तिब्बत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को मिटाने के चीन के प्रयासों ने हाल के वर्षों में वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है. चीन अंतरराष्ट्रीय संस्थानों पर दबाव डाल रहा है कि वे उसकी राजनीतिक व्याख्या के अनुरूप शब्दावली अपनाएं. तिब्बती और मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह रणनीति तिब्बती संस्कृति को दबाने और तिब्बत पर अपने नियंत्रण को वैध ठहराने के उद्देश्य से है.
तिब्बती कलाकृतियों पर 'शिजांग' लेबल लगाने का विवाद
26 दिसंबर 2024 को तिब्बतन रिव्यू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, तिब्बतियों और मानवाधिकार संगठनों ने ब्रिटिश म्यूजियम से मांग की है कि वह अपने सिल्क रोड्स प्रदर्शनी में तिब्बती कलाकृतियों पर 'शिजांग' शब्द का इस्तेमाल बंद करे. यह प्रदर्शनी 5वीं से 10वीं सदी के बीच एशिया और यूरोप के बीच के प्राचीन व्यापार मार्ग को उजागर करती है. तिब्बतियों का कहना है कि 'शिजांग' शब्द का उपयोग करके म्यूजियम अनजाने में बीजिंग के उस नैरेटिव को समर्थन दे रहा है, जो तिब्बत की विशिष्ट सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान को मिटाने की कोशिश कर रहा है.
1950 के दशक में तिब्बत पर कब्जे के बाद चीन ने आधिकारिक दस्तावेजों और प्रकाशनों में 'तिब्बत' की जगह 'शिजांग' शब्द का उपयोग शुरू किया. तिब्बती संगठनों ने चीन के इस प्रयास का कड़ा विरोध किया है. उनके अनुसार, यह बदलाव तिब्बत की ऐतिहासिक महत्ता और संप्रभुता को खत्म करने की व्यापक योजना का हिस्सा है.
चीन का दबाव और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
ब्रिटिश म्यूजियम ने तिब्बती कलाकृतियों पर 'शिजांग' नाम का उपयोग बीजिंग के राजनयिक दबाव के कारण किया. चीन लंबे समय से विदेशी संस्थानों, सरकारों और संग्रहालयों पर इस शब्द को अपनाने और तिब्बत को अपनी वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था के तहत प्रस्तुत करने के लिए दबाव बना रहा है. हाल ही में, चीन ने नेपाल पर भी यह शब्द अपनाने का दबाव डाला.
तिब्बतियों और मानवाधिकार संगठनों, जैसे तिब्बतन कम्युनिटी इन ब्रिटेन और ग्लोबल एलायंस फॉर तिब्बत एंड परसेक्यूटेड माइनॉरिटीज, ने म्यूजियम के इस फैसले की कड़ी निंदा की है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ग्लोबल एलायंस फॉर तिब्बत के संस्थापक, त्सेरिंग पासांग, का कहना है कि 'शिजांग' शब्द तिब्बतियों के लिए "गहरी आपत्तिजनक" है क्योंकि यह बीजिंग के उस प्रयास का प्रतीक है जो तिब्बत को वैश्विक नक्शे से मिटाने और उसके इतिहास को अपनी कथा के अनुसार बदलने का उद्देश्य रखता है.
अन्य संग्रहालयों पर भी विवाद
यह विवाद केवल ब्रिटिश म्यूजियम तक सीमित नहीं है. इस साल 1 अक्टूबर 2024 को आरएफए ने बताया कि फ्रांस के म्यूज़े डू क्वाई ब्रानली-जैक्स चिराक को भी 'शिजांग' शब्द के उपयोग पर विरोध का सामना करना पड़ा. हालांकि, सार्वजनिक विरोध और याचिकाओं के बाद संग्रहालय ने इस शब्द को हटा दिया. इसके विपरीत, पेरिस के म्यूज़े गुइमेट ने 'शिजांग' का उपयोग जारी रखा है, जिससे तिब्बतियों के विरोध में और तेजी आई है.
तिब्बत की पहचान का वैश्विक संघर्ष
तिब्बतियों और उनके समर्थकों का मानना है कि चीन अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में 'शिजांग' शब्द का इस्तेमाल कर तिब्बत के इतिहास और संस्कृति को मिटाने की कोशिश कर रहा है. तिब्बतन कम्युनिटी इन ब्रिटेन के अध्यक्ष, फुंतसोक नोरबू, ने अपने बयान में कहा, "यह केवल लेबल्स की बात नहीं है. यह संग्रहालय की जिम्मेदारी है कि वह उस संस्कृति को सही तरीके से प्रस्तुत करे, जिसे दबाया जा रहा है."
ब्रिटिश म्यूजियम ने 'शिजांग' शब्द का बचाव करते हुए कहा कि यह चीन द्वारा परिभाषित "आधुनिक क्षेत्र" को दर्शाता है. हालांकि, यह तिब्बतियों की तीव्र नाराजगी का कारण बना है. उनका मानना है कि यह चीन की उस रणनीति को समर्थन देना है, जो तिब्बत की सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की दिशा में काम कर रही है.
सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण की जरूरत
चीन का यह प्रयास केवल भाषा तक सीमित नहीं है; यह तिब्बत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को समाप्त करने का एक व्यापक प्रयास है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय, खासकर सांस्कृतिक संस्थानों और संग्रहालयों को तिब्बत की विशिष्ट पहचान को संरक्षित करने के लिए खड़ा होना होगा. यह केवल तिब्बत का मुद्दा नहीं है, बल्कि वैश्विक सांस्कृतिक विविधता और धरोहर के संरक्षण का मामला है.