संसद में बिना वोट के हटाया जा सकता है आर्टिकल 35A और 370: सुब्रमण्यम स्वामी
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने दावा किया है कि जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 35A को हटाया जा सकता है।
नई दिल्ली:
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने दावा किया है कि जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 35A को हटाया जा सकता है।
स्वामी ने दावा किया कि आर्टिकल 35A और आर्टिकल 370 दोनों ही संविधान के अस्थायी कानून हैं जिन्हें संसद में बिना किसी वोट के हटाया जा सकता है।
स्वामी का यह बयान फारुख अब्दुल्ला के उस बयान के पलटवार में आया है जिसमें फारुख ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा छीनने वालों की कोशिश को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा।
स्वामी ने कहा,' वो (फारुख अब्दुल्ला) ऐसा कह सकें इसका हक उनके पास नहीं है। संविधान में दिया गया है कि यह दोनों कानून अस्थायी हैं। उदाहरण के लिए आर्टिकल 370 को संविधान में एक अस्थायी प्रावधान बताया गया है, जिसे संसद में बिना वोट किए हटाया जा सकता है।'
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उन्होंने कहा कि इसके अलावा वो कुछ और कह भी नहीं सकते क्योंकि उन्हें जनता का समर्थन प्राप्त नहीं है। जब संविधान से इन दोनों प्रावधानों को हटाया जाएगा तब वो एक मूर्ख की तरह खड़े इस बदलाव को देख सकते हैं।
वहीं दूसरी तरफ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के नेता डी रज़ा ने कहा कि आर्टिकल 35ए के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि फारुख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। वो किसी और की तुलना में इस समस्या के बारे में ज्यादा अच्छे से समझते हैं। वो यह बात अच्छे से समझते हैं कि कश्मीर में आर्टिकल 35ए के साथ छेड़छाड़ करने से क्या होगा।
हालांकि इस दौरान राष्ट्रीय जनता दल के नेता मनोज झा ने कहा कि इस मामले को न्यायपालिका को ही सुपुर्द कर देना चाहिए।
इससे पहले कश्मीर में व्यापारिक संगठनों ने आर्टिकल 35ए के साथ छेड़छाड़ करने के खिलाफ श्रीनगर में विरोध प्रदर्शन किया था।
क्या है अनुच्छेद 35A
दरअसल अनुच्छेद 35A को मई 1954 में राष्ट्रपति के आदेश के ज़रिए संविधान में जोड़ा गया था।
यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर विधान सभा को यह अधिकार देता है कि वो राज्य के स्थायी नागरिक की परिभाषा तय कर सके।
सिर्फ इन्हीं नागरिकों को राज्य में संपत्ति रखने, सरकारी नौकरी पाने या विधानसभा चुनाव में वोट देने का हक मिलता है। इसी वजह से जम्मू कश्मीर में बाहर से आकर बसे हज़ारो शरणार्थियों की स्थायी नागरिकता ना होने के चलते उन्हें बुनियादी हक़ नहीं मिलते।
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