Akshaya Tritiya 2022, Badrinath Dham in Shri Baanke Bihari Charan: श्री बांके बिहारी जी के चरणों में होते हैं बदरीनाथ धाम के दर्शन, वो चमत्कार जिसने वृन्दावन छोड़ रहे संतों को ब्रज धाम में रुकने पर किया विवश
चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों ऐसा माना जाता है कि बद्रीनाथ धाम के दर्शन श्री बांके बिहारी के चरणों में होते हैं और वो कौन सा चमत्कार है जिसने वृन्दावन छोड़ रहे संतों को ब्रजधाम में रुकने के लिए विवश कर दिया था.
नई दिल्ली :
Akshaya Tritiya 2022, Shri Baanke Bihari Charan Darshan Rahasya: अक्षय तृतीया वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को मनाई जाती है. इस बार यह त्योहार 3 मई, मंगलवार के दिन पड़ रहा है. अक्षय तृतीया को जहां एक ओर शुभ मुहूर्त और शुभ खरीदारी से जोड़ कर देखा जाता है वहीं इस पर्व का एक तार वृन्दावन से भी जुड़ा हुआ है. अक्षय तृतीया के दिन ही वृन्दावन के स्वामी श्री बांकें बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं. माना जाता है कि श्री बांकें बिहारी के चरणों के दर्शन से व्यक्ति को चार धाम की यात्रा का पुण्य प्राप्त होता है. ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों ऐसा माना जाता है कि बद्रीनाथ धाम के दर्शन श्री बांके बिहारी के चरणों में होते हैं और वो कौन सा चमत्कार है जिसने वृन्दावन छोड़ रहे संतों को ब्रजधाम में रुकने के लिए विवश कर दिया था.
भक्तिकाल में जीवन के अंतिम पड़ाव में पहुँचने पर लोग बद्रीनाथ समेत चार धाम की यात्रा करने जाते थे और मन में वापस न लौटकर आने का भाव रखते. लाखों की संख्या में वृन्दावन से भी संत बद्रीनाथ धाम के दर्शनों के लिए जाते थे. दरअसल, अक्षय तृतीया के दिन बद्रीनाथ के पट खुलते हैं. ऐसे में एक बार वृंदावन में तपस्यारत संतों की इच्छा बद्रीनाथ दर्शन की हुई.
तब स्वामी हरिदास जी ने सोचा अगर अधिक संत वृंदावन से चले गये और न लौटे तो यह भूमि वीरान नजर आयेगी. इसी समस्या का तोड़ निकालने के लिए उन्होंने संतों के सम्मुख प्रस्ताव रखा और और ठाकुरजी के दिव्य चरणों और आकर्षक श्रृंगार कर बद्रीनाथ के दर्शन का पुण्य वृंदावन में ही दिलाने का भरोसा दिया.
संतों ने स्वामीजी का प्रस्ताव स्वीकार किया. स्वामी जी ने इस कठिन कार्य के लिए तपस्या की और प्रभु से सहायता मांगी. जिसके स्वरूप ठाकुरजी ने उन्हें अक्षय तृतीया पर भव्य और दुर्लभ दर्शनों का आशीष प्रदान किया.
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जिसके बाद स्वामी हरिदास ने प्रभु की साधना में लीन संतों का अक्षय तृतीया के दिन बद्रीनाथ दर्शन का पुण्य प्रदान करवाने के लिए ठाकुरजी के चरणों के दर्शन करवाए और उनका ऐसा श्रृंगार किया कि संतों को बद्रीनाथ के दर्शनों का पुण्य ठाकुरजी के चरण दर्शन में मिला.
इससे संतों ने ब्रज, वृंदावन छोड़कर न जाने का प्रण लिया. तभी से मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर बद्रीनाथ के दर्शनों का पुण्य भी मिलता है.