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तस्वीरों में देखिए स्पेशल सम्पूर्ण डिजिटल रामायण

News Nation Bureau New Delhi 30 September 2017, 05:59:58 PM
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बालकांड में राम के बचपन का है वर्णन

बालकांड में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के बचपन का वर्णन है। अयोध्या के राजा दशरथ के तीन रानियां कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा थी लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। 'पुत्र कामेष्टि यज्ञ' के बाद रानी कौशल्या के गर्भ से राम ने जन्म लिया। सुमित्रा ने शत्रुघ्न और लक्ष्मण तथा कैकेयी ने भरत को जन्म दिया।

जमीन से मिली थी सीता

इसी समय मिथला के राजा जनक के यहां सीता ने जन्म लिया। कहा जाता है कि कि खेत जोतते समय उन्हें जमीन से सीता मिली थी जिसे उन्होंने अपनी पुत्री के रूप में अपनाया।

अयोध्या के चारों राजकुमार ने अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा ली

इसी बीच ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ के यहां आकर उनके चारों पुत्रों को शिक्षा देने के लिये आश्रम ले जाते हैं। उन्हें वेद पुराणों के साथ ही अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा दी। धनुधारी राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों को मार डाला और मारीच को बिना फल वाले बाण से मार कर समुद्र के पार भेज दिया। उधर लक्ष्मण ने राक्षसों की सारी सेना का संहार कर डाला।

शिव धनुष तोड़कर राम ने किया सीता से विवाह

तभी राजा जनक राजकुमारी सीता के स्वयंवर की घोषणा करते हैं और विश्वामित्र उन्हें मिथिला लेकर जाते हैं। कई प्रयासों के बाद भी जनक के दरबार में शिव का धनुष कोई तोड़ नहीं पाता। फिर भगवान राम ने शिव धनुष तोड़कर सीता से विवाह किया।

राम और सीता का विवाह

राम और सीता के विवाह के साथ ही साथ भरत का माण्डवी से, लक्ष्मण का उर्मिला से और शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति से विवाह करवाया गया।

दशरथ ने की राम के राज्याभिषेक की घोषणा

राम और सीता के विवाह के बाद बूढ़े हो चुके राजा दशरथ के सामने सबसे बड़ा सवाल था की अयोध्या की गद्दी पर किसे (राम, लक्ष्मण, भरत या शत्रुघ्न) बैठाया जाए। उन्होंने अपने सबसे बड़े बेटे राम के राज्याभिषेक की घोषणा कर दी। लेकिन कैकेयी की एक कुबड़ी दासी मंथरा ने उन्हें भड़का दिया।

दशरथ के फैसले से नाराज कैकेयी

मंथरा ने कहा कि अयोध्या का राजा तो भरत को होना चाहिये। इसके बाद कैकेयी नाराज़ होकर कोप भवन में चली गईं। राजा दशरथ परेशान होकर उन्हें मनाने आए।

कैकेयी ने दशरथ के सामने रखी दो शर्त

कैकेयी ने राजा दशरथ से दो वर मांगे, पहला ये कि भरत को अयोध्या की राजगद्दी मिले और दूसरा कि राम को चौदह वर्ष का वनवास।

वनवास को जाते सीता, राम और लक्ष्मण

राम ने राजा दशरथ को अपना वचन पूरा करने का आग्रह किया और वो सन्यासियों का वस्त्र पहन सीता और लक्ष्मण के साथ वन को निकल पड़े। इधर राजा दशरथ सदमे का कारण प्राण त्याग दिये। भरत ने उनकी अन्त्येष्टि की

अयोध्या की गद्दी पर रखा खड़ाऊ

मां से नाराज़ भरत राम को मनाने आए परंतु राम ने उन्हें वापस अयोध्या लौटा दिया। अब भरत राम की खड़ाऊ गद्दी पर रख राजकाज देखने लगे। भरत की नाराजगी से कैकेयी को भी अपने किये पर दुख हुआ।

श्री राम केवट के साथ

राम केवट की मदद से नदी के उस पार जाते हैं और उसकी भक्ति को देखकर वो प्रसन्न होते हैं।

