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रूस यूक्रेन युद्ध Photograph: (NN)
रूस-यूक्रेन युद्ध की सबसे बड़ी गुत्थी अब डोनबास को लेकर है. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की साफ मंशा है कि पूर्वी यूक्रेन का यह इलाका पूरी तरह रूस के कब्जे में आ जाए. सवाल यह है कि क्या राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की इस जमीन को छोड़ने के लिए तैयार होंगे? विश्लेषकों का कहना है कि अगर जेलेंस्की ऐसा करते हैं, तो यह उनके लिए राजनीतिक आत्महत्या होगी.
डोनबास कई सालों से निशाने पर
डोनबास, जिसमें डोनेट्स्क और लुहान्स्क शामिल हैं, लंबे समय से रूस के निशाने पर रहा है. फिलहाल लुहान्स्क का अधिकांश हिस्सा और डोनेट्स्क का लगभग 70% इलाका रूस के कब्जे में है. लेकिन स्लोवियांस्क, क्रामाटोर्स्क और कोस्त्यान्तिनिवका जैसे औद्योगिक शहर अब भी यूक्रेन के नियंत्रण में हैं. यही शहर रूस की सेना के लिए सबसे बड़ी दीवार बने हुए हैं.
आखिर रूस क्यों चाहिए डोनबास?
इतिहास में डोनबास को सोवियत दौर का औद्योगिक केंद्र माना जाता था. यहां की कोयले की खदानें, इस्पात कारखाने, उपजाऊ भूमि और आजोव सागर का तट इसे रणनीतिक रूप से बेहद अहम बनाते हैं. यही वजह है कि रूस हर हाल में इस क्षेत्र को हासिल करना चाहता है.
इस इलाके में रूसियों की आबादी अधिक
बता दें कि बड़ी संख्या में रूसी भाषा बोलने वाले लोग रहते हैं. यहां कल्चर रूसी ही है. फरवरी 2022 में बड़े हमले से पहले पुतिन ने डोनेट्स्क और लुहान्स्क को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया और आरोप लगाया कि वहां के लोग “जनसंहार” का शिकार हो रहे हैं. हालांकि, अब तक इस आरोप का कोई ठोस सबूत सामने नहीं आया.
जेलेंस्की क्या दे पाएंगे ये इलाका?
यूक्रेन के लिए डोनबास छोड़ना आसान नहीं है. हजारों सैनिक इस जमीन की रक्षा करते हुए शहीद हुए हैं. हाल के सर्वे बताते हैं कि लगभग 75% यूक्रेनी जनता किसी भी कीमत पर जमीन रूस को सौंपने के खिलाफ है. अगर जेलेंस्की ने डोनेट्स्क को छोड़ दिया, तो न केवल उनकी राजनीतिक साख खत्म हो जाएगी, बल्कि मध्य यूक्रेन के खुले मैदान रूस के लिए अगले हमले का आसान निशाना बन जाएंगे.
कुल मिलाकर, डोनबास की लड़ाई केवल जमीन का नहीं बल्कि पहचान, राजनीति और रणनीति का सवाल बन गई है. यही वजह है कि शांति वार्ताओं का सबसे अहम मुद्दा भी यही इलाका है. अब देखना यह है कि क्या कूटनीति इस टकराव को सुलझा पाएगी या फिर डोनबास ही रूस-यूक्रेन युद्ध का सबसे बड़ा ज्वालामुखी बन जाएगा.
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