भारत और इज़राइल के बीच गंगा समझौते पर हुआ करार, जाने सफाई का क्या रहा है हाल ?
भारत और इस्राइल के बीच अंतरिक्ष, कृषि, जल संरक्षण और गंगा की सफाई समेत सात समझौतों पर दस्तखत किए गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बीच गहन विचार-विमर्श के बाद ये करार किए गए।
इजरायल से यूपी में क्लीन गंगा प्रोजेक्ट के लिए भी एक समझौता हुआ। इसके साथ ही उम्मीद की जा रही है कि अब गंगा की सफाई को गति मिलेगी। नमामि गंगे परियोजना के तहत जनवरी 2016 से ही गंगा की सफाई तीन चरणों में होनी है जिसमें अल्पकालिक योजना व पांच वर्ष की दीर्घावधि योजना शामिल है।
2014 में न्यूयॉर्क में मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, 'अगर हम इसे साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 फीसदी आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी। अतः गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है'।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2019-2020 तक नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना करते 20,000 करोड़ रुपए खर्च करने की प्रस्तावित कार्य योजना को मंजूरी दी थी। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक संरक्षण गुट को 20 हजार करोड़ रुपए की राशि गंगा नदी की सफाई के लिए दी गई थी, लेकिन इस नदी को बचाने के लिए दस वर्षों में मात्र 967 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए।
गंगा की सफाई के नाम पर वर्ष 1985 से लेकर अब तक बाईस हजार करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, जिसमें गंगा एक्शन प्लान का फंड, जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन व विश्व बैंक द्वारा दिया गया कर्ज भी शामिल है।
वाराणसी के अलावा फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर व इलाहाबाद में बढ़ते शहरीकरण से पिछले दो दशक में गंदे पानी की मात्रा में बेतहाशा वुद्धि हुई है। उत्तराखंड जहां गोमुख से गंगा का उद्गम माना गया है, इस प्रदेश में विशेष रूप से हरिद्वार में प्रदूषण की स्थिति काफी भयावह है। वर्ष 2015 के सर्वे के मुताबिक 16.87 मिलियन टन सीवर का गंदा पानी गंगा में रोजाना मिल रहा है।
ऋषिकेश से इलाहाबाद तक गंगा के आसपास करीब पच्चीस औद्योगिक इकाइयां स्थित हैं जिनमें चीनी, उर्वरक व कागज मिल के अलावा तेलशोधक कारखाने तथा चमड़ा उद्योग प्रमुख हैं। इन कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट में मुख्य रूप से हाइड्रोक्लोरिक एसिड, मरकरी, भारी धातुएं व कीटनाशक जैसे खतरनाक रसायन होते हैं। ये रसायन मनुष्य की कोशिकाओं में जमा होकर बहुत-सी बीमारियां उत्पन्न करते हैं।
बिहार और पश्चिम बंगाल में भी गंगा में प्रदूषण, गंगा एक्शन प्लान पर काम होने के बावजूद तेजी के साथ बढ़ा है। यहां तीन से ज्यादा नालों का मुंह गंगा में खुलता है। बिहार के पंद्रह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट एक अरसे से खराब हैं। फतुहा से दानापुर तक गंगा के पेट में र्इंट के भट्ठे लगते हैं।
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