Advertisment

काम की बातें: बाजार जाने से पहले ये बातें तो जान लीजिए!

कुछ वक्त पहले भारत ने सभी किस्म के बासमती चावल पर बैन लगा दिया था. इससे पहले उबले चावल के निर्यात पर 20 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाने का फैसला किया था और इससे पहले नॉन बासमती सफेद चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया था.

author-image
Deepak Pandey
एडिट
New Update
usefull news

काम की बातें( Photo Credit : File Photo)

Advertisment

कुछ वक्त पहले भारत ने सभी किस्म के बासमती चावल पर बैन लगा दिया था. इससे पहले उबले चावल के निर्यात पर 20 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाने का फैसला किया था और इससे पहले नॉन बासमती सफेद चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया था. इससे भी पहले टूटे चावल के निर्यात पर भी बैन लगाया गया था. अब खबर ये है कि सरकार उबले चावल पर लगने वाले 20 फीसदी निर्यात शुल्क की समयसीमा को बढ़ाने पर विचार कर रही है. 2022 में भारत से 74 लाख टन उबले चावल का निर्यात किया गया था. दुनिया में भारत के पैराबॉइल्ड राइस की हिस्सेदारी करीब 25 से 30 फीसदी है. भारत में फेस्टिव सीजन शुरू होने को है और चुनाव भी बहुत दूर नहीं है. ऐसे में सरकार नहीं चाहेगी कि घरेलू बाजार में चावल की कोई कमी हो. 16 अक्टूबर 2023 तक के लिए सरकार ने उबले चावल के निर्यात पर 20 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाई थी. अब इसी समय सीमा को बढ़ाया जा सकता है.

यह भी पढ़ें : Israel-Hamas War: इजरायल-फिलीस्तीन पर भारत क्या है रुख? विदेश मंत्रालय ने दिए ये जवाब

दुनिया में बढ़ेंगे चावल के दाम?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार निर्यात शुल्क को 40 फीसदी करने पर कोई विचार नहीं कर रही है, बल्कि इसे 20 फीसदी पर ही स्थिर रखा जा सकता है. क्योंकि अगर सरकार निर्यात शुल्क को बढ़ाती है तो दुनिया भर के बाजारों में इस चावल के दाम बढ़ सकते हैं. भारत सरकार ने जब जुलाई में निर्यात शुल्क लगाने का फैसला किया था तब एशियाई बाजारों में इस चावल की कीमतें 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थीं. खराब मौसम के कारण भी चावल की पैदावार पर असर हुआ है. अल-नीनो की स्थिति के कारण पैदावार प्रभावित हुई है. चीन से लेकर इंडोनेशिया तक और वियतनाम से लेकर पाकिस्तान तक पर इस खराब मौसम का असर हुआ है. उबले चावल की सबसे अधिक खपत दक्षिण एशिया और अफ्रीका के देशों में होती है. और भारत से जो चावल निर्यात होता है उसमें 30 फीसद हिस्सेदारी उबले चावल की है. दुनिया के चावल एक्सपोर्ट में भारत का कुल हिस्सा 40 फीसदी से भी अधिक है.

यह भी पढ़ें : Israel-Hamas War: बाइडेन का संदेश लेकर इजरायल पहुंचे US विदेश मंत्री, नेतन्याहू बोले- ISIS की तरह हमास को भी...

माना जा रहा है कि भारत के इस फैसले से ग्लोबल सप्लाई चेन पर असर होगा. दुनिया भर में चावल की कीमतें बढ़ जाएंगी. खासतौर से उन देशों में जहां भारत का चावल आयात किया जाता था. अप्रैल के बाद पैराबॉइल्ड चावल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में करीब 26 फीसदी बढ़ी हैं. भारत के निर्यात पर रोक के फैसले के बाद दुनिया के अन्य चावल उत्पादक और निर्यातक देशों ने चावल के दामों में बढ़ोतरी कर दी है. थाईलैंड के अलावा वियतनाम और पाकिस्तान का चावल अब ज्यादा कीमतों को ग्लोबल मार्केट में बेचा जा रहा है. रिपोर्ट बताती है कि भारत के प्रतिबंध का असर बांग्लादेश और नेपाल के अलावा अफ्रीकी देशों में सबसे अधिक है जो भारतीय टूटे चावल या भारतीय गैर बासमती सफेद चावल पर निर्भर थे.

क्यों बढ़ रहे हैं गेहूं के दाम?

चावल के बाद अब बात करते ही गेहूं की. अक्टूबर महीने में अब तक गेहूं की कीमतों में 4 फीसद से ज्यादा की तेजी आई है. पिछले आठ महीनों से गेहूं के दामों में तेजी देखी जा रही है. इस बात को समझिए कि अगर गेहूं महंगा होगा तो आटे से लेकर मैदा तक और सूजी से लेकर गेहूं के अन्य उत्पाद तक महंगे हो सकते हैं. यानी ब्रेड से लेकर बिस्कुट तक के दामों में इजाफा हो सकता है. गेहूं की कीमतों को काबू में रखने के लिए सरकार अपने भंडार से गेहूं को खुले बाजार में बेच रही है. ताकि बाजार में गेहूं कि कमी न हो और आपूर्ति प्रभावित न हो. घरेलू बाजार में रिटेल कीमतों को काबू में रखने के लिए खुला बाजार बिक्री योजना के तहत सरकार गेहूं और चावल की बिक्री कर रही है. खुले बाजार में नीलामी के जरिए सरकार इस साल अब तक करीब 22 लाख टन गेहूं की बिक्री कर चुकी है. हालांकि इसके बाद भी गेहूं की कीमतों में तेजी का रुख बना हुआ है. हालांकि इस साल गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन का अनुमान है. सरकार ने इस साल 342 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य तय किया था. अभी तक 262 लाख टन गेहूं की खरीद हो पाई है.

चीनी के निर्यात पर लगेगा बैन?

और अब आखिर बात बात चीनी की. ऐसी खबरें है कि सरकार चीनी के निर्यात पर बैन लगा सकती है. इस साल मानसून सीजन में बरसात कम हुई है, इस वजह से गन्ने की पैदावार कमजोर रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ऐसा माना जा रहा है कि नवंबर के पहले हफ्ते में सरकार निर्यात पर प्रतिबंध का फैसला ले सकती है. दरअसल सरकार पर घरेलू आपूर्ति पूरा करने का भी दबाव है और महंगाई को नियंत्रण में लेने का भी दवाब है. भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया, यूएई, सोमालिया और सूडान समेत दुनिया के कई देशों को चीनी बेचता है. रिपोर्ट बताती है कि ISMA के मुताबिक 2023-24 के दौरान देश में 317 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है और करीब 55 लाख टन चीनी का पुराना स्टॉक भी है यानी कुल सप्लाई 372 लाख टन रह सकती है, जबकि घरेलू मांग 280 लाख टन के करीब रहने का अनुमान है. सरकार ने चीनी कंपनियों से उत्पादन, डिस्पैच, डीलर, रिटेलर और बिक्री का पूरा डाटा मांगा है. सरकार ने सभी चीनी मिलों से NSWS पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन भी कराने को कहा है. यानि कुल मिलाकर सरकार की कोशिशें ये हैं कि घरेलू बाजार में किसी जरूरी चीज की कोई कमी न हो.

वरुण कुमार की रिपोर्ट

Source : News Nation Bureau

non-Basmati white rice export Ban Modi Government Basmati rice export ban Basmati rice ban PM Narendra Modi
Advertisment
Advertisment
Advertisment