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राजस्थान पर 'राज' की रारः ये विकल्प हो सकते हैं कांग्रेस हाईकमान के तारणहार

राजस्थान में अफरातफरी के बीच अशोक गहलोत, सचिन पायलट समेत खड़गे और माकन नई दिल्ली आलाकमान के दरबार में पहुंच रहे हैं. समझने की कोशिश करते हैं कि राजस्थान में आगे क्या हो सकता है.

Updated on: 26 Sep 2022, 02:10 PM

highlights

  • राजस्थान की रार से लग रहा है पंजाब न दोहराया जाए
  • अशोक गहलोत को है अपने 92 विधायकों का समर्थन
  • सचिन पायलट को हाईकमान से मिल रही है ताकत

नई दिल्ली:

राजस्थान का राजनीतिक संकट कांग्रेस हाईकमान के लिए गले की फांस बन रहा है. कांग्रेस के भीतर ही आवाजें उठ रही हैं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की रार कहीं कांग्रेस को एक और राज्य खोने पर मजबूर न कर दे. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के प्रति निष्ठावान लगभग 92 विधायकों ने स्पीकर सीपी जोशी को अपना इस्तीफा सौंप कर खुला विद्रोह कर दिया है. अचरज की बात यह है कि सीएम अशोक गहलोत ने इस प्रकरण पर हाथ खड़े कर दिए हैं. उनके प्रति समर्पित निष्ठावानों को मुख्यमंत्री के रूप में सचिन पायलट मंजूर नहीं हैं. वे चाहते हैं कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का 19 अक्टूबर को चुनाव होने के बाद सूबे के नए मुख्यमंत्री का चुनाव विधायक दल की बैठक से हो. हालांकि सचिन पायलट (Sachin Pilot) खेमे को विश्वास है कि हाईकमान अपने वादे पर खरा उतरेगा और सचिन की सीएम पद पर ताजपोशी हो जाएगी. इस विश्वास के चलते पायलट खेमे के उत्साही समर्थकों ने जगह-जगह 'नये युग की तैयारी' के बैनर टांग दिए हैं. इधर बागी विधायकों ने कांग्रेस (Congress) के केंद्रीय पर्यवेक्षकों मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन तक से मिलने से इंकार कर दिया है. इस अफरातफरी के बीच अशोक गहलोत, सचिन पायलट समेत खड़गे और माकन नई दिल्ली आलाकमान के दरबार में पहुंच रहे हैं. समझने की कोशिश करते हैं कि राजस्थान में आगे क्या हो सकता है.

कांग्रेस अध्यक्ष के लिए दूसरा उम्मीदवार
कांग्रेस आलाकमान पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के लिए किसी दूसरे उम्मीदवार का चयन कर सकता है. अशोक गहलोत वैसे भी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए अनिच्छुक उम्मीदवार हैं. वह राजस्थान के मुख्यमंत्री बतौर ही अपनी राजनीतिक पारी आगे बढ़ाना चाहते हैं. इस फेर में वह चाहते हैं कि आलाकमान उन्हें दोनों ही जिम्मेदारियां सौंप दे, जो फिलहाल के परिदृश्य में संभव नहीं दिखता है. अशोक गहलोत को कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपने के फेर में आलाकमान अपना ही नुकसान कर रहा है. सोनिया गांधी ने जी-23 के विद्रोह के बाद साफ-साफ कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव निष्पक्ष होगा. अशोक गहलोत को जबरन उम्मीदवार बनाने से यही संकेत जाएगा कि हाईकमान अपनी पसंद का अध्यक्ष ही चाहता है. 

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गहलोत की पसंद मान ले कांग्रेस हाईकमान
कांग्रेस हाईकमान अशोक गहलोत की बात मान ले और उनके विश्वासपात्र को सूबे की कमान सौंप दे. इससे राजस्थान में सरकार चलती रहेगी और विधायकों के विद्रोह की आशंका खत्म हो जाएगी. हालांकि इसका एक अर्थ यह भी होगा कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालते हुए अशोक गहलात राजस्थान की सरकार भी चलाते रहेंगे. यही नहीं, इससे दूसरा अनर्थकारी संदेश यह भी जाएगा कि अशोक गहलोत ने अपने विश्वस्त विधायकों को आगे कर कांग्रेस आलाकमान को चुनौती दी और अपनी बात मनवाने में सफल भी रहे. 

सचिन पायलट को ही सीएम बना दें
एक विकल्प यह भी बन सकता है कि कांग्रेस हाईकमान अशोक गहलोत को मना कर सचिन पायलट को ही मुख्यमंत्री बना दे. अशोक गहलोत को समझाया जाए कि वह अपने विश्वस्त विधायकों को सचिन पायलट को बतौर सीएम के लिए राजी करे. हालांकि इस विकल्प पर आगे बढ़ना कांग्रेस हाईकमान के लिए आसान नहीं है. इसकी एक बड़ी वजह यही है कि अशोक गहलोत के विश्वासपात्र सचिन पायलट को सीएम के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे. गहलोत खेमे के विधायकों का मानना है कि 2020 में पायलट ने ही विद्रोह की आग को हवा दी थी. इस कड़ी में यह भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि अशोक गहलोत ने रविवार देर रात ही अपने हाथ खड़े कर दिए हैं यह कह कर कि उनका विधायकों पर कोई जोर नहीं है. स्थिति इसके ठीक उलट है अशोक गहलोत का इन विधायकों पर पूरा नियंत्रण है, लेकिन वह सचिन पायलट को आगे बढ़ाने पर नहीं मानेंगे.

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रजामंदी से नया सीएम का चयन करे हाईकमान
कांग्रेस आलाकमान अशोक गहलोत और सचिन पायलट की रजामंदी से नया सीएम चुन सकता है. एक ऐसा नाम जो अशोक गहलोत औऱ सचिन पायलट दोनों ही को मंजूर हो. सूत्रों की मानें तो ऐसे कुछ नामों पर रविवार देर रात केंद्रीय पर्यवेक्षकों के साथ बैठक में चर्चा भी हुई है. बताते हैं कि सोमवार को दिल्ली में हाईकमान से मुलाकात के दौरान इन नामों को आगे बढ़ाया जा सकता है. हालांकि इस विकल्प के भी काम करने की उम्मीद न के बराबर ही है. ऐसा होने पर सचिन पायलट के हाथ कुछ भी नहीं लगेगा. ऐसे में वह फिर से बगावत का रास्ता चुन सकते हैं. उनका खेमा भी इसके लिए कतई तैयार नहीं होगा.