाभारत के शल्य से तुलना की जो कौरवों की तरफ से लड़ रहे थे। वो कर्ण के सारथी थे और अर्जुन के साथ लड़ाई के दौरान निराशाजनक बात कर रहे थे।
कौन थे शल्य-
महाभारत में राजा शल्य नकुल और सहदेव के मामा थे। उन्हें एक महान गदाधारी के रूप में जाना जाता था।
शल्य महाभारत युद्ध के दौरान पांडवों की तरफ से लड़ना चाह रहे थे लेकिन दुर्योधन ने उन्हें कपट कर अपनी सेना की तरफ से लड़ने के लिये मना लिया।
दुर्योधन ने धोखे से बुलाकर उनकी खातिरदारी की थी लेकिन ये पता नहीं चलने दिया कि ये सत्कार वो कर रहा है। शल्य को लगा था कि युधिष्ठिर ये सत्कार कर रहे हैं उन्होंने मिलने की इच्छा जताई। दुर्योधन को देख वो समझ गए कि उनके साथ धोखा हुआ है। लेकिन फिर भी उन्होंने दुर्योधन से किुछ मांगने के लिये कहा।
दुर्योधन ने उनसे कौरवों की तरफ से लड़ने का वचन ले लिया। इससे नकुल और सहदेव नाराज हुए। लेकिन शल्य ने अपनी मजबूरी बताई।
शल्य ने युद्ध में युधिष्ठिर को विजयी होने का आशीर्वाद दिया था। साथ ही कहा कि कर्ण के सारथी के रूप में वह कर्ण को हतोत्साहित करेंगे ताकि वो युद्ध में अपनी क्षमता का प्रदर्शन ना कर सके।
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प्रधानमंत्री ने आलोचकों की तुलना शल्य से की।
सरकार की आर्थिक नीतियों के बारे में जानकारी देते हुए प्रधानमंत्री ने आलोचकों पर हमला करते हुए कहा कि निराशा फैलाने वाले लोग अप्रैल-जून के दौरान 5.7 फीसदी के विकास दर को प्रलय करार दे रहे हैं।
हालांकि प्रधानमंत्री ने किसी का भी नाम नहीं लिया लेकिन उनका इशारा यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी की तरफ था।
हाल ही में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना की थी। साथ ही नोटबंदी के फैसले को महाआपदा बताते हुए कहा था कि अगले चुनाव तक देश में आर्थिक तंगी का माहौल पैदा हो जाएगा। उन्होंने जीएसटी को लागू करने की प्रक्रिया की भी आलोचना की थी।
वाजपेयी सरकार में ही मंत्री रहे अरुण शौरी ने भी मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों और लचर होती अर्थव्यवस्था की आलोचना की थी।
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