जीवन बीमा (Life Insurance) लेने से पहले इन बातों का रखें ध्यान, क्लेम मिलने में नहीं होगी दिक्कत

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्ताव के फॉर्म में पुरानी बीमारियों का अलग से खुलासा करने की जरूरत होती है, ताकि बीमा (Life Insurance) करने वाली कंपनी बीमांकिक जोखिम के आधार पर एक विचारशील निर्णय पर पहुंचने में सक्षम हो सके.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्ताव के फॉर्म में पुरानी बीमारियों का अलग से खुलासा करने की जरूरत होती है, ताकि बीमा (Life Insurance) करने वाली कंपनी बीमांकिक जोखिम के आधार पर एक विचारशील निर्णय पर पहुंचने में सक्षम हो सके.

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Dhirendra Kumar
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Life Insurance

जीवन बीमा (Life Insurance)( Photo Credit : newsnation)

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) का कहना है कि बीमा अनुबंध (Insurance contract) अत्यधिक भरोसे पर आधारित होता है. ऐसे में जीवन बीमा (Life Insurance) लेने के इच्छुक लोगों के लिये हर वैसी जानकारियों का खुलासा करना उनका दायित्व हो जाता है, जिनका संबंधित मुद्दों पर किसी प्रकार का असर हो सकता है. उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के इस साल मार्च के एक फैसले को निरस्त करते हुए यह टिप्पणी की. 

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पुरानी बीमारियों का अलग से खुलासा करना जरूरी
एक बीमा कंपनी ने मृतक की माता को ब्याज के साथ दावे की पूरी राशि का भुगतान करने के आदेश के खिलाफ आयोग में याचिका दायर की थी, जिसे आयोग ने खारिज कर दिया था. न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि प्रस्ताव के फॉर्म में पुरानी बीमारियों (Pre Existing Disease) का अलग से खुलासा करने की जरूरत होती है, ताकि बीमा करने वाली कंपनी बीमांकिक जोखिम के आधार पर एक विचारशील निर्णय पर पहुंचने में सक्षम हो सके. इस पीठ में न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी भी शामिल रहीं. पीठ ने कहा कि बीमे का अनुबंध अत्यधिक भरोसे पर आधारित होता है. यह बीमा लेने के इच्छुक हर व्यक्ति का दायित्व हो जाता है कि वह संबंधित मुद्दे को प्रभावित करने वाली सारी जानकारियों का खुलासा करे, ताकि बीमा करने वाली कंपनी बीमांकिक जोखिम के आधार पर किसी विवेकपूर्ण निर्णय पर पहुंच सके.

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बीमा कंपनी ने आयोग के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की थी. राष्ट्रीय आयोग ने संबंधित मामले में राज्य उपभोक्ता आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी. उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि बीमा लेने वाले व्यक्ति ने अपनी पुरानी बीमारियों के बारे में जानकारियों का खुलासा नहीं किया था. उसने यह भी नहीं बताया था कि बीमा लेने के महज एक महीने पहले उसे खून की उल्टियां हुई थीं. पीठ ने कहा कि बीमा कंपनी के द्वारा की गयी जांच में पता चला है कि बीमा धारक पुरानी बीमारियों से जूझ रहा था, जो लंबे समय तक शराब का सेवन करने के कारण उसे हुई थीं. उसने उन तथ्यों की भी जानकारी बीमा कंपनी को नहीं दी थी, जिनके बारे में वह अच्छे से अवगत था.

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