तीसरे विश्वयुद्ध की आहट! जानें पहले-दूसरे विश्वयुद्ध का असर (Photo Credit: File Photo)
नई दिल्ली:
अमेरिका (America) द्वारा इराक (Iraq) की राजधानी बगदाद (Baghdad) पर हमला कर ईरान के मेजर जनरल कासिम सुलेमानी (Major General Qassim Soleimani) को मारने के बाद से तृतीय विश्वयुद्ध (Third World War) की आशंका प्रबल हो गई है. सोशल मीडिया (Social Media) पर भी वर्ल्ड वार 3 (World War 3) टॉप ट्रेंड कर रहा है. जानकार बता रहे हैं कि इस समय ईरान (Iran) की ओर से की गई कोई भी जवाबी कार्रवाई दुनिया को विश्वयुद्ध (World War) की ओर धकेल सकती है. अगर ऐसा हुआ तो यह बहुत ही विध्वंसक होगा. दुनिया दो ध्रुवों में बंट जाएगी. एक का नेतृत्व अमेरिका (America) तो दूसरे का रूस (Russia) और चीन (China) कर सकते हैं. जो देश किसी भी ध्रुव में नहीं होंगे, उन पर भी इस युद्ध का व्यापक असर होगा. इस समय जो विश्व की व्यवस्था बन रही है, उसमें अमेरिका की वह स्थिति नहीं है, जब उसने अफगानिस्तान और सद्दाम हुसैन के समय में इराक पर हमला किया था. ब्रिटेन सहित नाटो (NATO) के कई देश ईरान के मेजर जनरल सुलेमानी को टारगेट करने की घटना को पचा नहीं पा रहे हैं. विश्वयुद्ध की बात हो रही है तो आइए जानते हैं पहले और दूसरे विश्वयुद्ध में क्या हुआ था, किसलिए विश्वयुद्ध हुए और दोनों युद्धों से क्या कुछ हासिल हुआ:
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पहला विश्वयुद्ध (1914-18)
28 जून 1914 को आस्ट्रिया के राजकुमार आर्क ड्युक फ्रांसिस फर्डिनेंड (Archduke Ferdinand) और उनकी पत्नी की सर्बिया के शहर सेराजेवा (Seraajevo) में हत्या कर दी गई. यह घटना ही पहले विश्वयुद्ध का कारण बनी. एक माह बाद ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी. रूस, फ़्रांस और ब्रिटेन ने सर्बिया की सहायता की और जर्मनी ने आस्ट्रिया की. अगस्त में जापान, ब्रिटेन आदि की ओर से और कुछ समय बाद उस्मानिया, जर्मनी की ओर से युद्ध में शामिल हुए थे. यह पहला युद्ध था जो आकाश, जमीन और पानी तीनों क्षेत्रों में लड़ा गया.
महत्वपूर्ण तथ्य
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दूसरा विश्वयुद्ध (1939-45)
पहले विश्वयुद्ध के बाद इस तरह की लड़ाइयों को रोकने के लिए राष्ट्रसंघ की स्थापना की गई थी, जो मित्र राष्ट्रों के प्रभाव से उबर ही नहीं पाया और फलस्वरूप 20 वर्षों बाद ही दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो गया. दूसरा विश्वयुद्ध पहले से कहीं अधिक प्रलयंकारी था. द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज वर्साय की संधि मे ही बो दिए गए थे. मित्र राष्ट्रों ने जिस तरह जर्मनी से अपमानजनक व्यवहार बर्ताव किया, उसे जर्मन जनमानस कभी भूल नहीं सका. संधि की शर्तों के अनुसार जर्मन साम्राज्य का एक बड़ा भाग मित्र राष्ट्रों ने उस से छीनकर बांट लिया. उसे सैनिक और आर्थिक दृष्टि से पंगु बना दिया गया. अतः जर्मन वर्साय की संधि को एक राष्ट्रीय कलंक मानते थे. मित्र राष्ट्रों के प्रति उनमें प्रबल प्रतिशोध की भावना जगी. हिटलर ने इस मनोभावना को और अधिक उभारकर सत्ता हथिया ली. सत्ता में आते ही उसने वर्साय की संधि की धज्जियां उड़ा दी और घोर आक्रामक नीति अपना कर दूसरा विश्वयुद्ध आरंभ कर दिया.
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