सूर्पनखा सीता की ओर मारने दौड़ती है

वन में प्रवास के दौरान सूर्पनखा घूमती हुई राम की कुटिया पर आ जाती है और उनसे विवाह का प्रस्ताव रखती है। लेकिन राम और लक्ष्मण दोनों मना कर देते हैं। जिससे नाराज़ हो वो सीता को मारने दौड़ती है।

लक्ष्मण ने काटी सूर्पनखा की नाक

लक्ष्मण उसकी नाक काट लेते हैं। वो रोती रावण के पास जाती है और रावण अपने मामा मारीच को मृग के रूप में राम की कुटिया के पास भेजता है।

सीता मृग को देखती हुई

सीता उस मृग को देखकर मोहित हो जाती हैं और राम से उस मृग को पकड़कर लाने के लिए कहती हैं।

राम वन में मृग के पीछे जाते हुए

सीता की बात सुनकर राम वन में मृग के पीछे जाते हैं।

मारिची को मोक्ष की प्राप्ति

राम उस मृग का पीछा करते हुए जंगल में बहुत दूर निकल आए। आख़िरकार भगवान श्री राम के हाथों मारिची नाम के उस बहरुपिये को मोक्ष की प्राप्ति हुई।

माता सीता की रक्षा के लिए 'लक्ष्मणरेखा'

श्रीराम को वापस आश्रम पहुंचने में काफी देर हो रही थी। लक्षमण भारी दुविधा में माता सीता के आग्रह पर राम को ढूंढ़ने निकले। लेकिन माता सीता की रक्षा के लिए रेखा खींच गए।

भिक्षुक के रूप में रावण

अकेली सीता को देख रावण ब्राह्मण रुप में भिक्षाटन के लिए आया और उनसे लक्षमण रेखा के बाहर आकर दान देने को कहा।

सीता का अपहरण कर ले जाता रावण

सीता ब्राहमण के आग्रह पर रेखा लांघ गईं, तभी रावण अपने असली वेष में आ गया और माता सीता को अपने कंधे पर उठाकर अपनी पुष्पक विमान की तरफ रवाना हो गया।

घायल जटायू

रास्ते में सीता की चीख़ सुनकर जटायु पुष्पक विमान की तरफ झपटा। काफी देर तक रावण और जटायू के बीच लड़ाई चलती रही। आख़िर में जटायू रावण के तलवार से घायल होकर ज़मीन पर गिर पड़ा।

किष्किंधाकाण्ड

रावण सीता का हरण कर अपने साथ ले जा रहा था। देवी सीता ने एक तरकीब निकाली और राम को संकेत देने हेतु अपने आभूषण रास्ते में गिराती गईं।देवी सीता द्वारा फेंके गए आभूषण वानर राजा सुग्रीव को मिले। सुग्रीव ने वह आभूषण संभाल कर अपने पास रख लिए।

किष्किंधाकाण्ड

देवी सीता द्वारा फेंके गए आभूषण वानर राजा सुग्रीव को भी मिले। सुग्रीव ने वह आभूषण संभाल कर अपने पास रख लिए। राम और लक्ष्मण जी देवी सीता को ढूंढते हुए मलय पर्वत पर पहुंचे। मलय पर्वत पर वानर राजा सुग्रीव अपने भाई बालि के डर से अपने मंत्रियों तथा शुभचिंतकों के साथ विराजमान थे। सुग्रीव ने वह आभूषण उन्हें सौंप दिए।

किष्किंधाकाण्ड

सुग्रीव ने बाली के अत्याचारों के बारे में राम को बताया। जिसके बाद राम ने बाली का वध कर सुग्रीव को बाली के आतंक से मुक्त किया। तत्पश्चात सुग्रीव वानरराजा बने। राम के साथ वानरो की सेना मां सीता की खोज में निकली पर वानरों के लिए विशाल समुद्र लांघना कठिन था। तब जामवंत तथा वानरों ने हनुमानजी को उनकी शक्ति का स्मरण करवाया।

