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Sanskrit in Pakistan University Photograph: (NN)
Sanskrit in Pakistan: पाकिस्तान की मशहूर लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (LUMS) इन दिनों एक अनोखे बदलाव की वजह से चर्चा में है. आज़ादी के 77 साल बाद पहली बार पाकिस्तान में संस्कृत को विश्वविद्यालय के आधिकारिक पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है. जो भाषा भारत में सदियों से पढ़ाई जाती रही है, अब पाकिस्तानी छात्र भी बड़ी दिलचस्पी के साथ सीख रहे हैं. शुरुआत एक वीकेंड वर्कशॉप से हुई थी, लेकिन बढ़ते उत्साह को देखते हुए इसे चार क्रेडिट वाले नियमित कोर्स का रूप दे दिया गया. आने वाले समय में महाभारत और भगवद्गीता पर भी अलग कोर्स शुरू किए जाएंगे.
अब आगे क्या?
ट्रिब्यून रिपोर्ट के अनुसार, LUMS का गुरमानी सेंटर इस पहल को नई दिशा देने में जुटा है. सेंटर के डायरेक्टर डॉ. अली उस्मान कासमी का कहना है कि आने वाले 10-15 वर्षों में पाकिस्तान में ऐसे विद्वान तैयार होंगे जिन्होंने संस्कृत के मूल ग्रंथों को समझकर अध्ययन किया होगा. उन्होंने बताया कि पंजाब यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी में संस्कृत की विरल और दुर्लभ पांडुलिपियों का समृद्ध संग्रह मौजूद है, जिसे 1947 के बाद शायद ही किसी स्थानीय विद्वान ने छुआ. अब लक्ष्य है कि स्थानीय शोधकर्ताओं को तैयार किया जाए जो इस धरोहर को पढ़ सकें और समझ सकें.
ऐसे शुरू की पहल
इस पूरी पहल के केंद्र में हैं फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शाहिद रशीद, जिन्हें संस्कृत में गहरी रुचि है. उन्होंने अरबी और फारसी सीखने के बाद ऑनलाइन कोर्सों की मदद से संस्कृत पढ़ना शुरू किया. डॉ. कासमी के आग्रह पर उन्होंने FC कॉलेज से अवकाश लिया और LUMS में पढ़ाना शुरू किया. वे मुख्य रूप से व्याकरण पढ़ाते हैं. उनके अनुसार, कई छात्रों को यह जानकर हैरानी हुई कि उर्दू के कई शब्द संस्कृत से आए हैं. शुरू में भाषा मुश्किल लगी, लेकिन जैसे ही उसकी संरचना समझ आई, छात्रों ने इसे अपनाना शुरू कर दिया.
भाषाएं बननी चाहिए पुल- डॉ. कासमी
डॉ. कासमी ने मीडिया को बताया कि संस्कृत कोर्स विश्वविद्यालय में पहले से मौजूद भाषाई विविधता का हिस्सा है, जहां सिंधी, पंजाबी, पश्तो, बलोची, अरबी और फारसी पहले से पढ़ाई जाती हैं. उनका मानना है कि यह साझा सांस्कृतिक विरासत भारत और पाकिस्तान दोनों की धरोहर है. राजनीतिक संवेदनशीलताओं के बावजूद विद्वानों का मानना है कि शास्त्रीय भाषाओं की ओर लौटना दक्षिण एशिया में संबंधों को मजबूत कर सकता है. उनका कहना है कि भाषाएं दीवारें नहीं, पुल बननी चाहिए और संस्कृत इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
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