Rishi Panchami 2020: ऋषि पंचमी पर सप्त ऋषियों की पूजा से मिलती है मुक्ति, जानें प्राचीन कथा
ऋषि पंचमी 2020 (Rishi Panchami 2020): आज ऋषि पंचमी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. लोगों ने सप्त-ऋषियों की पूजा की. धार्मिक मान्यता है कि ऋषि पंचमी पर सप्त ऋषियों की पूजा से दोषों का नाश हो जाता है.
नई दिल्ली:
ऋषि पंचमी 2020 (Rishi Panchami 2020): आज ऋषि पंचमी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. लोगों ने सप्त-ऋषियों की पूजा की. धार्मिक मान्यता है कि ऋषि पंचमी पर सप्त ऋषियों की पूजा से दोषों का नाश हो जाता है. यह भी माना जाता है कि यह व्रत करने से स्त्रियों को रजस्वला दोष से मुक्ति मिलती है. यह मुख्य तौर पर नेपाल का त्योहार है लेकिन सनातन धर्म में ऋषि पंचमी की काफी महत्ता होने से भारत में भी सप्त ऋषियों की पूजा के लिए यह पर्व मनाया जाता है.
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ऋषि पंचमी की व्रत कथा : ऋषि पंचमी व्रत प्रचलित कथा के अनुसार, सतयुग में राजाविदर्भ नगर में श्येनजित नामक तेजस्वी राजा था. वहां सुमित्र नाम का एक किसान था, जिसकी पत्नी का नाम जयश्री था. एक दिन वो खेत में काम कर रही थी, तभी बारिश हो गई. उसी समय वह रजस्वला हो गई. फिर भी वह काम में लगी रही. कुछ समय बाद सुमित्र और जयश्री की मृत्यु हो गई. कथा के अनुसार, अगले जन्म में जयश्री कुतिया बनी तो सुमित्र को बैल की योनी मिली. दोनों को ही अपना पुराना जन्म याद रहा. वे दोनों कुतिया और बैल के रूप में उसी नगरी में गए और अपने बेटे सुचित्र के यहां रहने लगे. धर्मात्मा सुचित्र अतिथियों को सम्मान देते थे. सुचित्र ने अपने पिता के श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों के लिए कई तरह के व्यंजन बनवाए.
लेकिन रसोई में रखी खीर के बर्तन में एक सांप ने जहर उगल दिया, जिसे कुतिया के रूप में सुचित्र की मां ने देख लिया. उसने अपने पुत्र को बह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया. सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती यह सब देखकर नाराज हो गई और चूल्हे से जलती लकड़ी निकालकर कुतिया को दे मारा. इस घटना के बाद चंद्रवती ने खाने का सब सामान बाहर फिकवा दिया. फिर बर्तनों को साफ कर दोबारा खाना बनाकर ब्राह्मणों को खिलाया.
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उधर, कुतिया बैल के रूप में रह रहे अपने पूर्व पति के पास गई. उसने कहा, हे स्वामी! आज तो मैं भूख से मरी जा रही हूं. सांप के विष वाली खीर के बर्तन में मुंह डालकर मैंने बेटे को ब्रह्म हत्या के पाप से बचा लिया. इसी वजह से बहू ने मुझे मारा और खाना भी नहीं दिया. तब बैल ने कहा, हे भद्रे! तेरे पापों के चलते मुझे भी इस योनी में जन्म मिला है. आज तो मेरी कमर टूट गई बोझा ढोते-ढोते. आज दिन में पूरे दिन मैंने हल चलाया है लेकिन खाना नहीं मिला.
सुचित्र उनकी बातें सुन रहा था. उसने तुरंत ही दोनों को भरपेट भोजन कराया. फिर वो वन की तरफ चल पड़ा. जंगल में उसने ऋषियों से पूछा कि मेरे माता-पिता को कौन-से कर्मों के चलते यह फल मिला है और कैसे उन्हें इससे मुक्ति मिल सकती है. इस पर सर्वतमा ऋषि ने कहा, तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नी सहित ऋषि पंचमी का व्रत करो. इसका फल तुम्हारे माता-पिता को मिलेगा.
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यह सुनकर सुचित्र घर लौटा और पत्नी सहित भाद्रपद माह की शुक्ल पंचमी को विधिपूर्वक व्रत किया. इस व्रत के फल से उसके माता-पिता को मुक्ति मिल गई. मान्यता है कि ऋषि पंचमी का व्रत करने वाली महिला सभी सांसारिक सुखों को भोगकर बैकुंठ जाती है.