सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी ऐसे बन गई वोट कटवा, चुनाव दर चुनाव खिसकती गई जमीन
पिछले लोकसभा चुनाव यानी 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की सुनामी में सपा-बसपा तो अपने वोट बैंक को काफी हद तक बचाने में सफल रहे पर कांग्रेस की दुर्गति हो गई.
नई दिल्ली:
बीच चुनाव में कांग्रेस की महासचिव वोट कटवा वाले बयान से प्रियंका गांधी ने कांग्रेस को मझधार में डाल दिया है. नुक्कड़ हो मेट्रो या फिर सियासी गलियारे, आज अधिकतर लोगों की जुबान पर एक ही सवाल है. क्या देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस, वोट कटवा पार्टी है ? चार चरणों के चुनाव के बाद प्रियंका गांधी के बयान से लगता है कि कांग्रेस पार्टी, चुनाव के बीच में ही हार मान चुकी है. असल में यह सवाल इसलिए उठ रहें हैं क्योंकि कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में कुछ जगह ऐसे उम्मीदवार चुनाव के मैदान में उतारे हैं, जो बीजेपी का वोट काट सकें, ना की चुनाव में जीत हासिल कर सकें.
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चुनाव से पहले जब प्रियंका गांधी को महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंपा गया तो कांग्रेसियों में थोड़ा करंट पैदा हुआ था. बीजेपी के आलोचक सियासत के पंडितों की नजर में प्रियंका गांधी, इंदिरा गांधी दिखने लगीं. लेकिन चार चरण के चुनाव के बाद प्रियंका गांधी का बयान हताश करने वाला है, खासकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों को.
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रायबरेली में प्रियंका से जब यूपी में कांग्रेस के जीतने की कम संभावना को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, ' मेरी रणनीति एकदम साफ है. कांग्रेस उन सीटों पर जीत हासिल करेंगी जहां हमारे मजबूत उम्मीदवार हैं. वहीं जहां हमारे उम्मीदवार कमजोर हैं, उस जगह वह बीजेपी का वोट काटने का काम करेंगे. '
सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी ऐसे बन गई वोट कटवा
यूपी में कांग्रेस का सबसे बड़ा वोट बैंक हुआ करता था दलित, ब्राह्मण और मुस्लिम. 1989 के बाद से बीजेपी मजबूत होती गई. इधर सपा-बसपा का उदय हो रहा था और उधर कांग्रेस की चमक फीकी पड़ती जा रही थी. इसकी सबसे बड़ी वजह कांग्रेस का कोर वोट बैंक का बिखर जाना या यूं कहें कि लुट जाना. ब्राह्मणों का बीजेपी और मुस्लिम वोटरों का सपा की ओर झुकाव बढ़ता गया. जहां तक दलित वोटरों की बात थी तो एकमुश्त बसपा के खाते में चले गए. पूरे प्रदेश से कांग्रेस का जनाधार ही लगभग खत्म हो गया. चुनाव दर चुनाव जमानत जब्त कराने वाले उम्मीदवारों की संख्या बढ़ती गई.
अगर पिछले 10 चुनावों की बात करें तो आंकड़ें भी यही कह रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव यानी 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की सुनामी में सपा-बसपा तो अपने वोट बैंक को काफी हद तक बचाने में सफल रहे पर कांग्रेस की दुर्गति हो गई. 2009 में जहां कांग्रेस पूरे देश में 28.6% वोट पाई थी वहीं 2014 में यह आंकड़ा सिमट कर 19.6% हो गया. जहां तक यूपी की बात करें तो 18.3% से 7.5% पर आ गया. (देखें टेबल)
लोकसभा चुनाव | सीट | वोट शेयर | यूपी में वोट शेयर |
2014 | 44 | 19.60% | 7.50% |
2009 | 206 | 28.60% | 18.30% |
2004 | 145 | 26.50% | 12% |
1999 | 114 | 28.30% | 14.70% |
1998 | 141 | 25.80% | 6% |
1996 | 140 | 28.80% | 8.10% |
1991 | 244 | 36.40% | 18% |
1989 | 197 | 39.50% | 31.80% |
1984 | 415 | 48.10% | 51% |
1980 | 353 | 42.70% | 35.90% |
2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व में केंद्र में संप्रग सरकार बनी. मनमोहन सिंह पीएम बने. देश की 26.5% वोटरों ने कांग्रेस को वोट दिया था लेकिन यूपी के वोटर कांग्रेस के प्रति उदासीन रहे. केवल 12% वोट ही कांग्रेस को मिल पाया. इससे बेहतर हालत 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की थी, जिसने यूपी में 14.7% वोट हासिल किए. 1998 और 1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर यूपी में क्रमशः 6% और 8.1% रहा.
प्रियंका गांधी से करिश्मे की उम्मीद लगाए बैठे कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए ये बयान किसी बज्रपात से कम नहीं हैं. दरअसल प्रियंका जान गईं थीं कि मंडल-कमंडल में डूब चुके कांग्रेस के वोट बैंक को वापस लाना, पाताल से पानी निकालने जैसा है. अमेठी और रायबरेली से पहली बार हाथ को मजबूत करने बाहर निकलीं प्रियंका गांधी वाड्रा को जल्द ही इस बात का अहसास हो गया कि कांग्रेस की जमीन खिसक चुकी है और इसे वापस पाने के लिए कांग्रेस को अभी कई चुनाव लड़ने पड़ेंगे. वैसे भी अपने वोट कटवा वाले बयान से पलटे हुए प्रियंका गांधी ने कह दिया है कि बीजेपी से वह जीवन भर लड़ेंगीं.