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सोनिया गांधी के करीबी रहे जनार्दन द्विवेदी ने कांग्रेस नेतृत्व पर उठाए सवाल, कहीं ये बड़ी बातें

सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पार्टी के पूर्व महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कांग्रेस की मौजूदा स्थिति पर चिंता जताई है.

News Nation Bureau
| Edited By :
09 Jul 2019, 03:01:23 PM (IST)

नई दिल्ली:

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के बाद कांग्रेस में इस्तीफे का दौर शुरू हो गया है. सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पार्टी के पूर्व महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने कांग्रेस की मौजूदा स्थिति पर चिंता जताई है. उन्होंने कहा, इस स्थिति पर बात करना कष्टदायक है. संगठन की स्थिति देखकर पीड़ा होती है. कारण बाहर नहीं भीतर है. कई ऐसी बातें पार्टी में हुईं, जिससे मैं सहमत नहीं था. नेतृत्व से असहमतियों को छिपाया नहीं है.

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जनार्दन द्विवेदी ने आगे कहा, मैंने आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग की. तब कांग्रेस अध्यक्ष ने इस बात से किनारा कर लिया था. बाद में जब मोदी सरकार ने 10% आरक्षण लेकर आई तो सारी पार्टियां मौन हो गईं. भारतीयता और भगवाकरण को लेकर मेरे विचार से पार्टी सहमत नहीं थी. बाद में भारतीय संस्कृति से नजदीकी दिखाने के लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ा!

उन्होंने कहा, राहुल गांधी का इस्तीफा आदर्श स्थापित करता है. कांग्रेस में अध्यक्ष इस्तीफा देता है, लेकिन बाकी पार्टी जस की तस चलती रहती है. जो लोग जिम्मेदारी के पदों पर हैं उन्हें राहुल की बातों का पालन करना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. राहुल गांधी आज भी पार्टी के अध्यक्ष हैं. आज नए अध्यक्ष को लेकर बैठकें हो रही हैं वो कौन हैं? कॉर्डिनेशन कमिटी के नाम पर बैठक हो रही है, जबकि कॉर्डिनेशन कमिटी अस्तित्व में ही नहीं है.

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जनार्दन द्विवेदी ने आगे कहा, राहुल के फैसले का समर्थन करता हूं. जब तक आप छोड़ेंगे नहीं पाएंगे नहीं. गांधी, विनोवा चाहते तो क्या नहीं बन सकते थे. मैं आज इसलिए बोल रहा हूं, क्योंकि 5 साल पहले पार्टी में ये बात चली थी कि नए लोग जिम्मेदारी लें और बुजुर्ग दूसरी जिम्मेदारी देखें. तब सोनिया गांधी जब उपचार के लिए गई थीं तब वो एक कमिटी बना कर गई थी.

जनार्दन द्विदेवी ने आगे कहा, 15 सितंबर 2014 को सोनिया को लिखा खत सार्वजनिक कर रहा हूं, जिसमें मैंने त्यागपत्र की पेशकश की थी. जिस समाज, संगठन, देश में स्वतंत्र विचार और मुक्त आत्मा का स्वर नहीं सुना जाता, वो समाज, देश मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं रह सकता और वहां लोकतंत्र नहीं रह सकता. राहुल को पद छोड़ने से पहले कोई व्यवस्था करनी चाहिए थी.