Who is Sudan Gurung
सुदन गौरांग का खुद का जीवन भी प्रेरणादायक है. 2015 के विनाशकारी भूकंप में उन्होंने अपने बच्चे को खो दिया. इसी दर्द ने उन्हें समाज सेवा और जन आंदोलनों के लिए प्रेरित किया.
नेपाल इन दिनों इतिहास के सबसे बड़े राजनीतिक संकट से गुजर रही है. देश की जनता खासकर युवा और छात्र सरकार के खिलाफ राजधानी काठमांडू सड़कों पर उतर आए हैं. यह आंदोलन उस वक्त शुरू हुआ जब सरकार ने अचानक 4 सितंबर को Facebook, Instagram, WhatsApp, YouTube और एक्स समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर बैन लगा दिया. सोशल मीडिया पर रोक के चलते नाराज लोग काठमांडू की सड़कों पर एकजुट हो गए और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन शुरू किया. लेकिन धीरे-धीरे यह विरोध प्रदर्शन हिंसक रूप लेने लगा.
300 से ज्यादा लोग घायल
संसद भवन के सामने बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए छात्र सरकार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने लगे. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग शुरू कर दी. इस हिंसा में अब तक 19 छात्रों की मौत हो चुकी है. जबकि 300 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं. ऐसे भयानक हालात बनने के बाद गृह मंत्री रमेश लेखक ने नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए इस्तीफा दे दिया. वहीं प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली अब दुबई भागने की फिराक में हैं. इस पूरे आंदोलन के पीछे एक मजबूत नेतृत्व है. सुदन गुरंग 36 साल के हैं और हामी नेपाल नामक एनजीओ के अध्यक्ष हैं. सुदन ने सोशल मीडिया पर छात्रों से स्कूल यूनिफार्म और किताबें लेकर प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की थी. ताकि यह आंदोलन अहिंसक बने. उनका मकसद था युवाओं को सही दिशा में संगठित करके लोकतंत्र की रक्षा करना.
सुदन गौरांग का खुद का जीवन भी प्रेरणादायक
सुदन गौरांग का खुद का जीवन भी प्रेरणादायक है. 2015 के विनाशकारी भूकंप में उन्होंने अपने बच्चे को खो दिया. इसी दर्द ने उन्हें समाज सेवा और जन आंदोलनों के लिए प्रेरित किया. खामी नेपाल की शुरुआत उन्होंने आपदा राहत कार्य से की थी. लेकिन बाद में भ्रष्टाचार और सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ भी आवाज उठाने लगे. सुदन सुदन गौरांग ने बीपी कोइराला इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ साइंसेज में अनियमितताओं के खिलाफ घोपा कैंप आंदोलन की शुरुआत की थी. धीरे-धीरे उनकी छवि जनरेशन जी यानी जैन जी के नेता के रूप में बन गई. इस आंदोलन का असर केवल काठमांडू तक सीमित नहीं रहा. पोखरा, बुटवल, विराट नगर, दमक जैसे कई बड़े शहरों से आम लोग भी इसमें शामिल हुए. हर वर्ग के लोगों ने सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई.