जीएसटी परिषद की बैठक पांच मई को; मुआवजा उपकर की अवधि बढ़ाने पर होगी चर्चा
जीएसटी परिषद की बैठक पांच मई को; मुआवजा उपकर की अवधि बढ़ाने पर होगी चर्चा
नयी दिल्ली:
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की 47वीं बैठक अब संभवत: मई के पहले सप्ताह में आयोजित की जायेगी। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अमेरिका की 10 दिवसीय यात्रा पर हैं। उनके स्वदेश वापस आने पर ही जीएसटी परिषद बैठक होगी।परिषद की बैठक के एजेंडे में जीएसटी दर के पुनर्गठन और जीएसटी मुआवजा उपकर की अवधि के विस्तार शामिल हैं। मुआवजा उपकर अवधि में विस्तार एक विवादास्पद मुद्दा बन सकता है। दरअसल विपक्ष शासित राज्यों ने इसकी जोरदार मांग की है।
जीएसटी कानून के तहत पांच साल के मुआवजे की अवधि जून में खत्म हो रही है। राज्यों ने जून से पहले ही इस अवधि को बढ़ाने का आग्रह किया है। जीएसटी मुआवजे की समय सीमा बढ़ाने के लिये संविधान में संशोधन की जरूरत होगी।
केंद्र अगर राज्यों के आग्रह को स्वीकार करे तो उसे अगले संसदीय सत्र में यह संशोधन विधेयक पेश करना होगा। संविधान के 101वें संशोधन के जरिये राज्यों को सिर्फ पांच साल के लिये मुआवजा दिया जा सकता था, जिसकी अवधि 2017 से 2022 है।
अगर केंद्र इस अनुरोध को स्वीकार नहीं करता है तो राज्यों की राजस्व प्राप्ति प्रभावित होगी। इससे राज्य सरकारें उन वस्तुओं पर विशेष उपकर लगाने के लिये मजबूर हो सकती हैं, जो अभी जीएसटी के दायरे से बाहर हैं। ऐसा उपकर अभी झारखंड और केरल राज्य में कोविड उपकर के रूप में लगाया गया है।
मौजूदा कानून के तहत, राज्यों को 2015-16 के आधार वर्ष से 14 प्रतिशत की अनुमानित राजस्व वृद्धि दर पर जीएसटी लागू होने के पहले पांच वर्षों के लिये पूर्ण मुआवजा दिया जाता है। शीतल पेय, कोयला, पान मसाला, सिगरेट और वाहन जैसी विलासिता आदि की वस्तुओं पर 28 प्रतिशत के ऊपर मुआवजा उपकर लगाया जाता है।
रिपोटरें से यह भी पता चलता है कि जीएसटी परिषद कर दरों को युक्तिसंगत बनाकर कर व्यवस्था के सरलीकरण पर भी विचार कर रही है। परिषद साथ ही शुल्क संरचना को ठीक करने की कोशिश कर रही है। किसी-किसी मामले में अंतिम उत्पादों पर लगाया गया शुल्क उत्पाद के निर्माण के लिये आवश्यक कच्चे माल पर लगे शुल्क और अन्य खर्चो की तुलना में बहुत कम होता है।
लक्ष्मीकुमारन और श्रीधरन अटॉर्नी के पार्टनर चरण्य लक्ष्मीकुमारन कहते हैं कि परिषद कर दरों को संशोधित करने का निर्णय ले सकती है और छूट सूची की समीक्षा भी कर सकती है। इस प्रकार, उद्योग दरों में संशोधन, छूट सूची की छंटाई और उन वस्तुओं के संबंध में कर दरों में वृद्धि की उम्मीद की जा सकती है, जिनकी शुल्क संरचना को ठीक करने की जरूरत महसूस की जा रही है।
राज्यों की पुरजोर मांग के बावजूद अगर परिषद जीएसटी मुआवजा उपकर को खत्म करने का निर्णय लेती है, तो इससे उद्योग जगत को काफी राहत मिलेगी क्योंकि वह जीएसटी के उपर इस मुआवजा उपकर का भुगतान करता है।
कर स्लैब में 12 प्रतिशत और 18 प्रतिशत के स्लैब को मिलाने से वर्गीकरण संबंधी विवादों में कमी आ सकती है।
लक्ष्मीकुमारन कहते हैं कि लेकिन अगर नया सिंगल टैक्स स्लैब ऊंची तरफ रहता है तो इससे उपभोक्ताओं पर कर बोझ बढ़ेगा।
जिन उद्योगों की प्रभावी कर दर में कटौती की जायेगी, उन्हें लाभ रोधी प्रावधानों के तहत इसका लाभ उपभाक्ताओं को देना अनिवार्य है। ऐसी भी रिपोर्ट आ रही है कि सरकार कच्चे तेल की मौजूदा ऊंची कीमतों को देखते हुये विमान ईंधन को भी जीएसटी के दायरे में लाने पर चर्चा कर सकती है।
लक्ष्मीकुमारन कहते हैं कि कर वर्गीकरण के निर्णय का कोई सीधा फॉर्मूला नहीं है और जीएसटी परिषद को प्रशासनिक बदलावों पर ध्यान देना चाहिये। ये बदलाव जीएसटी आंकलन क्षेत्र, न्यासों के गठन आदि में किये जा सकते हैं, जिससे मुद्दों का समय पर निपटान सुनिश्चित हो पायेगा और उद्योग जगत में भी स्थिरता आयेगी।
जीएसटी का कर स्लैब फिलहाल पांच प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत है।
उद्योग जगत के कई विश्लेषक और अर्थशास्त्री जीएसटी स्लैब की संख्या घटाने के पक्षधर रहे हैं। इसी उद्देश्य के साथ जीएसटी परिषद ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की अगुवाई में जीएसटी परिषद के सदस्यों की एक समिति या टीम का गठन किया था। इस समिति का काम जीएसटी दरों का अध्ययन करना था।
इस समिति ने कई बैठकें कीं और वित्त मंत्री से मुलाकात कर उनसे जीएसटी स्लैब के अध्ययन में हुई प्रगति पर चर्चा की।
--आईएएएनएस
एकेएस/एसकेपी
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