Advertisment

14 महीने में अफगानिस्तान छोड़ देगी अमेरिकी सेना, तालिबान से समझौते का पहला ड्राफ्ट जारी

अगर तालिबान दोहा में कुछ घंटों के भीतर होने जा रहे समझौते का पालन करता है तो अमेरिका और इसके सहयोगी 14 महीने के भीतर अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को वापस बुला लेंगे.

author-image
Deepak Pandey
एडिट
New Update
donald trump

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप( Photo Credit : फाइल फोटो)

Advertisment

अगर तालिबान दोहा में कुछ घंटों के भीतर होने जा रहे समझौते का पालन करता है तो अमेरिका और इसके सहयोगी 14 महीने के भीतर अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को वापस बुला लेंगे. वाशिंगटन और काबुल ने शनिवार को संयुक्त बयान में यह बात कही. घोषणा में कहा गया कि शनिवार को समझौते पर हस्ताक्षर होने के 135 दिन के भीतर आरंभिक तौर पर अमेरिका (US) और इसके सहयोगी अपने 8,600 सैनिकों को वापस बुला लेंगे. इसमें कहा गया कि इसके बाद ये देश 14 महीने के भीतर अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को वापस बुला लेंगे. वहीं, अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल तालिबान (Taliban) के साथ समझौता करने के लिए दोहा पहुंच गया है.

यह भी पढ़ेंःदिल्ली: राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर लगे गोली मारो के नारे, पुलिस ने 6 लोगों को हिरासत में लिया

बता दें कि अमेरिका (US) और तालिबान (Taliban) से दो साल पहले शुरू हुई शांति वार्ता (Peace Talks) को लेकर भारतीय रणनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. इस बदलाव के तहत पहली बार तालिबान और अमेरिका के बीच होने जा रहे शांति समझौते (Peace Deal) में भारत (India) की भी उपस्थिति रहेगी. दोहा (Doha) में शनिवार को होने वाले समझौते में कतर में भारतीय राजदूत (Indian Ambassador) भी शामिल हुए हैं. भारत ने कतर (Qatar) में तैनात भारतीय राजदूत पी कुमारन को दोहा भेजने का निर्णय किया है. यह पहली बार होगा जब कोई भारतीय अधिकारी ऐसे समारोह में शामिल हुआ है, जिसमें तालिबान प्रतिनिधि भी मौजूद हैं. इसके पहले तक भारत अच्छे-बुरे तालिबान (Good-Bad Taliban) के भेद को सिरे से नकारता आया है.

अब तक भारत ने नहीं दी है तालिबान को मान्यता

गौरतलब है कि भारत ने 1996 से 2001 के दौरान पाकिस्तान के संरक्षण में फल-फूले तालिबान की सरकार को कभी भी कूटनीतिक और आधिकारिक मान्यता नहीं दी थी. भारत का हमेशा मानना रहा कि तालिबान को मुख्यधारा में लाने का परिणाम क्षेत्र में पाकिस्तान को खुली छूट देने जैसे होगा. हालांकि, 2018 में भारत मास्को फॉर्मेट पर तालिबान संग बातचीत में शामिल हुआ था. उस वक्त भारत का प्रतिनिधित्व पाकिस्तान में पूर्व राजदूत रहे टीसीए राघवन और अफगानिस्तान के पूर्व राजदूत अमर सिन्हा ने किया था. अमर सिन्हा विदेश मंत्रालय में उस वक्त सचिव पद पर भी तैनात थे. यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए के 'नमस्ते ट्रंप' कार्यक्रम में शिरकत करने आए अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा भी था भारत-अमेरिका के बीच हुई विभिन्न मसलों पर बातचीत का एक अहम मुद्दा तालिबान शांति समझौता भी था.

उच्च स्तर पर विचार-विमर्श के बाद निर्णय

सूत्रों का कहना है कि भारत को कतर से निमंत्रण मिला है और उच्च स्तर पर विचार-विमर्श के बाद सरकार ने कतर में भारतीय राजदूत पी कुमारन को भेजने का फैसला किया है. इस समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भारत पर इसके तमाम रणनीतिक, सुरक्षा और राजनीतिक प्रभाव होंगे. विश्लेषकों का कहना है कि अफगानिस्तान की नई हकीकत को स्वीकारते हुए भारत अब तालिबान के साथ कूटनीतिक स्तर पर संपर्क साध सकता है. शांति वार्ता समझौते पर हस्ताक्षर होने के दौरान भारतीय प्रतिनिधि का होना इस बात का संकेत है कि भारत अपने कूटनीतिक चैनल तालिबान के लिए खोल सकता है. भारत अफगानिस्तान में तमाम विकास कार्यों पर काम कर रहा है. इसके अलावा अफगानिस्तान में रणनीतिक तौर पर भी भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है.

यह भी पढ़ेंःएसएन श्रीवास्तव ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर का संभाला चार्ज, बोले- दंगाइयों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी, देशहित में...

आज हो रहा शांति समझौता

यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि 21 फरवरी को अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा था कि अमेरिका और तालिबान 29 फरवरी को शांति समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे जिससे दशकों से गृहयुद्ध झेल रहे अफगानिस्तान में जारी हिंसा का अंत होगा. गौरतलब है कि तालिबान शांति समझौते के तहत एक समयसीमा के भीतर अफगानिस्तान में तैनात 14,000 अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाया जाएगा. बदले में, तालिबान आतंकवाद खत्म करने का वादा करेगा और अमेरिका को आश्वस्त करेगा कि उनकी जमीन से 9/11 जैसा हमला नहीं दोहराया जाएगा.

INDIA taliban US-Afghan Agreement Peace Deal US Aims
Advertisment
Advertisment
Advertisment