पाकिस्तान पर भड़का UN, लगाई क्लास और बोला- कमजोर हो जाएगा लोकतंत्र..., मुनिर बन जाएगा तानाशाह

पाकिस्तान में हाल ही में पारित 27वें संवैधानिक संशोधन को लेकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायोग ने गहरी चिंता जताई है. संशोधन के तहत बनी नई ‘संघीय संवैधानिक अदालत’ सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक अधिकार छीन लेगी, जबकि राष्ट्रपति और शीर्ष सैन्य अधिकारियों को आजीवन कानूनी छूट दी गई है.

पाकिस्तान में हाल ही में पारित 27वें संवैधानिक संशोधन को लेकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायोग ने गहरी चिंता जताई है. संशोधन के तहत बनी नई ‘संघीय संवैधानिक अदालत’ सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक अधिकार छीन लेगी, जबकि राष्ट्रपति और शीर्ष सैन्य अधिकारियों को आजीवन कानूनी छूट दी गई है.

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Ravi Prashant
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पाकिस्तान पर भड़का यूएन (फाइल इमेज) Photograph: (ANI)

पाकिस्तान में हाल ही में किए गए संवैधानिक बदलावों को लेकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायोग (OHCHR) के प्रमुख वोल्कर टर्क ने गंभीर चिंता व्यक्त की है. उनके अनुसार ये संशोधन न सिर्फ न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करते हैं, बल्कि देश के लोकतांत्रिक ढांचे और सैन्य जवाबदेही के लिए भी दूरगामी खतरा पैदा करते हैं.

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नई अदालत और व्यापक छूट पर विवाद

13 नवंबर को पाकिस्तान की संसद ने तेजी से 27वां संवैधानिक संशोधन पारित किया, जिसके तहत ‘संघीय संवैधानिक अदालत’ (FCC) नाम की नई व्यवस्था बनाई गई है. यह अदालत अब संवैधानिक मामलों की एकमात्र निर्णायक संस्था होगी. पहले यह अधिकार पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के पास था, लेकिन संशोधन के बाद सर्वोच्च न्यायालय का दायरा केवल सिविल और आपराधिक मामलों तक सीमित कर दिया गया है.

सबसे विवादास्पद प्रावधान वह है, जिसमें राष्ट्रपति, फील्ड मार्शल, एयर फोर्स मार्शल और नौसेना एडमिरल जैसे शीर्ष सैन्य अधिकारियों को आजीवन गिरफ्तारी या आपराधिक कार्रवाई से पूरी तरह छूट दी गई है. विश्लेषकों के अनुसार, इससे देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज असीम मुनीर की शक्ति अभूतपूर्व रूप से बढ़ सकती है.

टर्क का आरोप जल्दबाजी में लिए फैसले

वोल्कर टर्क ने कहा कि ये संशोधन न तो कानूनी विशेषज्ञों से चर्चा के बाद हुए और न ही नागरिक समाज की भागीदारी के साथ पारित किए गए. उन्होंने याद दिलाया कि पिछले साल हुए 26वें संशोधन में भी यही जल्दबाजी दिखाई दी थी. टर्क ने चेताया कि शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा कमजोर पड़ने से कानून का शासन और मानवाधिकारों की सुरक्षा खतरे में आ सकती है.

न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादले संबंधी प्रक्रिया में किए गए बदलाव भी विवाद का केंद्र हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा FCC के पहले जजों की नियुक्ति होने से राजनीतिक दखल की संभावना बढ़ जाती है.

लोकतंत्र और जवाबदेही पर असर

संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि सैन्य अधिकारियों को व्यापक कानूनी छूट मिलना जवाबदेही के ढांचे को कमजोर करेगा. पाकिस्तान जैसे देश में, जहां लंबे समय से न्यायपालिका पर सैन्य प्रभाव के आरोप लगते रहे हैं, यह संशोधन सत्ता का संतुलन और बिगाड़ सकता है.

मानवाधिकार समूहों ने इसे “संवैधानिक तख्तापलट” तक कहा है, जो सैन्य वर्चस्व को और मजबूत करेगा. टर्क ने पाकिस्तान सरकार से आग्रह किया कि वह इन संशोधनों पर पुनर्विचार करे और किसी भी बड़े बदलाव से पहले जनता व नागरिक समाज की राय शामिल करे. उन्होंने स्पष्ट कहा, 'लोकतंत्र और कानून का शासन पाकिस्तान की जनता का अधिकार है, और उसकी रक्षा सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी'. 

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