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What is C-5 Super Club: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के बाद से ही अमेरिका परेशान है. पहले टैरिफ बढ़ाया लेकिन इसका भी भारत पर कोई खास असर नहीं हुआ बल्कि भारत की इकोनॉमी और बेहतर हो गई. ऐसे में भारत से रिश्ते सुधारने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप एक ऐसा ग्रुप बनाना चाहते हैं तो भारत के साथ रिश्ते सुधारने में मददगार साबित हो. इसका नाम C-सुपर क्लब रखा जा सकता है.
कौन-कौन होगा इस क्लब का सदस्य
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक ऐसे नए अंतरराष्ट्रीय शक्ति मंच की कल्पना कर रहे हैं, जिसमें भारत को केंद्रीय भूमिका मिले. अमेरिकी प्रकाशन पॉलिटिको की रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप एक C-5 सुपरक्लब बनाना चाहते हैं, जिसमें पांच महाशक्तियां-अमेरिका, भारत, रूस, चीन और जापान शामिल होंगी.
अमेरिका की रणनीति: चीन-रूस के साथ दूरी घटाने की कोशिश
ट्रंप प्रशासन समझ रहा है कि एशिया में अमेरिका की चुनौती केवल चीन या रूस से अलग-अलग नहीं है, बल्कि उनकी बढ़ती सामरिक साझेदारियों से है. ऐसे में भारत को साथ लाकर अमेरिका एक संतुलन बनाना चाहता है. C-5 की अवधारणा इस बात का संकेत है कि अमेरिका केवल प्रतिद्वंद्वियों से टकराने के बजाय उन्हें शामिल कर एक नई शक्ति संरचना बनाना चाहता है, जिसमें भारत उसकी रणनीति का मुख्य स्तंभ बने.
Trump administration is discussing the idea of creating alternative to G7 — Politico
— RT (@RT_com) December 11, 2025
The proposed Core 5 would unite five heavyweights:
🇺🇸 United States
🇨🇳 China
🇷🇺 Russia
🇮🇳 India
🇯🇵 Japan pic.twitter.com/pzPI2zDuxX
क्या है C-5 सुपर क्लब
पॉलिटिको रिपोर्ट के मुताबिक यह नया C-5 समूह मौजूदा G7 जैसे पश्चिम-प्रधान संगठनों से बिल्कुल अलग होगा. G7 की सदस्यता लोकतंत्र और आर्थिक समृद्धि की शर्तों पर आधारित है, जबकि C-5 केवल 'मेगा-पॉपुलेशन' और 'सैन्य-आर्थिक ताकत' पर आधारित होगा.
इस रणनीति का दावा है कि व्हाइट हाउस की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के एक अप्रकाशित संस्करण में यह विचार सामने आया था. हालांकि आधिकारिक रूप से व्हाइट हाउस ने किसी भी ऐसी दस्तावेज की मौजूदगी से इनकार किया है. बावजूद इसके, कई विशेषज्ञ इसे ट्रंप की विश्व दृष्टि के अनुरूप मानते हैं-यानी विचारधारा से अधिक ताकतवर खिलाड़ियों का गठजोड़.
C-5 का ये हो सकता है पहला एजेंडा
रिपोर्ट के अनुसार C-5 का प्रस्तावित पहला एजेंडा मध्य पूर्व में सुरक्षा ढांचे को स्थिर करना होगा. खासकर इजरायल और सऊदी अरब के बीच संबंधों का सामान्यीकरण और क्षेत्र में शांति व्यवस्था की दिशा में पहल. यह एक ऐसा मुद्दा है जिसमें अमेरिका, चीन, रूस और भारत सभी की क्षेत्रीय भूमिकाएं अलग-अलग स्तर पर प्रभाव डालती हैं.
यूरोप की जगह क्यों नहीं?
C-5 की अवधारणा में यूरोप को पूरी तरह बाहर रखा गया है. इससे यूरोपीय रणनीतिकारों में चिंता है कि अमेरिका रूस को यूरोप के भीतर एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्वीकार कर सकता है. इससे NATO की पारंपरिक एकजुटता और पश्चिमी देशों की सामूहिक नीति को झटका लग सकता है.
पूर्व अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार यह पहल ट्रंप के पहले कार्यकाल की चीन-विरोधी नीति से बिल्कुल उलट है. ऐसे में अगर यह विचार आगे बढ़ता है, तो यह विश्व राजनीतिक ढांचे में बड़े बदलाव की शुरुआत मानी जाएगी.
भारत के लिए अवसर और चुनौतियां
C-5 जैसे मंच में भारत का शामिल होना एक बड़ी वैश्विक उपलब्धि
- भारत को स्थायी रणनीतिक सीट मिलेगी
- चीन और रूस जैसी महाशक्तियों के बराबर मंच मिलेगा
- अमेरिका के साथ साझेदारी और मजबूत होगी
भारत के लिए चुनौतियां भी होंगी
- यूरोपीय लोकतांत्रिक गठबंधनों से दूरी बढ़ सकती है
- भारत को अमेरिका-चीन-रूस के हितों के बीच संतुलन साधना होगा
- G7 और G20 में मौजूदा प्रभाव पर भी असर पड़ सकता है
कुल मिलाकर C-5 की अवधारणा भले अभी आधिकारिक नहीं है, परंतु यह स्पष्ट है कि विश्व राजनीति तेजी से बहुध्रुवीय दिशा में बढ़ रही है. भविष्य में यह मंच बनता है, तो भारत वैश्विक शक्ति संरचना के केंद्र में होगा. हालांकि उसके साथ रणनीतिक दबाव भी उतने ही बढ़ेंगे.
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