किष्किंधाकाण्ड

सीता की खोज में समुद्र पार करने के समय सुरसा ने राक्षसी का रूप धारण कर हनुमान का रास्ता रोका तब हनुमान ने अपना शरीर का आकार बड़ा कर लिया और फिर अचानक ही अपना शरीर बहुत छोटा कर सुरसा के मुंह में प्रवेश करके तुरंत ही बाहर निकल आये। सुरसा ने प्रसन्न होकर हनुमान को आशीर्वाद दिया तथा उनकी सफलता की कामना की।

श्रीराम के परमभक्त हनुमान का सीता की तलाश में निकलना

श्रीराम ने माता सीता की खोज का कार्यभार पवनपुत्र हनुमान को दिया। श्री हनुमान माता सीता की खोज के लिए निकले और कठिन चुनौतियों को लांघ समुद्र पार कर लंका पहुंच गए।

हनुमान का लंका में पहुंचना

समुद्र के रास्ते हनुमान को लंका पहुंचने के लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। यहां राक्षसी सुरसा ने हनुमान की परीक्षा ली और उसे योग्य तथा सामर्थ्यवान पाकर अपना आशीर्वाद भी दिया। इस मार्ग में हनुमान ने छाया पकड़ने वाली राक्षसी का वध किया और लंकिनी पर प्रहार करके अंतत: लंका में प्रवेश किया।

लंका में विभीषण से मिले हनुमान

लंका पहुंचने के बाद हनुमान ने जब सीता की तलाश शुरु की तो यहां उनकी भेंट विभीषण से हुई। विभीषण भी हनुमान की ही भांति श्रीराम के भक्त थे। लंका में श्रीराम के भक्त से मुलाकात कर हनुमान आश्चर्यचकित भी हुए। फिर विभीषण ने माता सीता के स्थान की जानकारी हनुमान की दी। विभीषण रावण का भाई था।

अशोकवाटिका में हनुमान का पहुंचना

सीता की तलाश में हनुमान लंका में रावण की अशोकवाटिका में जा पहुंचे। यहां अशोकवाटिका पर चारों ओर से रावण द्वारा तैनात राक्षसी सेना का पेहरा था। जब हनुमान छुपते-छुपाते अशोकवाटिका में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि रावण सीता को धमका रहा था।

सीता से हनुमान का मिलना और राममुद्रिका भेंट करना

सीता और रावण के बीच तनावपूर्ण वार्तालाप के बाद जब रावण वहां से गया तो त्रिजटा नाम की राक्षसी सैनिक सीता को सान्त्वना देती हैं। फिर एकदम एकान्त होने पर हनुमान सीता से भेंट करते हैं और उन्हें राम की मुद्रिका प्रस्तुत कर अपना परिचय कराते हैं। इसके बाद सीता से आशीर्वाद प्राप्त कर अशोकवाटिका का विध्वंस कर रावण के पुत्र अक्षय कुमार का वध करते हैं।

हनुमान अशोकवाटिका में अपनी भूख मिटाने जाते हैं।

सीता से मिलने के बाद हनुमान ने सीता से कहा कि उन्हें भूख लगी है और यदि उन्हें आपत्ति न हो तो वो रावण के बगीचे में लगे फलों के पेड़ों से फल खा लें। फल खाते समय पेडों के टूटने से राक्षस हमला कर देते हैं।

मेघनाद हनुमान को पकड़कर रावण के दरबार में लाता है।

जिन्हें हनुमान मारकर भगा देते हैं और जाकर रावण से शिकायत करते हैं। रावण हनुमान को पकडने के लिये अक्षय कुमार को भेजता है, जिसका हनुमान वध कर देते हैं। फिर मेघनाद जाकर उन्हें पकड़कर रावण के दरबार में लाता है।

रावण हनुमान के पूंछ में आग लगाने की आज्ञा देता है।

रावण हनुमान का मजाक उड़ाता है और फिर उनकी पूंछ में आग लगाने की आज्ञा देता है।

हनुमान लंका के सभी घरों पर जाकर आग लगा देते हैं।

हनुमानजी की पूंछ में आग लगा दी जाती है और उसके बाद हनुमान लंका के सभी घरों पर जाकर आग लगा देते हैं और थोड़ी ही देर में पूरी लंका जलने लगती है।

