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UNGA में बोले पाक पीएम शहबाज शरीफ, भारत के साथ युद्ध विकल्प नहीं

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने फिर से कश्मीर का राग अलापा है. यूएनजीए में बोलते हुए शहबाज शरीफ ने कहा कि हम भारत सहित अपने सभी पड़ोसियों के साथ शांति चाहते हैं..

Updated on: 24 Sep 2022, 12:18 AM

highlights

  • भारत के साथ तीन लड़ाइयां हुईं
  • युद्ध की वजह से दोनों तरफ गरीबी बढ़ी
  • बातचीत से ही निकल सकता है मामलों का हल

नई दिल्ली:

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने फिर से कश्मीर का राग अलापा है. यूएनजीए में बोलते हुए शहबाज शरीफ ने कहा कि हम भारत सहित अपने सभी पड़ोसियों के साथ शांति चाहते हैं. दक्षिण एशिया में स्थायी शांति और स्थिरता हालांकि जम्मू-कश्मीर विवाद के न्यायसंगत और स्थायी समाधान पर निर्भर है. इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत के साथ युद्ध कोई विकल्प नहीं है. ये हमें चुनना होगा कि हम क्या चाहते हैं. युद्ध से दोनों तरफ सिर्फ बर्बादी ही हुई है. 

1947 से हमने लड़े तीन युद्ध, दोनों तरफ बढ़ी गरीबी और बेरोजगारी

पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि भारत को रचनात्मक जुड़ाव के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए विश्वसनीय कदम उठाने चाहिए. हम पड़ोसी हैं और हमेशा के लिए हैं, चुनाव हमारा है कि हम शांति से रहें या एक-दूसरे से लड़ते रहें. उन्होंने आगे कहा कि 1947 के बाद से हमने 3 युद्ध किए हैं और इसके परिणामस्वरूप दोनों तरफ केवल दुख, गरीबी और बेरोजगारी बढ़ी है. अब यह हम पर निर्भर है कि हम अपने मतभेदों, अपनी समस्याओं और अपने मुद्दों को शांतिपूर्ण बातचीत और चर्चा के माध्यम से हल करें. 

शांतिपूर्ण संवाद से ही निकलेगा मुद्दों का हल

पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने यूएनजीए में कहा कि मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि भारत इस संदेश को समझे कि दोनों देश एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. युद्ध कोई विकल्प नहीं है, केवल शांतिपूर्ण संवाद ही मुद्दों को हल कर सकता है ताकि आने वाले समय में दुनिया और अधिक शांतिपूर्ण हो जाए.

जलवायु परिवर्तन का पाकिस्तान पर बड़ा असर

पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने जलवायु परिवर्तन का भी मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में 1500 से अधिक लोग जिनमें 400 से अधिक बच्चे शामिल हैं वे बाढ़ में इस दुनिया से चले गए हैं. इससे कहीं अधिक बीमारी और कुपोषण से खतरे में हैं. जैसा कि हम बोलते हैं, लाखों जलवायु प्रवासी अभी भी अपने तंबू लगाने के लिए सूखी जमीन की तलाश कर रहे हैं.