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सैट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी रिलायंस इंडस्ट्रीज, जानिए क्या था मामला

अरबपति कारोबारी मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) की कंपनी ने शेयर बाजार को यह जानकारी दी. इससे पहले सैट ने 2:1 के बहुमत से दिए गए आदेश में सेबी के 24 मार्च 2017 के आदेश के खिलाफ आरआईएल की याचिका को खारिज कर दिया था.

Updated on: 05 Nov 2020, 03:07 PM

नई दिल्ली:

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (Reliance Industries-RIL) ने गुरुवार को कहा कि वह कथित रूप से अनुचित व्यापार प्रथाओं के चलते इक्विटी डेरिवेटिव में सौदे करने से फर्म और उसके प्रवर्तक समूह की 12 संस्थाओं को प्रतिबंधित करने के सेबी के आदेश के खिलाफ दायर की गई याचिका को प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (Securities Appellate Tribunal-SAT) द्वारा खारिज किए जाने के बाद इस मामले में उच्चतम न्यायालय में अपील करेगी. अरबपति कारोबारी मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) की कंपनी ने शेयर बाजार को यह जानकारी दी. इससे पहले सैट ने 2:1 के बहुमत से दिए गए आदेश में सेबी के 24 मार्च 2017 के आदेश के खिलाफ आरआईएल की याचिका को खारिज कर दिया था. 

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सैट द्वारा पारित आदेश की समीक्षा करेगी रिलायंस
यह आदेश आरआईएल द्वारा नवंबर 2007 में रिलायंस पेट्रोलियम लिमिटेड (आरपीएल) के शेयरों की बिक्री के मामले में दिया गया था. आरआईएल ने कहा कि कंपनी सैट द्वारा पारित आदेश की समीक्षा करेगी. बयान में आगे कहा गया कि कंपनी द्वारा किए गए सभी सौदे वास्तविक और प्रामाणिक थे. इन लेनदेन में कोई अनियमितता नहीं थी. आरआईएल ने यह भी कहा कि उसने नवंबर 2007 में आरपीएल के शेयर बेचते समय किसी कानून या विनियमन का उल्लंघन नहीं किया. कंपनी ने कहा कि कंपनी उचित कानूनी सलाह के अनुसार भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय में अपील करेगी और उसे निर्दोष साबित होने का पूरा भरोसा है. इससे पहले सेबी ने अपने 24 मार्च, 2017 के आदेश में अनुचित व्यापार प्रथाओं के आरोप में आरआईएल और उसके प्रवर्तक समूह की 12 संस्थाओं को इक्विटी डेरिवेटिव कारोबार से रोक दिया था.

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प्रतिभूति बाजार नियामक ने आरआईएल को ब्याज सहित 447 करोड़ रुपये देने का आदेश भी दिया था. आरआईएल ने मार्च 2007 में रिलायंस पेट्रोलियम लिमिटेड (आरपीएल) में 4.1 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया था, जो एक सूचीबद्ध सहायक कंपनी थी. हालांकि, बाद में इसे 2009 में आरआईएल के साथ मिला दिया गया, लेकिन आरपीएल के शेयरो में गिरावट रोकने के लिए शेयरों को पहले वायदा बाजार में बेचा गया और बाद में हाजिर बाजार में.