अमेरिका की ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी पर हिंदू विरोधी पाठ्यक्रम पढ़ाने का आरोप है. यूनिवर्सिटी के एक हिंदू छात्र ने इसका विरोध किया, जिसके बाद विश्वविद्यालय को सफाई देनी पड़ी. विश्वविद्यालय ने 'लिव्ड हिंदू रिलीजन' नामक पाठ्यक्रम पर अकेडमिक स्वतंत्रता का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि वे अकादमिक स्वतंत्रता को बहुत महत्व देते हैं. शिक्षकों को इससे कभी जटिल तो कभी चुनौतीपूर्ण विषयों पर विचार करने की स्वतंत्रता मिलती है.
पाठ्यक्रम की समीक्षा और विश्वविद्यालय की प्रतिक्रिया
छात्र की शिकायत मिलने पर विश्वविद्यालय के डीन और धार्मिक अध्ययन विभाग के निदेशक ने जांच शुरू की. जांच के बारे में बताते हुए विश्वविद्यालय ने कहा कि ये पाठ्यक्रम धार्मिक अध्ययन के क्षेत्र में आधारित है. अलग-अलग धर्मों के आंदोलनों को समझने के लिए स्पेशल वॉकेबलरी का इस्तेमाल किया जाता है. जैसे फंडामेंटलिज्म.
यूनिवर्सिटी ने फंडामेंटलिज्म शब्द का अर्थ बताते हुए कहा कि इसका मतलब आंदोलन से है, जो धर्म के मूल को बचाने का दावा करता है. इस शब्द से धार्मिक आंदोलनों को समझने का तरीका मिलता है. किसी भी धर्म के खिलाफ इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. ये शब्द किसी भी धर्म की आलोचना के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया है. बल्कि ये धार्मिक विचारों की ऐतिहासिकता को समझने के लिए है.
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हिंदू धर्म और हिंदुत्व के बारे में स्पष्टीकरण
विश्वविद्याल के प्रोफेसर उल्लेरी ने स्पष्ट किया कि हिंदू धर्म विभिन्न रूप में सामने आता है. हिंदू शब्द भारतीय संस्कृत साहित्य में प्राचीन काल में नहीं मिलता है. हिंदू धर्म के कई रूप में और एक ही शब्द में उसे समेटना संभव नहीं है. प्रोफेसर ने बताया कि हिंदुत्व शब्द का इतिहास 1922 से मिलता है. हिंदुत्व शब्द भारतीय राजनीति का अहम विषय बन चुका है. लिव्ड हिंदू रिलीजन नाम के पाठ्यक्रम में बताया गया है कि कैसे हिंदू धर्म को अपनाया जा सकता है और कैसे इसका विकास हुआ.
हम हिंदू धर्म के खिलाफ नहीं
प्रोफेसर ने कहा कि हिंदू धर्म को उन्होंने कभी भी अस्थाई धर्म के रूप में पेश नहीं किया है. विश्वविद्यालय के कोर्स किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं है. हमारा कोर्स बताता है कि धर्म समय के साथ कैसे बदलता है और इसका विकास कैसे हुआ.