UP Elections: बीजेपी का सोशल इंजीनियरिंग पर भरोसा, 60-40 फॉर्मूला फिर से
कुल 107 उम्मीदवारों का ऐलान करते हुए अपने पुराने साथियों के साथ जातीय समीकरण पर भरोसा जताया है. पार्टी ने 60 फीसदी टिकट पिछड़ों और दलितों को दिए हैं. इसके साथ ही कम टिकट काटकर ‘अपनों’ पर उम्मीद कायम रखी गई.
highlights
- 44 सीटों पर पिछड़ा वर्ग, तो 19 सीटों पर दलित प्रत्याशी हैं
- भाजपा ने पिछली बार इस इलाके से 58 में से 53 सीट जीती
- जातीय के साथ सरकारी योजनाओं के लाभार्थी भी गणित में
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 80-20 फॉर्मूले का जिक्र किया था. अगर जनसंख्या घनत्व के लिहाज से देखें तो सूबे में यही हिंदू-मुस्लिम आबादी का अनुपात है. यह अलग बात है कि इसके बाद ही ओबीसी वर्ग के तीन मंत्रियों समेत लगभग दर्जन भर से अधिक विधायकों के इस्तीफे से बीजेपी नेतृत्व की पेशानी पर बल पड़ गए. इसके बाद बीजेपी नेतृत्व ने बजाय 80-20 के 60-40 फॉर्मूले पर काम शुरू कर दिया. इसकी झलक शनिवार को सूबे के पहले दो चरणों के चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नामों की घोषणा से भी मिलती है. पार्टी आलाकमान ने कुल 107 उम्मीदवारों का ऐलान करते हुए अपने पुराने साथियों के साथ जातीय समीकरण पर भरोसा जताया है. पार्टी ने 60 फीसदी टिकट पिछड़ों और दलितों को दिए हैं. इसके साथ ही कम टिकट काटकर ‘अपनों’ पर उम्मीद कायम रखी गई.
बीजेपी का ऐसा रहा है सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला
गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी को 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला था. तीन-चौथाई से ज्यादा सीट जीतने के साथ बीजेपी को 40 फीसदी वोट शेयर मिला था. 2017 में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने बीजेपी की तुलना में 44 फीसदी वोट हासिल किए थे. इसके बावजूद बीजेपी ने जीत का शानदार परचम फहराया. इसके बाद 2019 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने असंभव करार दिया जाने वाला गठबंधन किया. यह अलग बात है कि गठबंधन निष्प्रभावी रहा और बीजेपी ने 80 में से 62 सीटों पर कब्जा करने में सफलता हासिल की. बीजेपी संग गठबंधन वाली पार्टी को 2 सीटों के साथ कुल 50 फीसदी वोट मिले थे. सपा-बसपा दोनों का वोट शेयर गिर कर 37.5 फीसद पर आ गया था. अब 2022 विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी इसी फॉर्मूले पर चलती दिख रही है. उसकी निगाह सपा-बसपा के परंपरागत यादव, जाटव औऱ मुस्लिम वोट बैंक पर नहीं है. इन तीनों के करीब 40 फीसदी वोट हैं उत्तर प्रदेश में. ऐसे में बीजेपी सवर्ण, गैर यादव, ओबीसी और गैर जाटव मतदाताओं पर फोकस कर रही है. इनका समग्र फीसद लगभग 55 से 60 के आसपास बैठता है. यानी बीजेपी 60-40 फॉर्मूले को ही पहले की तरह दोहरा रही है.
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इस तरह साधा है समीकरण
2022 विधानसभा चुनाव के लिए घोषित 107 नामों की बात करें तो बीजेपी ने पुरानी सोशल इंजिनियरिंग ही दोहराई है. पार्टी नेतृत्व ने किसी नए प्रयोग से परहेज किया है. नामों की घोषणा में पश्चिमी यूपी का खास ध्यान रखकर जाटों और गुर्जरों के साथ दलितों पर ज्यादा भरोसा किया. भाजपा ने पिछली बार इस इलाके से 58 में से 53 सीटों पर जीत हासिल की थी. इस बार पार्टी ने ने 17 जाट, 7 गुर्जर और 19 दलितों को प्रत्याशी बनाया है. 2017 में भी 16 जाट, 7 गुर्जर और 18 दलितों को पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया था. पश्चिमी यूपी के 10-12 जिलों में जाटों और गुर्जरों की 16 से 17 फीसदी आबादी गहरा असर रखती है. गौरतलब है कि बसपा और आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद की सपा से नाराजगी के बाद भाजपा दलितों के सामने खुद को विकल्प के रूप में पेश कर रही है. प्रत्याशियों के चयन में 44 सीटों पर पिछड़ा वर्ग, तो 19 सीटों पर दलित प्रत्याशी बनाए गए हैं. इनमें सहारनपुर सामान्य सीट से दलित जगपाल सिंह से प्रत्याशी बनाकर बेहद साफ संदेश पहुंचाया गया है.
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दस महिलाओं को टिकट में भी प्रोफाइल पर पूरा ध्यान
जातीय समीकरण के अलावा केंद्रीय नेतृत्व ने कांग्रेस की प्रियंका गांधी की काट भी पेश की. बीजेपी ने पहली ही सूची में दस महिलाओं को टिकट दे डाला. महिला उम्मीदवारों के चयन में भी प्रोफाइल का ध्यान रखा गया है. इसे कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के 'लड़की हूं तो लड़ सकती हूं' अभियान का जवाब माना जा रहा है. भले ही कांग्रेस ने 50 महिलाओं को टिकट दिया हो पर भाजपा ने पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य सरीखे बड़े दलित चेहरे को चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं कैराना से लड़ने जा रहीं मृगांका सिंह पूर्व दिवंगत मंत्री हुकुम सिंह की बेटी हैं, जिनका गुर्जरों में खासा असर है. बाह से चुनाव मैदान में उतरीं रानी पक्षालिका सिंह सपा सरकार में मंत्री रहे राजा महेंद्र अरिदमन सिंह की पत्नी और भदावर रियासत की रानी हैं. वह भी मौजूदा विधायक हैं. इन चेहरों के चयन के पीछे जातीय गणित तो है ही केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों की संख्या भी है. गौरतलब है कि केंद्र और राज्य सरकार लगातार पिछड़ा, दलित, गरीब, वंचित समुदाय को अपने केंद्र में रखकर काम कर रही है और गरीब कल्याण योजनाओं को ज्यादा तवज्जो दे रही है. उस की विभिन्न योजनाओं घर-घर बिजली, गैस सिलेंडर, आयुष्मान योजना, कोरोना काल में गरीबों को मुफ्त अनाज, छोटे किसानों के खातों व महिलाओं खाते में पैसा भेजना, ऐसी योजनाएं है जो सीधे तौर पर अधिकांश पिछड़े और दलित समुदाय को ज्यादा लाभ पहुंचाती हैं. ऐसे में पार्टी की रणनीति पिछड़ा और दलित समुदाय पर ही फोकस बनाए रखने की है.
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