सात महीने के उच्चतम स्तर पर खुदरा महंगाई दर, अक्टूबर में रही 3.58%
अक्टूबर महीने में रिटेल महंगाई दर (सीपीआई) में तेज़ी दर्ज की गई है। अक्टूबर महीने में सीपीआई दर बढ़कर 3.58 फीसदी हो गई है जोकि बीते 7 महीना का उच्चतम स्तर है।
नई दिल्ली:
खाद्य पदार्थो, ईंधन और आवास की कीमतों में वृद्धि से अक्टूबर में भारत की वार्षिक खुदरा मुद्रास्फीति की दर बीते सात महीने में उच्चतम स्तर पर दर्ज की गई है।
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय द्वारा सोमवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित महंगाई दर बढ़कर 3.58 फीसदी हो गई, जो सितंबर में 3.28 फीसदी थी।
हालांकि, साल-दर-साल आधार पर पिछले महीने सीपीआई महंगाई में गिरावट आई है, जो कि साल 2016 के अक्टूबर में 4.20 फीसदी दर्ज की गई थी।
समीक्षाधीन माह में उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) बढ़कर 1.90 फीसदी रहा, जबकि सितंबर में यह 1.25 फीसदी था।
साल-दर-साल आधार पर शहरी क्षेत्रों में मुद्रास्फीति की दर बढ़कर 3.81 फीसदी रही, जबकि ग्रामीण भारत में बढ़कर यह 3.36 फीसदी रही।
मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, साल-दर-साल आधार पर खुदरा मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी सब्जियों, दुग्ध आधारित उत्पादों, अनाजों और मांस-मछली की कीमतों में हुई वृद्धि के कारण हुई है।
आंकड़ों से पता चलता है कि साल-दर-साल आधार पर अक्टबूर में सब्जियों की कीमतें बढ़कर 7.47 फीसदी रहीं, जबकि दुग्ध आधारित उत्पादों की कीमतें बढ़कर 4.30 फीसदी रही।
हालांकि इस दौरान अनाजों की कीमत में कमी आई और यह 3.68 फीसदी पर रही, जबकि मांस-मछली की कीमतें बढ़ी और यह 3.12 फीसदी पर रही।
गैर-खाद्य पदार्थ श्रेणी में ईधन और बिजली खंड की मुद्रास्फीति दर अक्टूबर में 6.36 फीसदी रही।
भारतीय स्टेट बैंक की समूह की मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्या कांति घोष ने एसबीआई की इकोफ्लैश रिपोर्ट में कहा, "इस साल सितंबर के खाद्य पदार्थ, ईधन और आवास की कीमतों से तुलना करने पर कुल मुद्रास्फीति में वृद्धि दर्ज की गई है। जबकि खाद्य पदार्थो की मुद्रास्फीति बढ़ाने में सबसे ज्यादा योगदान सब्जियों, दूध और दुग्ध उत्पादों का है।"
उन्होंने कहा, "कच्चे तेल की कीमतों से बढ़ोतरी से ईंधन की महंगाई दर बढ़कर 6.36 फीसदी हो गई, जोकि पिछले महीने 5.56 फीसदी थी। हालांकि सरकार द्वारा उत्पाद कर में कटौती की घोषणा के बाद ईधन की कीमतों में कमी आई है।"
एंजल ब्रोकिंग के शोध विश्लेषक जयकिशन जे. परमार ने कहा, "पहला, सीपीआई मुद्रास्फीति आरबीआई के सुविधा क्षेत्र चार फीसदी के भीतर ही है। दूसरा जीएसटी परिषद ने नाटकीय ढंग से जीएसटी दरों में कटौती की है. इससे आनेवाले महीनों में मुद्रास्फीति पर प्रभावशाली असर होगा। हालांकि आरबीआई प्रमुख ब्याज दरों के बारे में फैसला फेड रिजर्व के कदमों के हिसाब से ही करेगी।"
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने कहा, "आनेवाले महीनों में महंगाई और बढ़ेगी, जिसके पीछे तेल की बढ़ती कीमतें और घरेलू खर्च में की जानेवाली वृद्धि कारण होगा। किसानों को ऋण छूट और राज्य सरकार के कर्मचारियों का वेतन भत्ता बढ़ने से घरेलू खर्च में वृद्धि होगी।"
इस बढ़ोतरी के बाद दिसंबर में रिज़र्व बैंक की आने वाली मौद्रिक नीति में ब्याज दरों में कटौती की संभावना कम हो गई है। इससे पहले अक्टूबर में आरबीआई ने मौद्रिक नीति समीक्षा में मंहगाई दर में तेज़ी के चलते ब्याज दर में (रेपो रेट) कोई बदलाव न कर इसे 6 फीसदी पर बरकरार रखा था।
(आईएनएस इनपुट्स के साथ)
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