पहलगाम आतंकी घटना के बाद भारत के हमले के डर से पाकिस्तान चाहे जितना भी डिटरेंट प्रदर्शित करे लेकिन कड़वी सच्चाई ये है की पाकिस्तान की सेना आज उस मोड़ पर खड़ी है जहाँ वह हाइ इंटेंसिटी वाली जंग को चार दिन से अधिक नहीं झेल सकती. यह खुलासा एक गोपनीय रक्षा विश्लेषण में हुआ है, जिसमें पाकिस्तान की आर्टिलरी गोला-बारूद की भयावह स्थिति का विस्तृत आकलन किया गया है. इस संकट का मूल कारण - आर्थिक अस्थिरता, विदेशी निर्यातों की होड़ और उत्पादन क्षमता में भारी गिरावट को बताया गया है.
यूक्रेन को हथियार बेचने की कीमत सेना ने चुकाई
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने यूक्रेन को 155 मिमी आर्टिलरी गोले, 122 मिमी BM-21 रॉकेट्स, मोर्टार, और छोटे हथियारों की गोलियां सप्लाई कीं. इसी तरह की सप्लाई इज़रायल को भी गुप्त रूप से की गई है. इसके कारण, 2022-23 में पाकिस्तान के हथियार निर्यात में अभूतपूर्व उछाल आया – मात्र 13 मिलियन डॉलर से बढ़कर 415 मिलियन डॉलर तक. लेकिन इस आर्थिक लाभ का दुष्परिणाम यह हुआ कि पाकिस्तान के पास खुद के लिए युद्ध सामग्री की भारी किल्लत है.
96 घंटे’ की सच्चाई: युद्ध नीति की हार
पाकिस्तान की सैन्य रणनीति सर्जिकल युद्ध पर आधारित रही है, जो भारत जैसे विरोधी से तेज और आक्रामक जवाब के लिए तैयार की गई थी. लेकिन अब सेना के पास सिर्फ 96 घंटे के लिए पर्याप्त गोला-बारूद है. इसका सीधा अर्थ है कि यदि किसी युद्ध की स्थिति में पाकिस्तान को घसीटा गया, तो वह चार दिन से ज़्यादा टिक नहीं सकेगा.
आधुनिक हथियार, लेकिन गोले नदारद
हाल के वर्षों में पाकिस्तान ने चीन से SH-15 जैसे आधुनिक मोबाइल आर्टिलरी सिस्टम खरीदे. लेकिन इस हाईटेक तोपों के लिए ज़रूरी गोले ही नहीं हैं. गोला-बारूद की कमी के कारण ये हथियार केवल ‘शोपीस’ बनकर रह गए हैं, जिनका युद्ध में उपयोग नहीं हो सकता.
POF की गिरती साख और भ्रष्टाचार
पाकिस्तान ऑर्डिनेंस फैक्ट्री की हालत भी चिंताजनक है. एक ओर तो निर्यातों का दबाव, दूसरी ओर पुराने उपकरणों और घटिया सामग्री के कारण उत्पादन में भारी गिरावट आई है. इसके अलावा सैन्य ठेकेदारों और अधिकारियों पर गोला-बारूद के निर्माण में हेराफेरी और निजी लाभ के आरोप भी सामने आ रहे हैं. इसके करना सेना के भीतर चिंता और बेचैनी है.
2 मई 2025 को पाकिस्तान की कॉर्प्स कमांडर्स कॉन्फ्रेंस में यह मुद्दा प्रमुखता से उठा. रिपोर्ट के मुताबिक, वहां सेना के उच्च अधिकारियों ने युद्धक क्षमता को लेकर खुली चिंता जताई. वॉर गेम्स और सैन्य अभ्यास, जिनसे सेना की तैयारियों का मूल्यांकन होता है, ईंधन की कमी और गोला-बारूद की अनुपलब्धता के चलते कई बार स्थगित किए गए हैं.
कूटनीतिक और रणनीतिक प्रभाव
पाकिस्तान की इस स्थिति का असर केवल सैन्य मोर्चे तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उसके रणनीतिक संतुलन और कूटनीतिक संवादों को भी प्रभावित कर रहा है. भारत के साथ यदि सीमा पर कोई तनावपूर्ण स्थिति बनती है, तो पाकिस्तान का रक्षात्मक रवैया और अधिक स्पष्ट हो सकता है. ‘आर्थिक मुनाफे’ के लिए हथियार बेचने की रणनीति ने पाकिस्तान को असल जंग के लिए कमजोर कर दिया है. गोला-बारूद की यह किल्लत न सिर्फ सैन्य ताकत को सवालों के घेरे में लाती है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर भी एक गंभीर संकट का संकेत है.