हनुमान वापस आकर राम को सारा क़िस्सा बताते हैं।

हनुमान सीता से दोबारा मिलकर वापस आते हैं और राम को सीता का हाल बताते हैं और सीता की चूड़ामणि उन्हें देते हैं।

विभीषण रावण को समझाते हुए

विभीषण ने रावण को समझाया कि वो राम से बैर न ले और सीता को लौटा दे। लेकिन समझाने पर नाराज हो रावण ने विभीषण को अपमानित कर लंका से निकाल दिया।

विभीषण राम की शरण में आ गया

विभीषण लंका छोड़ राम की शरण में आ गया... और राम ने विभीषण को लंका का राजा घोषित कर दिया।

राम की सेना लंका की तरफ बढ़ी

विभीषण ने राम की मदद करने का भरोसा दिया और उसके बाद राम की सेना लंका की तरफ बढ़ी।

समुद्र ने राम से क्षमा मांगी

राम ने समुद्र से रास्ता मांगा लेकिन समुद्र नहीं माना। फिर राम ने क्रोधित हो उसे सुखाने के लिये धनुष उठाया। समुद्र ने प्रकट हो राम से क्षमा मांगी औऱ कहा कि नल और नील दोनों भाई समुद्र पर पुल बना सकते हैं।

मेघनाद

समुद्र पार कर राम की सेना लंका पहुंचती है और रावण की सेना के साथ भयंकर युद्ध होता है। रावण की सेना के सैनिक मारे जाते हैं।

मेघनाद के बाण से लक्ष्मण घायल हो जाते हैं

अपनी सेना का विनाश देख रावण मेघनाथ को युद्ध के लिये भेजता है। वो भयानक युद्ध करता है और उसका सामना करने के लिये राम लक्ष्मण को भेजते हैं। मेघनाद तांत्रिक शक्तियों का लक्ष्मण को घायल कर मूर्छित कर देता है। लक्ष्मण की हालत देख राम परेशान हो जाते हैं और विभीषण की सलाह पर लंका के राजवैद्य सुषेण को इलाज के लिये बुलाते हैं।

हनुमान

सुषेण कहते हैं लक्ष्मण को हिमालय में मिलने वाली संजीवनी बूटी ही बचा सकती है। हनुमान बूटी लाने के जाते हैं और सुषेण के इलाज से लक्ष्मण स्वस्थ्य हो जाते हैं।

कुम्भकर्ण

लंका में रावण लक्ष्मण के ठीक होने से चिंतित होता है और युद्ध के लिये छोटे भाई कुम्भकर्ण को जगाने की कोशिश करता है। ब्रह्मा के शाप से कुम्भकर्ण सिर्फ सोता रहता था और 6 महीने में एक बार जागता था।

कुंभकर्ण युद्ध करने जाता है

रावण किसी तरह से कुंभकर्ण को कई उपाय करने के बाद जगा पाता है और पूरी घटना की जानकारी देता है। दुखी कुंभकर्ण युद्ध करने जाता है। राम से उसका युद्ध होता है और वो मारा जाता है।

मेघनाथ

कुंभकर्ण के मारे जाने के बाद मेघनाद फिर युद्ध करने आता है। लक्षमण के साथ भयंकर युद्ध होता है और वो मारा जाता है।

मेघनाद मारा जाता है

परिवार के सदस्यों के मारे जाने के बाद रावण राम से युद्ध के लिये आता है।

रावण को था अमृत्व का वरदान

राम उसका सिर काटते हैं लेकिन उसके नए सिर आ जाते है।

विभीषण की वजह से हुई मौत

विभीषण राम को रावण की मृत्यु का उपाय बताता है और राम उसका वध कर देते हैं।

विभीषण को मिलती है सत्ता

रावण की मृत्यु का बाद राम विभीषण को लंका का राजा बना देते हैं।

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