G20 Summit आखिर व्लादिमीर पुतिन के इंडोनेशिया न आने की असल वजह है क्या...
विशेषज्ञों का मानना है कि क्रेमलिन इस तरह रूसी नेता को इंडोनेशिया में निंदा की आंधी से बचाना चाहता है. हालांकि पुतिन के वहां नहीं पहुंचने से पश्चिमी देशों के अभूतपूर्व प्रतिबंधों का पहले से सामना कर रहा रूस और अलग-थलग पड़ जाएगा.
highlights
- क्रीमिया पर कब्जे के बाद 2014 में जी20 शिखर सम्मेलन में पुतिन के झेलना पड़ा था अपमान
- इस बार इंडोनेशिया में यूक्रेन पर हमला छाया रहेगा, तो क्रेमलिन नहीं चाहता पुतिन वहां जाएं
- अमेरिका नीत पश्चिमी देशों के खिलाफ गठबंधन की दिशा में काम कर रहे हैं राष्ट्रपति पुतिन
नई दिल्ली:
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) जी20 शिखर सम्मेलन में आखिरी बार 2014 में अलग-थलग पड़े थे. यह तब की घटना है जब उन्होंने क्रीमिया पर कब्जा किया था. उस समय वह अपने प्रति वैश्विक नेताओं के रवैये से इस कदर स्तब्ध थे कि जी20 शिखर सम्मेलन बीच में ही छोड़कर आ गए थे. आठ साल बाद इतिहास अपने को दोहरा रहा है. इस बार पुतिन ने फरवरी से यूक्रेन (Russia Ukraine War) पर चढ़ाई बोल रखी है और पश्चिमी देशों को बार-बार परमाणु युद्ध (Nuclear War) की धमकी दे रहे हैं. ऐसे में पिछले अनुभवों से सबक लेकर इस 70 वर्षीय रूसी नेता ने बाली में हो रहे जी20 (G20) शिखर सम्मेलन से दूरी बनाना उचित समझा है. विशेषज्ञों का मानना है कि क्रेमलिन इस तरह रूसी नेता को इंडोनेशिया में निंदा की आंधी से बचाना चाहता है. हालांकि पुतिन के वहां नहीं पहुंचने से पश्चिमी देशों के अभूतपूर्व प्रतिबंधों का पहले से सामना कर रहा रूस और अलग-थलग पड़ जाएगा.
पुतिन नहीं चाहते सार्वजनिक अपमान
डायलॉग ऑफ सिविलाइजेशन इंस्टीट्यूट के चीफ रिसर्चर एलेक्सी मेलशेंको 2014 ब्रिसबेन जी20 शिखर सम्मेलन का जिक्र करते हुए कहते हैं कि व्लादिमीर पुतिन फिर से सावर्जनिक रूप से अपमानित नहीं होना चाहते हैं. 2014 शिखर सम्मेलन में पुतिन को वैश्विक नेताओं की फोटो लेते वक्त सबसे किनारे खड़ा कर दिया गया था. मेलशेंको कहते हैं, 'शिखर सम्मेलन में आप लोगों से बातचीत करते हैं और उनके साथ फोटो खिंचवाते हैं. अब वह किससे बात करेंगे, तो फोटो खिंचवाने का सवाल ही नहीं उठता है.' इसमें कोई शक नहीं है कि बाली में जी20 शिखर सम्मेलन में यूक्रेन पर रूस के हमले की चर्चा छाई रहेगी, जिसने पूरे वैश्विक ऊर्जा बाजार को हिलाने के साथ-साथ खाद्यान्न संकट को और बढ़ाने का काम ही किया है.
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वर्चुअली भी नहीं जुड़ेंगे शिखर सम्मेलन से
विदेश कूटनीति के विशेषज्ञ और क्रेमलिन के नजदीकी फ्योडोर लुकिनॉव के मुताबिक व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन पर टस से मस नहीं होना चाहते. वह कहते हैं, 'उनका पक्ष जगजाहिर है और वह उससे रत्ती भर भी हटना नहीं चाहेंगे. यही बात दूसरे पक्ष पर भी लागू होती है. फिर ऐसे में वहां जाने का मतलब क्या है?' क्रेमलिन ने पुतिन की इंडोनेशिया में अनुपस्थिति को अन्य कार्यक्रमों की व्यस्तता से जोड़ कर प्रस्तुत किया है. बगैर यह स्पष्ट किए कि इस ठोस वजह से रूसी नेता इतनी महत्वपूर्ण वैश्विक चर्चा से दूर हो रहे हैं. यही नहीं, क्रेमलिन ने यह भी साफ कर दिया है कि व्लादिमीर पुतिन वीडियो लिंक के माध्यम से भी शिखर सम्मेलन से नहीं जुड़ेंगे.
