कच्चे तेल की कीमतें 7 साल की ऊंचाई पर, आम आदमी पर क्या पड़ेगा असर
Crude Price Today: कच्चा तेल अप्रैल 2020 में 20.10 डॉलर प्रति बैरल के आस-पास कारोबार कर रहा था, जो कि सोमवार को करीब 78 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर दर्ज किया गया है.
highlights
- महामारी की वजह से क्रूड उत्पादन में कटौती का फैसला लिया गया था
- नवंबर 2014 के बाद से तेल की कीमतें अपने उच्चतम स्तर पर पहुंची
नई दिल्ली:
Crude Price Today: प्राकृतिक गैस की कीमतों में भारी बढ़ोतरी की वजह से एशिया में कुछ देश बिजली उत्पादकों को प्राकृतिक गैस की जगह तेल आधारित संयंत्रों को अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. ऐसे में कच्चे तेल की मांग बढ़ने से उसकी कीमतों में लगातार उछाल देखा जा रहा है. संयुक्त राज्य अमेरिका में कच्चे तेल की कीमतें सात साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं. बता दें कि कच्चा तेल अप्रैल 2020 में 20.10 डॉलर प्रति बैरल के आस-पास कारोबार कर रहा था, जो कि सोमवार को करीब 78 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर दर्ज किया गया है. जानकारों का कहना है कि कच्चे तेल के दाम में बढ़ोतरी से केंद्र सरकार पर टैक्स में कटौती का दबाव पड़ सकता है, जिससे राजस्व और खर्च पर असर पड़ सकता है.
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सिर्फ चार लाख बैरल प्रतिदिन बढ़ाने पर सहमति
कोरोना वायरस महामारी की पहली लहर के दौरान कच्चे तेल की कीमतें निचले स्तर पर थीं, जिसकी वजह से केंद्र सरकार को पेट्रोल और डीजल में टैक्स में बढ़ोतरी करने का मौका मिला. बता दें कि वित्त वर्ष 2021 में एक्साइज ड्यूटी राजकोष में सबसे बड़े योगदान करने वालों में से बन गई थी. हालांकि अब जब दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमतों में रिकवरी देखने को मिल रही है और अगर सरकार तेल की कीमतों में बढ़ोतरी करती है. साथ ही टैक्स में कटौती नहीं होती है तो इससे पेट्रोल-डीजल के घरेलू कस्टमर्स को महंगाई का सामना करना पड़ सकता है. बता दें कि तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक (OPEC) और संबद्ध तेल उत्पादक देशों (ओपेक प्लस) ने नवंबर के दौरान क्रूड उत्पादन सिर्फ चार लाख बैरल प्रतिदिन बढ़ाने पर सहमति जताई है. तेल उत्पादन देशों के इस समूह द्वारा लिया गया यह फैसला तय कार्यक्रम के अनुसार ही है.
गौरतलब है कि साल 2020 में कोविड महामारी की वजह से मांग में आई भारी कमी के चलते उत्पादन में कटौती का फैसला लिया गया था. हालांकि तब से अभी तक हालात में काफी बदलाव आया है और वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार भी देखने को मिला है. तूफान इडा से उबरने और ट्रकों और बंदरगाह श्रमिकों की कमी जैसे कारकों की वजह से कच्चे तेल की मांग में इजाफा देखा जा रहा है. जानकारों का कहना है कि नवंबर 2014 के बाद से तेल की कीमतें अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं. उत्पादन में कमी, मांग में बढ़ोतरी और सप्लाई-डिमांड के गणित ने कीमतों को शिखर पर पहुंचा दिया है.
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जानकारों का कहना है कि सप्लाई चेन की समस्या से भी कच्चे तेल की कीमतों को बढ़ाने में बड़े कारण के तौर पर उभरे हैं. पर्याप्त ट्रक और बंदरगाह कर्मचारियों के बगैर समय पर तेल का शिपमेंट नहीं हो पाया है, जिसकी वजह से ना सिर्फ वस्तुओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्रभावित हुई है, बल्कि इसने तेल उत्पादन के बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण या विस्तार को भी अधिक महंगा बना दिया है. तेल की बढ़ती कीमतों ने अर्थशास्त्रियों को चिंता में डाल दिया है. उनका कहना है कि तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी की वजह से महंगाई में भारी इजाफा हो सकता है. इसके अलावा मांग में भी भारी कमी देखने को मिल सकती है.
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