पाकिस्तानी आर्मी चीफ आसिम मुनीर को जनता लगा रही फटकार, जानें अब क्यों हुए अपने ही लोगों के शिकार

ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत के करारी शिकस्त खाने के बाद से ही पाकिस्तान में हालात सुधरे नहीं है. आर्मी चीफ आसिम मुनीर के लगातार अमेरिकी प्रेम से अब वहां की जनता भी थक चुकी है. एक बार फिर पाक आर्मी चीफ जनता के निशाने पर हैं.

ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत के करारी शिकस्त खाने के बाद से ही पाकिस्तान में हालात सुधरे नहीं है. आर्मी चीफ आसिम मुनीर के लगातार अमेरिकी प्रेम से अब वहां की जनता भी थक चुकी है. एक बार फिर पाक आर्मी चीफ जनता के निशाने पर हैं.

author-image
Dheeraj Sharma
New Update
Pakistani Army Chief Asim Munir in Tension

पाकिस्तान की राजनीति और सैन्य प्रतिष्ठान में उस वक्त उत्सव जैसा माहौल था जब सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस का न्योता मिला। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से उनकी भव्य मुलाकात को पाक मीडिया ने “सफल कूटनीतिक जीत” करार दिया। लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं अमेरिका ईरान पर हमला कर चुका है, और पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर अब मुनीर की तीखी आलोचना हो रही है।

Advertisment

नोबेल की पैरवी और दोहरी नीतियों पर सवाल

इस मुलाकात का सबसे विवादित पहलू यह रहा कि 18 जून 2025 को जनरल मुनीर ने ट्रंप से मुलाकात के दौरान उन्हें 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने की पैरवी की थी। इसके बाद पाकिस्तान की PM शहबाज शरीफ सरकार ने आधिकारिक तौर पर नामांकन भेजा।

लेकिन जैसे ही ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने ईरान पर मिसाइल हमले शुरू किए, जनरल मुनीर की ‘शांति की कोशिशें’ सवालों के घेरे में आ गईं। अब पाकिस्तान के लोग पूछ रहे हैं कि क्या यही था आपका शांति का विजन, जिसमें एक युद्धरत नेता को नोबेल का दावेदार बना दिया गया?

सोशल मीडिया पर गुस्से का सैलाब

पाकिस्तान में पत्रकार और आम नागरिक दोनों इस घटनाक्रम को लेकर मुखर हैं। पत्रकार अमीर अब्बास ने ट्वीट किया, “जिस ट्रंप को कभी पीएमएल-एन नेता ख्वाजा साद रफीक ने चंगेज खान और हिटलर कहा था, उसी को अब नोबेल देने की बात हो रही है। आखिर ये फैसले कौन करवा रहा है?”

एक अन्य यूजर ने लिखा, “आसिम मुनीर को शर्म आनी चाहिए, पाकिस्तान को नहीं।” कुछ ने तो सीधे तौर पर कहा कि “जैसे जिया-उल-हक और मुशर्रफ उम्मा और इस्लामी भाईचारे को ताक पर रख चुके थे, वैसे ही अब मुनीर ने भी अमेरिकी हितों को प्राथमिकता दे दी।”

डॉलर की राजनीति या रणनीतिक मजबूरी?

जनरल मुनीर पर आरोप है कि उन्होंने पाकिस्तान के सैन्य हितों को अमेरिका के आर्थिक लाभ के लिए गिरवी रख दिया। आलोचकों का मानना है कि पाकिस्तान की सेना अब भी अमेरिकी डॉलर और रणनीतिक गठबंधनों को इस्लामी एकता से ऊपर रखती है।

‘शांति’ की राजनीति में हारी प्रतिष्ठा

जहां एक तरफ जनरल मुनीर खुद को शांति दूत की तरह पेश करना चाहते थे, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका के युद्ध में शामिल होते ही उनका चेहरा विवाद और असंतोष का प्रतीक बन गया है। इस पूरे घटनाक्रम ने साबित कर दिया कि कूटनीति और सच्चाई में अक्सर बड़ा फासला होता है—खासतौर पर तब, जब शांति का नाम लेकर रणनीतिक समर्थन जुटाया जा रहा हो।

यह भी पढ़ें - अमेरिका के अटैक के बाद ईरान ने बंद किया Strait Of Hormuz तो भारत पर क्या पड़ेगा असर? क्यों बढ़ी दुनिया की भी टेंशन

 

world news in hindi Noble Prize Donald Trump America Asim Munir pakistan
      
Advertisment