सर्गेई जाएंगे ,लेकिन कहने को कुछ भी नहीं
इसके उलट यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की वैश्विक नेताओं से वर्चुअली जुड़ेंगे. इस तरह वह अपेक्षा करते हैं कि वैश्विक नेताओं और लामबंद होकर रूसी हमले का कहीं कड़ाई से प्रतिवाद करें. हालांकि रूसी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व मॉस्को के शीर्ष कूटनीतिज्ञ सर्गेई लावरोव करेंगे. रूस का यह हुज्जती विदेश मंत्री जुलाई में बाली में हुई जी20 बैठक से उठकर चला आया था, जब यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा की गई थी. जाहिर है इस बार भी इंडोनेशिया में उन्हें कोई खास तवज्जो मिलने वाली नहीं है. राजनीतिक विश्लेषक कांस्टेंटीन क्लाचेव कहते हैं, 'उनके पास कहने को कुछ नहीं है. उनके पास यूक्रेन को लेकर ऐसा एक प्रस्ताव नहीं है, जो दोनों पक्षों को संतुष्ट कर सके.'
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यूक्रेन पर रूस को मिल रही एक के बाद एक शिकस्त
गौरतलब है कि सितंबर में हजारों की संख्या में रिजर्व सैनिकों को अग्रिम मोर्चे पर भेजने के बावजूद रूसी सेना को यूक्रेन में एक के बाद एक झटके लग रहे हैं. सितंबर में ही रूसी सेना को खार्कीव के उत्तर-पूर्वी हिस्से से पीछे हटना पड़ा था. अब बीते शुक्रवार फिर रूस ने घोषणा की कि वह सामरिक रूस से महत्वपूर्ण दक्षिण के बंदरगाह शहर खेरसॉन से अपनी सेना वापस बुला रहा है. क्रेमलिन के लिए यह एक और अपमान सरीखा घटनाक्रम है. शांति वार्ता का कोई भी संकेत या पहल फिलहाल ठंडे बस्ते में हैं. यहां तक कि खेरसॉन में शिकस्त के बाद रूस के एक एलीट वर्ग समेत सेना में काफी गुस्सा है. इस तरह की खबरें भी आई थीं कि पुतिन के तख्तापलट और जान से मारने के कुछ संदेश भी सोशल मीडिया पर वायरल हुए.
पश्चिम विरोधी गठबंधन तैयार करने की कोशिश में पुतिन
पश्चिम के अधिकांश नेताओं की ओर से अलग-थलग किए जाने के बाद व्लादिमीर पुतिन उन देशों के साथ संबंधों को मजबूत कर रहे हैं, जिनके मॉस्को के साथ परंपरागत रूप से अच्छे रिश्ते हैं या जो वैश्विक मामलों में अमेरिका के प्रभुत्व के खिलाफ लामबंद हैं. आर पॉलिटिक की संस्थापक तातियाना स्टेनोवाया के मुताबिक पुतिन का नजरिया यह है कि जी20 शिखर सम्मेलन में शिरकत नहीं करने से तटस्थ देशों से रूस को संबंध बनाने से नहीं रोका जा सकता है. पुतिन को ऐसा लग रहा है कि रूस के अमेरिका विरोधी रुख को अच्छा-खासा समर्थन मिल रहा है. क्रेमलिन का मानना है कि रूस को अलग-थलग करना असंभव है. यही वजह है कि पश्चिमी देशों के रुख से इतर पुतिन अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व में सहयोगी तलाश कर रहे हैं. इस तरह वह एक पश्चिम विरोधी गठबंधन तैयार करने की कोशिश में हैं.
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रूस के पश्चिम विरोधी गठबंधन पर संशय
तमाम राजनीतिक पर्यवेक्षक संशय में है कि इस प्रयास में क्रेमलिन सर्वेसर्वा सफल होगा. 24 फरवरी को यूक्रेन में रूसी सेना भेजने के बाद चीन समेत एक भी बड़ा देश रूस के समर्थन में खुलकर सामने नहीं आया. उलटे यूक्रेन पर रूस के हमले से मध्य एशिया के कुछ पड़ोसी देश और डर गए. नतीजतन कजाखिस्तान और उजबेकिस्तान सरीखे देश किसी और गठबंधन को तलाशने लगा. क्लाचेव कहते हैं, 'पश्चिम से तनातनी ने रूस को वैश्विक राजनीति और जलवायु परिवर्तन सरीखे महत्वपूर्ण मसलों से जुड़े मंचों पर हाशिये पर ला दिया है. हालांकि रूस उत्तरी कोरिया जैसा कोई खारिज देश नहीं है, लेकिन रूस फिलवक्त वैश्विक मसलों से जुड़े एजेंडो में शामिल नहीं है. रूस की सिर्फ परमाणु युद्ध सरीखे वैश्विक खतरे पर ही चर्चा हो रही है.'