रूस के फिफ्थ जनरेशन के स्टील्थ लड़ाकू विमान Sukhoi Su-57E को वैश्विक रक्षा बाजार में एक प्रभावशाली विकल्प के रूप में पेश करने की उसकी महत्वाकांक्षाएं अब भी संघर्ष करती नजर आ रही हैं. भारत, मलेशिया और अल्जीरिया जैसे रणनीतिक साझेदारों को टारगेट कर रूस लगातार इस विमान का प्रचार कर रहा है, लेकिन वास्तविक निर्यात सफलता अब भी दूर की कौड़ी बनी हुई है.
एयरशो से गायब रहा है Su-57E
हाल ही में मलेशिया में आयोजित LIMA 2025 (Langkawi International Maritime and Aerospace Exhibition) में Su-57E को प्रदर्शित किए जाने की घोषणा रूस की सरकारी हथियार निर्यातक एजेंसी Rosoboronexport ने बड़े उत्साह से की थी. लेकिन जब प्रदर्शनी की तस्वीरें सामने आईं, तो दर्शकों और विश्लेषकों को बड़ा झटका लगा. विमान की जगह केवल उसका स्केल मॉडल यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन (UAC) के पवेलियन में नजर आया. असली Su-57E एयरशो से गायब रहा.
यह गैरहाज़िरी एक बार फिर सवाल खड़ा करती है, क्या रूस का सबसे आधुनिक लड़ाकू विमान वास्तव में वैश्विक मंच के लिए तैयार है, या अब भी वह अपने पहले ठोस उड़ान भरने के मौके की तलाश में है?
क्या है Su-57E की खासियत?
Su-57E, रूस के मूल Su-57 का एक्सपोर्ट वर्जन है, जिसे अमेरिका के F-22 और F-35 जैसे विमानों के मुकाबले पेश किया गया है. यह स्टील्थ तकनीक, सुपरमैन्युवरेबिलिटी (हाई मोबिलिटी), और 400 किलोमीटर तक मार करने वाली लंबी दूरी की R-37M मिसाइल जैसी खूबियों से लैस है.
रूस का दावा है कि यह विमान एशिया और उत्तर अफ्रीका के कई देशों के लिए शानदार ऑप्शन हो सकता है. यहां तक कि रूस ने 2025 तक एक विदेशी ग्राहक के इसे ऑपरेट करने की संभावना भी जताई थी लेकिन न देश का नाम सामने आया और न ही कोई आधिकारिक पुष्टि.
भारत से एक अधूरी साझेदारी
Su-57 को लेकर भारत कभी रूस का सबसे बड़ा रणनीतिक साझेदार हुआ करता था. FGFA (Fifth Generation Fighter Aircraft) परियोजना के तहत दोनों देशों की साझा पहल थी, लेकिन 2018 में भारत ने लागत, प्रदर्शन, और उत्पादन में देरी का हवाला देकर परियोजना से खुद को अलग कर लिया.
इसके बावजूद रूस ने हार नहीं मानी. फरवरी 2025 में Aero India शो में रूस ने भारत को एक “गोल्डन डील” की पेशकश की. समय से पहले डिलीवरी, Make in India के तहत निर्माण, और भारत के AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) प्रोजेक्ट में सहयोग.
यहां तक कि एक भारत-विशेष Su-57MKI सीरिज का प्रस्ताव भी रखा गया, जो लंबी दूरी की मिसाइलों से लैस होता. लेकिन भारत सरकार की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, जिससे यह प्रस्ताव केवल एक आशावादी कल्पना बनकर रह गया है.
MRCA प्रोग्राम और Su-57E की अनदेखी
मलेशिया का MRCA (Multi-Role Combat Aircraft) कार्यक्रम 2009 से चल रहा है, जिसका उद्देश्य पुराने MiG-29 विमानों की जगह नए लड़ाकू विमान लाना है. शुरुआती दौर में यूरोफाइटर टाइफून और डसॉल्ट राफेल जैसे चौथी पीढ़ी के विमान शामिल थे, लेकिन समय के साथ अधिक उन्नत विकल्पों की ओर ध्यान बढ़ा.
रूस ने Su-57E को मलेशिया के लिए एक संभावित विकल्प के तौर पर पेश किया था, लेकिन LIMA 2025 में विमान की गैरमौजूदगी ने उसकी संभावना को और कमजोर कर दिया है. विश्लेषकों का मानना है कि विश्वसनीयता की कमी और उत्पादन की अनिश्चितता इसके मुख्य कारण हैं.
अभी जारी रहेगा अधूरा सपना
Sukhoi Su-57E भले ही तकनीकी रूप से एक उन्नत प्लेटफॉर्म हो, लेकिन अस्थिर प्रदर्शन, प्रदर्शनियों में अनुपस्थिति और रणनीतिक साझेदारों की झिझक ने इसकी वैश्विक यात्रा को सुस्त कर दिया है. जब तक रूस इन चुनौतियों का ठोस समाधान नहीं निकालता, Su-57E का वैश्विक उड़ान भरना अभी अधूरा सपना ही रहेगा.