पीएम मोदी के विदेश दौरे से पहले ये कुर्सी क्यों खींच रही सबका ध्यान? जानें क्या है इसकी खासियत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर विदेश दौरे पर रवाना होने वाले हैं. उनके इस दौरे से पहले एक खास कुर्सी की चर्चा हर तरफ हो रही है. आखिर क्या है ये कुर्सी और क्यों हो रही है इसकी चर्चा. भारत से क्या है इस कुर्सी का कनेक्शन, आइए विस्तार से जानते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर विदेश दौरे पर रवाना होने वाले हैं. उनके इस दौरे से पहले एक खास कुर्सी की चर्चा हर तरफ हो रही है. आखिर क्या है ये कुर्सी और क्यों हो रही है इसकी चर्चा. भारत से क्या है इस कुर्सी का कनेक्शन, आइए विस्तार से जानते हैं.

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Dheeraj Sharma
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PM Modi Trinidad and tobago visit why chair in talk

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर वैश्विक मंच पर भारत की मौजूदगी को सशक्त बनाने के लिए पांच देशों की यात्रा पर रवाना हो रहे हैं.  यह विदेश यात्रा अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कुछ अहम देशों को कवर करेगी. यात्रा की शुरुआत घाना से होगी जहां कई दशकों बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री पहुंचेंगे.  इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी त्रिनिदाद एंड टोबैगो, अर्जेंटीना, ब्राजील और नामीबिया का दौरा करेंगे. लेकिन उनके इस दौरे से पहले लोगों के लिए चर्चा का विषय बनी है एक खास कुर्सी. आइए जानते हैं क्यों हो रही इसकी चर्चा और क्या है इसकी खासियत. 

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त्रिनिदाद एंड टोबैगो की ऐतिहासिक संसद में भारत की छाप

इस यात्रा में सबसे खास पड़ाव त्रिनिदाद एंड टोबैगो है. जहां पीएम मोदी इस देश की संसद में भाषण देंगे. लेकिन उससे पहले चर्चा का केंद्र बनी है एक 57 साल पुरानी कुर्सी. आखिर क्यों हो रही है इस कुर्सी की चर्चा. दरअसल इस कुर्सी को भारत ने इस कैरेबियाई देश को उपहार में दिया था. 

बता दें कि यह कुर्सी संसद के स्पीकर की है, जो अब भी त्रिनिदाद एंड टोबैगो की राजधानी पोर्ट ऑफ स्पेन  में संसद भवन में मौजूद है और नियमित रूप से उपयोग में लाई जाती है. खास बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी कुर्सी के समक्ष अपना भाषण देंगे.  वर्तमान में इस पर स्पीकर जगदेव सिंह बैठते हैं और सदन की कार्यवाही का संचालन करते हैं. 

भारत ने त्रिनादाद को दिया अनमोल उपहार

इस ऐतिहासिक कुर्सी को भारत ने 9 फरवरी 1968 को त्रिनिदाद एंड टोबैगो को उपहार स्वरूप सौंपा था. उस समय भारत की ओर से तत्कालीन उच्चायुक्त मुनि लाल ने यह भेंट दी थी. यह उपहार दोनों देशों के बीच लोकतांत्रिक परंपराओं की मजबूती और ऐतिहासिक संबंधों का प्रतीक माना गया.

क्यों भारत ने दी थी ये कुर्सी

भारत ने यह कुर्सी ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र हुए त्रिनिदाद एंड टोबैगो (31 अगस्त 1962) की आजादी को यादगार बनाने के लिए दी थी.  इसे विशिष्ट भारतीय लकड़ी से तैयार किया गया था और इस पर शिल्पकला की सुंदर नक्काशी की गई थी. 

इस कुर्सी के निर्माण में कितना वक्त लगा

इस कुर्सी को तैयार करने में लगभग 6 साल लग गए थे.  देरी की एक बड़ी वजह यह थी कि दो में से एक मुख्य कारीगर बीमार हो गया था, जिससे इसकी नक्काशी का काम बाधित हुआ. हालांकि देरी के बावजूद यह कुर्सी आज भी संसद की गरिमा को बढ़ा रही है. 

त्रिनिदाद-टोबैगो से भारत के मजबूत संबंध

भारत और त्रिनिदाद एंड टोबैगो के रिश्ते सिर्फ सांस्कृतिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और लोकतांत्रिक साझेदारी से भी जुड़े हैं. त्रिनिदाद की आबादी में बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग हैं.  इसी आधार पर दोनों देशों के बीच पारंपरिक संबंध समय के साथ और मजबूत हुए हैं. 

25 साल बाद किसी भारतीय पीएम की द्विपक्षीय यात्रा

पीएम मोदी की यह यात्रा खास इसलिए भी है क्योंकि 1999 के बाद यह पहली द्विपक्षीय यात्रा है, जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री त्रिनिदाद एंड टोबैगो पहुंच रहा है. यह यात्रा द्विपक्षीय सहयोग, व्यापार, संस्कृति और रणनीतिक साझेदारी को नए स्तर पर ले जाने का माध्यम बनेगी. 

भारत की ओर से दी गई ऐतिहासिक कुर्सी सिर्फ एक उपहार नहीं, बल्कि दो लोकतंत्रों के बीच गहराते रिश्तों की प्रतीक है. पीएम मोदी की यात्रा इस संबंध को और अधिक मजबूत और भविष्यगामी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. 

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