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डॉलर के मुकाबले मजबूत हुआ भारतीय रुपया Photograph: (Social Media)
Indian Rupee Vs Dollar: डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में पिछले कुछ दिनों में भारी गिरावट देखने को मिली है. रिकॉर्ड स्तर पर गिरने के बाद इसमें अब सुधार देखने को मिल रहा है. हालांकि एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगले साल यानी 2026 में रुपये की कीमत में और गिरावट आएगी और ये गिरकर डॉलर के मुकाबले 100 रुपये तक जा सकता है.
आज कितना मजबूत हुआ रुपया?
इस बीच आज यानी बुधवार (24 दिसंबर) को रुपये की कीमत में 12 पैसे का सुधार दर्ज किया गया. उसके बाद ये मजबूत होकर 89.51 रुपये पर आ गया. बुधवार को इंटरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में, रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 89.56 पर ओपन हुआ. उसके बाद इसमें थोड़ा सा सुधार देखने को मिला और ये 89.51 पर पहुंच गया, जो पिछले बंद भाव के मुकाबले 12 पैसे अधिक रहा.
डॉलर के मुकाबले 100 के स्तर तक गिर सकता है रुपया
भारत वैश्विक स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, बावजूद इसके भारतीय मुद्रा में गिरावट चिंता का विषय बनी हुई है. ऐसे में एक्सपर्ट्स का मानना है कि डॉलर के मुकाबले रुपया 100 के लेवल तक गिर सकता है. अगर ऐसे हुआ तो ये भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कितना बड़ा रिस्क है. चलिए जानते हैं एक्सपर्ट्स की राय.
क्या हैं भारतीय रुपए के गिरने के कारण?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि रुपए पर सिर्फ घरेलू कारणों से दबाव नहीं है बल्कि इसके पीछे कई वैश्विक और संरचनात्मक वजह भी हैं. जिससे रुपए पर दबाव है. इनमें वैश्विक अनिश्चितता के दौर में लगातार मजबूत हो रहा अमेरिकी डॉलर और इसमें अस्थिर पूंजी का बढ़ना-घटना साथ ही विदेशी पोर्टफोलियो में से लगातार हो रही निकासी, प्रोडक्ट्स के आयात पर निर्भर अर्थव्यवस्था में चालू खाता दबाव और बढ़ते जियो पॉलिटिकल जैसे रिस्क शामिल हैं. जिससे निवेशक अब ऐसे क्षेत्र में निवेश कर रहे हैं जो उनके लिए सुरक्षित हो. अगर आगे भी ऐसा रहा तो रुपये की कीमत में और गिरावट आ सकती है.
रुपए का 100 तक गिरना कितना खतरनाक?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर रुपए की कीमत डॉलर के मुकाबले 100 के स्तर तक जाती है तो ये किसी संकट की वजह से नहीं होगी. एक्सपर्ट का कहना है कि अगर वैश्विक स्तर पर डॉलर मजबूत बना रहता है और पूंजी प्रवाह अस्थिर रहता है, साथ ही घरेलू मुद्रा बाजार संरचनात्मक रूप से कमजोर बना रहता है तो आने वाले समय में रुपया 100 डॉलर तक जा सकता है. जिससे मार्केट स्ट्रक्चर और ग्लोबल सेंटिमेंट तो प्रभावित होगा, लेकिन भारत की आर्थिक बुनियाद में विश्वास की कमी नहीं आएगी.
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