Jharkhand News: जमशेदपुर में नदियों को 'काले पानी' की सजा, खतरे में लौहनगरी
स्वर्णरेखा और खरकई नदी कभी लौहनगरी जमशेदपुर की लाइफलाइन मानी जाती थीं, लेकिन आज ये नदियां काले पानी में तब्दील हो चुकी है. सरकार और प्रशासन के दावों और झूठे वादों के बीच दोनों ही नदियां अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद कर रही हैं.
highlights
- नदियों को 'काला पानी' की सजा!
- खतरे में लौहनगरी की 'लाइफलाइन'?
- नदियों की बदहाली का कौन जिम्मेदार?
- शासन-प्रशासन की योजनाएं हवा-हवाई
Jamshedpur:
स्वर्णरेखा और खरकई नदी कभी लौहनगरी जमशेदपुर की लाइफलाइन मानी जाती थीं, लेकिन आज ये नदियां काले पानी में तब्दील हो चुकी है. सरकार और प्रशासन के दावों और झूठे वादों के बीच दोनों ही नदियां अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद कर रही हैं. एक तरफ पूरे देश में गंगा बचाओ जैसी योजनाओं के जरिए नदियों और तालाबों के संरक्षण की कवायद की जा रही है तो दूसरी तरफ जमशेदपुर में नदियां नाले में तब्दील हो रही है. वो भी तब जब ये शहर चारों ओर से नदियों के बीचों बीच बसा है.
नदी में गिरता है नालों का पानी
शहर स्वच्छता सर्वेक्षण में हमेशा अच्छे अंक लाता है. नगर निकाय स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर हर साल करोड़ों रुपए खर्च करता है और बड़ी-बड़ी कंपनियां भी सीएसआर के तहत करोड़ों रुपए शहर पर खर्च करने का दावा करती हैं, लेकिन ये कवायद और ये पैसे कहां हवा हो जाते हैं ये पता ही नहीं चलता. क्योंकि शहर के लगभग 40 बड़े नाले और डेनिस का पानी आज भी सीधे नदी में गिरता है. जिससे नदियां इतनी गंदी हो चुकी हैं कि इनका पानी काला हो चुका है.
लोग बूंद-बूंद पानी के लिए परेशान
नदियों के पानी का गंदा होना शहर के लोगों के लिए अभीशाप की तरह है. क्योंकि इन नदियों पर निर्भर आबादी को अब बूंद बूंद पानी के लिए भी परेशान होना पड़ रहा है. इस गंदे पानी में ना तो स्थानीय लोग नहा सकते हैं और ना ही मवेशियों के लिए पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है. एक तरफ जनता शासन प्रशासन के खोखले दावों का दंश झेल रही है, लेकिन प्रदेश के मंत्री और अधिकारी अभी भी आश्वासन का लॉलीपॉप थमाने से बाज नहीं आ रहे. जमशेदपुर पश्चिमी के विधायक और मंत्री बन्ना गुप्ता ने खुद नदियों में गिरने वाले नाले के पानी के ट्रीटमेंट का दावा किया था, लेकिन ये दावा भी सफेद हाथी ही साबित हुआ.
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कब लगेगा ट्रीटमेंट प्लांट?
अगर इन बयानों को सुने तो पानी की रिसाइक्लिंग कराई जाएगी. वॉटर ट्रीटमेंट करवाया जाएगा. योजनाएं लाई जाएंगी. यही सुनने को मिलता है. यानी अधिकारियों का एक ही फंडा है अगर बदहाली को लेकर कोई सवाल करे तो सीधे भविष्य में काम करवाया जाएगा कहकर पल्लाझाड़ लो, लेकिन इन मामनीयों को कौन बताए कि इनके दावे और हकीकत के बीच की दूरी और आम जनता की मजबूरी दोनों ही खत्म होने का नाम नहीं लेती. अब तो इन दावों पर विधायक सरयू राय ने भी सवाल खड़े किए हैं.
इन दोनों ही नदियों पर आसपास के 40 गांव निर्भर है, लेकिन इनकी दुर्दशा दिल को कचोटती है. नदियों की ये हालत इसलिए भी हैरान करती है क्योंकि हमारे देश में नदियों को भगवान की तरह पूजा जाता है. बावजूद इस तरह की उपेक्षा शासन प्रशासन की कार्यशैली के साथ आम जनता की आस्था पर भी सवाल खड़े करती है.
रिपोर्ट : रंजीत कुमार ओझा